- कपास की फसल में बहुत अधिक मात्रा में अलग अलग प्रकार के रस चूसक कीटों एवं इल्लियों का आक्रमण होता है। इन इल्लियों में गुलाबी सुंडी, एफिड, जैसिड, मकड़ी आदि शामिल होते हैं।
- इन कीटों के साथ-साथ कुछ कवक जनित बीमारियाँ भी कपास की फसल को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। इनमे जीवाणु धब्बा रोग, जड़ गलन, तना गलन, अल्टेरनेरिया पत्ती धब्बा रोग आदि प्रकार के रोग शामिल होती हैं जो कपास की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं।
- गुलाबी इल्ली के प्रबंधन हेतु प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- रस चूसक कीट के प्रबंधन हेतु डायफैनथीयुरॉन 50%WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कवक जनित रोगों के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 मिली/एकड़ या मैंकोजेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- जीवाणु जनित रोगों के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड @ 24 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL @ 400 मिली/एकड़ ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- पोषण प्रबंधन के लिए 00:00:50@ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मिर्च की 130 से 150 दिनों की फसल में छिड़काव प्रबंधन
- मिर्च की फसल 130 से 150 दिन तक अपनी पूर्ण अवस्था में होती है।
- इस समय मिर्च की फसल में फल की तुड़ाई लगातार होती रहती है एवं साथ ही नए फूल भी आते रहते हैं।
- इस अवस्था में फूलों को गिरने से बचाने के लिए एवं मिर्च के फलों को सड़ने से बचाने के लिए उचित रसायनों का छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।
- यह छिड़काव प्रबंधन दरअसल कवक प्रबंधन, कीट प्रबंधन एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।
- कवक जनित रोगों के नियंत्रण के लिए मेटिराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG@ 600 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ दर से छिड़काव करें।
- कीटों के नियंत्रण के लिए पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 250 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- पोषण प्रबंधन के तौर पर 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें और जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें एवं अपरिपक्व फूलों को गिरने से बचाने के लिए होमोब्रेसिनोलॉइड@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
खंडवा के सोयाबीन किसान ने ग्रामोफ़ोन एप से की स्मार्ट खेती, 160 से बढ़कर 200 क्विंटल हुई उपज
हर भारतीय किसान की यही ख़्वाहिश रहती है की उसकी खेती की लागत कम हो और मुनाफ़े में बढ़ोतरी हो। पर हमारे देश के ज्यादातर किसान आज भी पारंपरिक खेती करते हैं जिस वजह से उन्हें कम उत्पादन से ही संतोष करना पड़ता है और कृषि लागत भी बहुत ज्यादा हो जाती है। पर आज के आधुनिक दौर में जो किसान आधुनिक विधियों का इस्तेमाल खेती में करते हैं वे स्मार्ट किसान कहलाते हैं। ग्रामोफ़ोन भी किसानों को स्मार्ट तरीके से खेती करवाने के कार्य में पिछले 4 सालों से लगा हुआ है।
ग्रामोफ़ोन एप से जुड़कर कई किसान भाई स्मार्ट खेती कर रहे हैं। खंडवा के शुभम पटेल भी इन्हीं में से एक हैं। शुभम को इस स्मार्ट खेती के परिणाम भी बहुत अच्छे मिल रहे हैं। सोयाबीन की फसल से उन्हें पहले 160 क्विंटल की उपज होती थी, अब यह उपज बढ़कर 200 क्विंटल हो गई है। इससे उनके मुनाफ़े में भी 41% की वृद्धि हुई है। खेती की लागत में भी 10000 रूपये तक की कमी आई है।
अगर आप भी शुभम जी की तरह अपनी कृषि में इसी प्रकार का बड़ा अंतर लाना चाहते हैं और स्मार्ट किसान बनना चाहते हैं तो आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए आप या तो टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल करें या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन करें।
Shareसोयाबीन की फसल में तना मक्खी का नियंत्रण
- सोयाबीन की फसल में तना मक्खी/तना छेदक के प्रकोप का मुख्य कारण फसल का बहुत घना बोया जाना, कीटनाशकों का सही समय एवं सही मात्रा में उपयोग न होना और फसल चक्र ना अपनाना होता है।
- सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के इल्ली का प्रकोप की शुरूआती अवस्था में ही नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है।
- तना मक्खी के नियंत्रण के लिए बवे कर्ब का छिड़काव समय समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
- सोयाबीन की फसल में तना मक्खी के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का छिड़काव आवश्यक है।
- थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ + बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
खराब फसल देख मुख्यमंत्री ने दिया फसल बीमा का आश्वासन
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की खराब हुई फ़सलों का जायजा लिया और कहा कि जब किसान संकट में हो तो ऐसे में मैं बैठ नहीं सकता। उन्होंने फसल बीमा की तारीख बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी साथ ही उन्होंने कहा संकट की इस घड़ी में किसानों की पूरी मदद करेंगे।
प्रदेश के खातेगांव क्षेत्र मे खराब हुई सोयाबीन की फसल देखने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि फसल बीमा 31 अगस्त तक किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। मैं किसानों के साथ हूं। दो-तीन दिन में फ़सलों का ज्यादा नुकसान हुआ है। ऐसे में किसान संकट में हैं और मैं घर पर नहीं बैठ सकता था, इसीलिए यहां आया हूं। कल दूसरे जिलों में भी जाकर फ़सलों की स्थिति देख लूंगा।
स्रोत: नई दुनिया
Shareमध्य प्रदेश समेत कई राज्यों होगी मूसलाधार बारिश, जानें मौसम पूर्वानुमान
देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून की बारिश हो रही है और मौसम विभाग ने कहा है कि बारिश की प्रक्रिया अभी कुछ दिन जारी रहेगी। बीते 24 घंटों के दौरान छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के पूर्वी तथा मध्य भागों में भीषण मॉनसून वर्षा दर्ज की गई है।
अगर बात करें अगले 24 घंटों की तो मौसम विभाग के अनुसार आने वाले 24 घंटों के दौरान छत्तीसगढ़ में बारिश की गतिविधियाँ कम हो जाएंगी। हालांकि अगले 12 घंटों तक अच्छी बारिश कुछ स्थानों पर बनी रहेगी। मध्य प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में मूसलाधार वर्षा जारी रहने की संभावना है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareजैविक कवकनाशकों का महत्त्व
- जैविक कवकनाशक रोगकारक कवकों की वृद्धि को रोकते है या फिर उन्हें मारकर पौधों को रोग मुक्त कर देते हैं।
- यह पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को उत्तेजित कर पौधे में रोगरोधी क्षमता को बढ़ाते हैं।
- इसके प्रयोग से रासायनिक दवाओं, विशेषकर कवकनाशी पर निर्भरता कम होती है।
- यह मिट्टी में उपयोगी कवकों की संख्या में वर्द्धि करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
- जैविक कवकनाशकों का उपयोग करने से फसलों में पोषक तत्वों की अधिकता पायी जाती है।
- इनका उपयोग मिट्टी उपचार द्वारा किया जाता है। ये कीटनाशकों, वनस्पतिनाशकों से दूषित मिट्टी के जैविक उपचार (बायोरिमेडिएशन) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
देश की पहली निजी मंडी मध्यप्रदेश में स्थापित करवाना चाहते हैं सीएम शिवराज
अभी कुछ ही महीने पहले केंद्र सरकार ने नया मंडी अधिनियम बनाया है और निजी मंडी बनाने का रास्ता साफ कर दिया है। अब इसी विषय पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “केन्द्र सरकार द्वारा नया मंडी अधिनियम बनाए जाने के बाद देश में सबसे पहले निजी मंडी मध्यप्रदेश में स्थापित हो, इसके लिए प्रदेश में तैयार किए गए मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम (संशोधन) विधेयक-2020 के पारित होने के पश्चात उस पर तत्परता से अमल किया जाएगा। यह अधिनियम प्रदेश के किसानों एवं व्यापारियों दोनों के लिए लाभदायक होगा।”
मुख्यमंत्री ने ये बातें मंत्रालय में उच्च स्तरीय बैठक के दौरान मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम (संशोधन) विधेयक-2020 के प्रावधानों पर चर्चा करते हुए कही। इस बैठक में किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल, किसान कल्याण तथा कृषि विकास राज्य मंत्री श्री गिर्राज दण्डौतिया, मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस, अपर मुख्य सचिव श्री के.के. सिंह, प्रमुख सचिव श्री अजीत केसरी उपस्थित थे।
स्रोत: कृषक जगत
Shareबीज उपचार का रबी फसलों के लिए महत्व
- छोटे दाने की फसलों, सब्जियों, बड़े बीज़ एवं कंद वाली फसलें जैसे आलू, लहसुन, प्याज़ आदि में बीज जनित रोंगो के नियंत्रण हेतु बीज उपचार बहुत प्रभावकारी होता है।
- मृदा जनित कवक, जीवाणु व सूत्रकृमि से बीज व तरुण पौधों को बचाने के लिए बीजों को कवकनाशी रसायन से उपचारित किया जाता है, जिससे बीज जमीन में सुरक्षित रहते हैं। बीज उपचार करने से रसायन बीज के चारों ओर रक्षक लेप के रूप में चढ़ जाता है।
- बीजों को उचित कवकनाशी से उपचारित करने से उनकी सतह कवकों के आक्रमण से सुरक्षित रहती है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है और भण्डारण के दौरान भी उपचारित सतह के कारण उनकी अंकुरण क्षमता बनी रहती है।
- भंडार में रखने से पूर्व बीज को किसी उपयुक्त कीटनाशक से उपचारित कर देने से भंडारण के दौरान एवं बुआई के बाद मिट्टी भी बीजों को सुरक्षित रखता है। कीटनाशक का चयन संबंधित फसल बीज के प्रकार और भंडारण अवधि के आधार पर किया जाता है।
मिर्च की फसल में सफेद ग्रब का प्रबंधन कैसे करें?
- सफ़ेद ग्रब सफेद रंग का कीट है जो खेत में सुप्तावस्था में ग्रब के रूप में रहता है।
- आमतौर पर प्रारंभिक रूप में ये जड़ों में नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद ग्रब के प्रकोप मिर्च के पौधे एकदम से मुरझा जाते हैं, पौधे की बढ़वार रूक जाती है और बाद में पौधा मर जाता है।
- इस कीट के नियंत्रण हेतु मेट्राजियम (kalichakra) 2 किलो + 50-75 किलो FYM/कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खाली खेत में भुरकाव करें।
- लेकिन यदि मिर्च की फसल की अपरिपक्व अवस्था में भी इस कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा हो तो सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए रासायनिक उपचार भी किया जा सकता है।
- इसके लिए फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 500 मिली/एकड़, क्लोथियानिडिन 50.00% WG @ (डोन्टोटसु) 100 ग्राम/एकड़ को मिट्टी में मिला कर उपयोग करें।