Irrigation in Moong (Green Gram)

मुंग में सिंचाई :-मूंग मुख्य रूप से खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है। जलवायु परिस्थितियों के आधार पर सिंचाई की आवश्यकता होती है|  गर्मी के मौसम की फसल के लिए, मिट्टी के प्रकार और जलवायु स्थिति के आधार पर तीन से पांच सिंचाई आवश्यक हैं। अच्छे उपज के लिए बुवाई के 55 दिनों बाद सिंचाई रुक देना चाहिए ।

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Bulb splitting In Onion (physiological Disorder)

प्याज़ में कंदों का फटना:

कारक:-

  • प्याज़ के खेत में अनियमित सिंचाई के कारण इस विकार में वृद्धि होती है|
  • खेत में ज्यादा सिंचाई, के बाद में पुरी तरह से सूखने देने एवं अधिक सिंचाई दोबारा करने के कारण कंद फटने लगते है|
  • कंद के फटने के कारण कंदों में मकड़ी (राईज़ोफ़ाइगस प्रजाति) चिपक जाती है|

लक्षण:-

  • प्रथम लक्षण कंद के फटने पर आधार पर दिखाई देते है|
  •  प्रभावित कंद फटे उभार के रूप में आधार भाग में दिखाई देते है|

रोकथाम:-

  • एक समान सिंचाई और उर्वरकों की मात्रा उपयोग करने से कंदों को फटने से रोका जा सकता है|
  • धीमी वृद्धि करने वाले प्याज की किस्मों का उपयोग करने से इस विकार को कम कर सकते है|

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प्रधानमंत्री बीमा योजना का लाभ लें

प्रधानमंत्री बीमा योजना में मौसम के कारण होने वाले नुकसान का प्रावधान हे जिन किसान भाईयों ने बीमा करवाया है और वर्तमान में हुई ओला वृष्टि से फसल को नुकसान हुआ है वे बीमा कंपनी के अधिकारी से संपर्क करें एवं अपने खेत का मूल्यांकन करवाए ताकि उन्हें बीमा योजना का लाभ मिला सके|

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Bolting in Onion (Physiological disorder)

प्याज के फूल निकलना (देहिक विकार)

कारण :-

  • विभिन्न किस्म की आनुवांशिक विविधता के कारण|
  • तापमान में अत्यधिक उतर चढाव होने से|
  • निम्न बीज गुणवत्ता के कारण|
  • नर्सरी बेंड पर पौधो का विकास अवरूध्द हो जाने से|
  • शुरुआत में अत्यधिक कम तापमान फुलो का विकास करता हें|

लक्षण:-

  • यह अवस्था तब होनी हें जब पौधे पांच पत्तियों की अवस्था में होता हें|
  • इसमें अचानक प्याज के कंद के सिर पर केंद्र पर वृन्त विकसित हो जाता है|
  • इस अवस्था में कन्द हल्के एवं रेशेदार हो जाते हें|

रोकथाम:-

  • किस्मो की बुवाई उचीत समय पर करनी चाहिये|
  • उर्वरक का अत्यधिक उपयोग नहीं करना चाहिए|

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Disease Free Nursery Raising For Vegetables

सब्जियों के लिए रोग मुक्त नर्सरी बनाना:-

  • बुआई के लिए स्वस्थ बीज का चयन करें|
  • बुआई के पूर्व बीजों का उपचार अनुशंसित फफूंदनाशक से करना चाहिए|
  • एक ही प्लाट में बार-बार नर्सरी नहीं लेना चाहिये|
  • नर्सरी की ऊपरी मिट्टी को कार्बेन्डाजिम 5 ग्राम/वर्ग मी. से उपचारित करना चाहिये तथा इसी रसायन का 2 ग्राम/ लीटर पानी का घोल बनाकर नर्सरी में प्रत्येक 15 दिन में ड्रेंचिंग करना चाहिये|
  • मृदा सोर्यकरण जिसमे गर्मियों में फसल बुआई के पहले नर्सरी बेड को 250 गेज के पोलीथीन शीट से 30 दिन के लिए ढक दिया जाता है, करना चाहिए|
  • आद्रगलन रोग के नियंत्रण के लिए जैव-नियंत्रण के लिए ट्रायकोड्रमा विरिडी 1.2 किलोग्राम/ हे. के अनुसार देना चाहिए|

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Nutrient Management in Sponge Gourd

गिल्की में पोषक तत्व प्रबंधन:-

  • खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के दर से गोबर की खाद का प्रयोग करे|
  • मध्य भारत में प्राय: 75 कि.ग्रा. यूरिया, 200 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट और 80 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ़ पोटाश को अंतिम जुताई के समय डाले|
  • अन्य बचे हुए 75 कि.ग्रा. यूरिया की आधी मात्रा को 8-10 पत्ति अवस्था में आधी मात्रा को फूल आने की अवस्था में डाले|

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Nursery bed preparation for Cauliflower

  • बीजो की बुआई क्यारियों में की जाती है| प्रायः 4-6 सप्ताह पुरानी तैयार हुई पौधो को रोपित किया जाता है|
  • क्यारियों की उचाई 10 से 15 सेंटीमीटर होना तथा आकार 3*6 मीटर होना है|
  • दो क्यारियों के बीच की दुरी 70 सेंटीमीटर होती है| जिससे अंतर्सस्य क्रियाये आसानी से की जा सके|
  • नर्सरी क्यारियों की सतह भुरभुरी एवं समतल होनी चाहियें|
  • नर्सरी क्यारियों का निर्माण करते समय 8-10 किलोग्राम गोबर की खाद का प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहियें|
  • भारी भूमि में ऊची क्यारियों का निर्माण करके जल भराव की समस्या को दूर किया जा सकता है|
  • अद्रगलन बीमारी व्दारा पौध को होने वाली हानि से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 50% WP का 15-20 ग्राम /10 लि. पानी में घोल बनाकर अच्छा तरह से भूमि में मिलाना चाहियें|

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Major seed quality characters

फसलों के अच्छे बीजों के गुण एवं विशेषताएं:- अच्छा बीज वह होता हैं जिसकी अंकुरण क्षमता अधिक हो, तथा बीमारी, कीट, खरपतवार के बीज व अन्य फसलों के बीजों से मुक्त हो। किसान अच्छे बीजों की बुवाई करके पैदावार व अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। जबकि खराब गुणों वाले बीजों को बोने से खेती के अन्य कार्य जैसे खाद, पानी, खेत की तैयारी आदि किसान का खर्च व मेहनत बेकार हो जाते हैं। फसलों के अच्छे बीजों के गुण एवं विशेषताओं ये निम्न प्रकार के होते हैं:-

  • बीज की भौतिक शुद्धता
  • बीज की आनुवंशिक शुद्धता
  • बीजों के गुण, आकार, आकृति एवं रंग
  • बीजों में नमी की मात्रा
  • बीज की परिपक्वता
  • बीजों की अंकुरण क्षमता
  • बीजों की जीवन क्षमता

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Intercropping in vegetables

सब्जियो में अंतरसस्य फसले:-सब्जियो की फसले कम अवधि एवं अधिक उत्पादन देती है जिसके कारण इन्हें मिश्रित अंतरवर्ती व चक्रीय क्रम में अन्य फसले के साथ भी उगाया जाता है |अंतरवर्ती या मिश्रित फसल लेने के लिए, सब्जियों की विकास दर, जड़ो का वितरण, पोषक प्रकृति, कीट व रोगों के आक्रमण, बाज़ार में मांग इत्यादि पर विचार करना चाहियें| फसल पद्धति स्थायी नहीं होना चाहियें  एवं मोसम, कीट व रोगों के आक्रमण, बाजार- भाव व मांग तथा उत्पादक के आवश्यकतानुसार बदलना चाहिये|

क्र.    सब्जी का नाम       अंतरसस्य फसले

1.)    टमाटर       -केला, नीम्बू, कपास, भिन्डी, गेंदा, तुराई, गिलकी, मक्का

2.)    बैगन        -गाजर, फूलगोभी, मेथी, पत्तागोभी, हल्दी, मक्का

3.)    मिर्च         -आलू, शलजम, बरबटी

4.)    पत्तागोभी     -नीम्बू, गाजर, मुली, बैगन

5.)    फूलगोभी      -पालक, बैगन, मक्का, गांठगोभी

6.)    प्याज        -गाजर, मुली, धनियाँ, शलजम

7.)    लहसुन       -चुकंदर, मुली, गाजर

8.)    मटर         -बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अमरुद

9.)    फरासबीन     -बैगन, मिर्च, गेंदा, मक्का

10.)   बरबटी       -फरासबीन, धनियाँ, मक्का, बाजरा, केला

11.)   भिन्डी        -धनियाँ, ग्वारफली

12.)   लौकी        -बरबटी, कुंदरू, चौलाई, लम्बी ककड़ी

13.)   तुरई         -पालक, टमाटर

14.)   ककड़ी        -बरबटी, पालक

15.)   करेला        -लोबिया, बरबटी, पर्सनीप, सलाद

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Management of Mosaic Virus in chilli

लक्षण :-

  • रोग का मुख्य लक्षण पत्तियों पर गहरे हरे और पीले रंग के धब्बे का प्रकट होना हे|
  • हलके गड्डे और फफोले भी दिखाई पड़ते है|
  • कभी-कभी पत्ते का आकार अति सुक्ष्म सूत्रकार हो जाती है|
  • रोगी पोधो में फूल और फल कम लगते है|
  • फल विकृत और खुरदुरे होते|

रोकथाम :-

  • ग्रसित पोधों को निकाल कर नष्ट करे|
  • प्रतिरोधक किस्मो जेसे पूसा ज्वाला, पन्त सी-1, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल इत्यादी को लगाये|
  • डायमिथोएट का 2 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर उचित अन्तराल पर छिडकाव कर कारक को रोके|

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