- लहसुन की फसल के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व होता है और यह फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कैल्शियम के कारण जड़ स्थापना में वृद्धि होती है एवं कोशिकाओं के विस्तार को बढ़ाता है जिससे पौधों की ऊँचाई बढ़ती है।
- यह रोग और ठंढ से सहिष्णुता बढ़ाता है, यद्यपि लहसुन में कैल्शियम की सिफारिश की गई मात्रा उपज, गुणवत्ता और भंडारण क्षमता के लिए अच्छी होती है।
- कैल्शियम की अनुशंसित खुराक 4 किलोग्राम/एकड़ या मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार देना चाहिए।
खुशखबरी: जल्द ही सब्जियों की भी समर्थन मूल्य पर होगी खरीदी
केरल सरकार की तरफ से कुल 21 खाने–पीने की वस्तुओं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण कर दिया गया है और इसमें 16 प्रकार की सब्जियों को भी शामिल किया गया हैं। केरल सरकार यह व्यवस्था एक नवंबर से शुरू करने जा रही है। केरल की ही तरह मध्यप्रदेश सरकार भी कुछ इसी प्रकार का कदम उठाने की सोच रही है।
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भी अब सब्जियों को एमएसपी पर खरीदने की तैयारी में है। ये बातें मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने कही। उन्होंने कहा कि “अनाज के समर्थन मूल्य के बाद अब सब्जियों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की योजना प्रदेश सरकार बना रही है ताकि कृषि उद्योग की श्रेणी में आ जाए। गेहूं, चना, मूंग, मक्का की समर्थन मूल्य पर खरीदी के बाद अब सब्जियां भी समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएंगी।”
स्रोत: जागरण
Shareलहसुन की फसल में ऐसे करें थ्रिप्स का प्रबंधन
- लहसुन की फसल में ऐसे करें थ्रिप्स का प्रबंधन थ्रिप्स छोटे एवं कोमल शरीर वाले कीट होते हैं जो पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।
- अपने तेज मुखपत्र के साथ ये पत्तियों, कलियों एवं फूलों का रस चूसते हैं। इनके प्रकोप के कारण पत्तियां किनारों पर भूरे रंग की हो जाती हैं।
- प्रभावित पौधे की पत्तियां सुखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं, या पत्तिया विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
- थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों को अदल बदल करके ही उपयोग करना आवश्यक होता है।
- थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
प्याज़ के पौध की रोपाई करते समय ज़रूर करें पोषण प्रबंधन
- प्याज़ की पौध को मुख्य खेत में लगाने से पहले पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस बात का विशेष ध्यान रखें की रोपाई के समय खेत में सभी पोषक तत्वों की पूर्ति होना आवश्यक है।
- इस समय पोषण प्रबधन करने के लिए युरिया @ 25 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- युरिया का उपयोग नाइट्रोज़न के स्रोत के रूप में एवं फसल एवं मिट्टी में नाइट्रोज़न की कमी की पूर्ति के लिए किया जाता है। यह फसल की बढ़वार के लिए आवश्यक होता है।
- इसी के साथ ग्रामोफ़ोन की पेशकश प्याज़ समृद्धि किट का उपयोग भी फसल को अच्छी वृद्धि और विकास देने के लिए किया जा सकता है।
समर्थन मूल्य पर कपास की खरीदी जारी, अब तक हुई करीब 1300 करोड़ की खरीदी
भारतीय खाद्य निगम तथा राज्यों की खरीद एजेंसियों की तरफ से खरीफ फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीदी जारी है। मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में समर्थन मूल्य के अंतर्गत कपास का खरीद अभियान जारी है। ख़बरों के अनुसार 27 अक्टूबर तक, करीब 1300 करोड़ रुपये मूल्य के कुल 4,42,266 कपास गांठों की खरीद की गई है और इससे 84138 किसानों ने लाभ उठाया है।
बात करें धान की तो अब तक 26 प्रतिशत से अधिक धान की खरीद की जा चुकी है। समर्थन मूल्य पर अब तक कुल 32196 करोड़ रुपये मूल्य की 170.53 लाख टन धान की खरीदी हो गई है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु, उत्तराखंड, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर, केरल और गुजरात में धान की खरीदी तेजी से जारी है जहां अब तक 170.53 लाख टन धान खरीदा गया है।
स्रोत: नवभारत टाइम्स
Shareलहसुन के पूरे फसल चक्र में कब कब करें सिंचाई, पढ़ें पूरी जानकारी
- लहसुन की फसल में बुआई के समय खेत में उचित नमी होना बहुत आवश्यक होता है, इसलिए बुआई के पहले खेत में हल्की सिंचाई जरूर करें। इसके अलावा बीज अंकुरण के तीन दिन पश्चात फिर से सिचाई करनी चाहिये।
- वनस्पति वृद्धि के हर एक सप्ताह बाद सिंचाई करना चाहिये या फिर आवश्यकता होने पर सिचाई करनी चाहिए।
- जब कंद परिपक्त हो रहे हों तब सिंचाई नही करनी चाहिये।
- फसल को निकालने के 2-3 दिन पहले सिचाई करनी चाहिये, इससे फसल को निकालने में आसानी होती है।
- फसल के पकने के दौरान भूमि में नमी कम नही होनी चाहिये, इससे कंद के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए वरदान है वेटिवर घास, जानें इसका महत्व
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए वरदान है वेटिवर घास, यह घास का एक विशेष प्रकार है, जो पांच फ़ीट की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसकी जड़ें 10 फ़ीट गहराई तक चली जाती हैं।
- मुख्यतः इस घास को तटीय इलाकों में उगाया जाता है।
- सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए यह घास किसी वरदान से कम नहीं है।
- इथेनॉल निष्कर्षण, पशुओं के लिए चारा और हस्तशिल्प बनाने के लिए भी इस घास का इस्तेमाल किया जाता है।
- इसके अलावा इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी पाए जाते हैं।
सरकार की भंडारण सीमा निर्धारण के बाद कौन कितना प्याज स्टोर कर सकता है?
हर साल इस वक़्त पर प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती है। इसी को देखते हुए सरकार कई कदम उठा रही है। इस फेहरिस्त में सरकार ने शुक्रवार को प्याज के भंडारण से जुड़े नियमों में कुछ बदलाव किये हैं। अब प्याज के भंडारण पर लिमिट लगा दी गई है।
वर्तमान में कई राज्यों में प्याज की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। शुक्रवार को सरकार ने थोक विक्रेताओं के लिए प्याज भंडारण की लिमिट 25 मीट्रिक टन तथा खुदरा व्यापारियों के लिए 2 मीट्रिक टन निर्धारित कर दी है। हालांकि आयातित प्याज पर यह लिमिट लागू नहीं होगी। सरकार का मानना है की इस कदम से प्याज की बढ़ती कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: कृषक जगत
Shareरासायनिक उर्वरकों के साथ वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग
- इसमें सभी पोषक तत्व, हार्मोन और एंजाइम पाए जाते हैं जो पौधों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश ही मिलते हैं।
- इसका प्रभाव बहुत दिनों तक खेत में रहता है और पोषक तत्व धीरे-धीरे पौधों को प्राप्त होते हैं।
- यह फसलों के लिये सम्पूर्ण पोषक खाद है जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक होती है, जिससे भूमि में जल शोषण और जल धारण शक्ति बढ़ती है एवं भूमि के कटाव को भी रोकने में मदद मिलती है।
- इसमें हयूमिक एसिड होता है, जो जमीन के पी एच मान को कम करने में सहायक होता है। अनउपजाऊ भूमि को सुधारने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- इसके प्रयोग से भूमि के अन्दर पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवों को भोजन मिलता है, जिससे वह अधिक क्रियाशील रहते हैं। यह फसलों के लिये पूर्णतः नैसर्गिक खाद है, इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।
- इससे फसलों के आकार, रंग, चमक तथा स्वाद में सुधार होता है, जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, फल स्वरूप उत्पाद गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
मटर की फसल में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग की पहचान
- अंगमारी (झुलसा) रोग से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और तने पर बने विक्षत धब्बे लंबे, दबे हुए एवं बैगनी-काले रंग के होते हैं। ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते हैं और पूरे तने को चारों और से घेर लेते हैं। इसके कारण फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं और रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लग जाता है।
- पद गलन रोग मटर की फसल पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। इस रोग के कारण मटर की पौधे का तना सबसे ज्यादा प्रभावित होता है एवं संक्रमित पौधे पीले रंग के हो जाते हैं। इसके अलावा इसके कारण फसल परिपक्व होने से पहले ही नष्ट हो जाती है। यह रोग मिट्टी जनित रोगजनकों द्वारा पौधे की जड़ों में संक्रमण के कारण होता है।
- इसके प्रबंधन हेतु मैनकोज़ेब 75% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसके अलावा आप थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से भी उपयोग कर सकते हैं।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।