- इसमें सभी पोषक तत्व, हार्मोन और एंजाइम पाए जाते हैं जो पौधों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश ही मिलते हैं।
- इसका प्रभाव बहुत दिनों तक खेत में रहता है और पोषक तत्व धीरे-धीरे पौधों को प्राप्त होते हैं।
- यह फसलों के लिये सम्पूर्ण पोषक खाद है जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक होती है, जिससे भूमि में जल शोषण और जल धारण शक्ति बढ़ती है एवं भूमि के कटाव को भी रोकने में मदद मिलती है।
- इसमें हयूमिक एसिड होता है, जो जमीन के पी एच मान को कम करने में सहायक होता है। अनउपजाऊ भूमि को सुधारने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- इसके प्रयोग से भूमि के अन्दर पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवों को भोजन मिलता है, जिससे वह अधिक क्रियाशील रहते हैं। यह फसलों के लिये पूर्णतः नैसर्गिक खाद है, इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।
- इससे फसलों के आकार, रंग, चमक तथा स्वाद में सुधार होता है, जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, फल स्वरूप उत्पाद गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
मटर की फसल में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग की पहचान
- अंगमारी (झुलसा) रोग से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और तने पर बने विक्षत धब्बे लंबे, दबे हुए एवं बैगनी-काले रंग के होते हैं। ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते हैं और पूरे तने को चारों और से घेर लेते हैं। इसके कारण फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं और रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लग जाता है।
- पद गलन रोग मटर की फसल पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। इस रोग के कारण मटर की पौधे का तना सबसे ज्यादा प्रभावित होता है एवं संक्रमित पौधे पीले रंग के हो जाते हैं। इसके अलावा इसके कारण फसल परिपक्व होने से पहले ही नष्ट हो जाती है। यह रोग मिट्टी जनित रोगजनकों द्वारा पौधे की जड़ों में संक्रमण के कारण होता है।
- इसके प्रबंधन हेतु मैनकोज़ेब 75% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसके अलावा आप थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से भी उपयोग कर सकते हैं।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पीएम किसान योजना: 31 अक्टूबर तक करें रजिस्ट्रेशन और नवंबर-दिसंबर में उठाएं लाभ
अगर आपने अभी तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है तो यह खबर आपके लिए है। जो किसान अब तक इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएं हैं वे आने वाली 31 अक्टूबर से पहले आवेदन कर सकते हैं। अगर उनका आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है, तो उन्हें नवंबर में 2 हजार रुपए की एक किस्त मिलेगी साथ ही दिसंबर में दूसरी किस्त भी मिल जायेगी।
ग़ौरतलब है की केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए इस प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत किसानों को हर साल तीन किश्तों में 6 हजार रुपए दिए जाते हैं। बता दें की इस योजना से अब तक किसानों के खाते में 6 किस्त भेजे गए हैं।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareआलू की फसल में बैक्टीरियल विल्ट रोग की पहचान एवं नियंत्रण की विधि
- इस रोग से प्रभावित आलू के पौधे के आधार भाग पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- रोग की शुरुआती अवस्था में पौधा पीला पड़ने लगता है।
- संक्रमित कंद पर नरम, लाल या काले रंग की रिंग दिखाई देती है।
- रोग की गंभीर अवस्था में पौधा मुरझाने लगता है और अंत में सूख कर नष्ट होने लगता है।
- इसके प्रबंधन हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में करें। स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर से छिड़काव करें।
गेहूं की फसल में बीज उपचार करने की विधि और इसके लाभ
- बीज़ उपचार करने से बुआई के बाद गेहूं के सभी बीजों का एक सामान अंकुरण होता है।
- इससे मिट्टी जनित एवं बीज़ जनित रोगों से गेहूं की फसल की रक्षा होती है।
- बीज़ उपचार करने से करनाल बंट, गेरुआ, लुस स्मट, ब्लाइट आदि रोगों से गेहूं की फसल की रक्षा होती है।
- गेहूं की फसल में हम रासायनिक और जैविक दो विधियों से बीज उपचार कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार के लिए बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या PSB @ 2 ग्राम + मायकोराइज़ा @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
चने की फसल में बीज़ उपचार करने की सही विधि
- जिस प्रकार बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के पहले बीज उपचार करना भी बहुत आवश्यक होता है।
- बीज उपचार करने से कवक जनित रोगों जैसे एन्थ्रेक्नोज धब्बा रोग, गेरुआ, उकठा रोग आदि का नियंत्रण होता है साथ ही बीजों का अंकुरण भी अच्छा होता है।
- बीज उपचार की प्रक्रिया रासायनिक और जैविक दो विधियों से कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार में बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
गेहूं की बुआई का क्या है सही समय और कैसे करें खेत की तैयारी
- बुआई का उचित समय मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक रहता है।
- बुआई के पूर्व खेत में गहरी जुताई जरूर करें।
- जुताई के बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर का इस्तेमाल कर खेत को समतल करें।
- गेहूं की बुआई से पहले मिट्टी उपचार जरूर करें और इसके लिए गेहूं समृद्धि किट का उपयोग करें।
- इस किट में सभी आवश्यक तत्व उपस्थित है जो किसी भी फसल की बुआई के समय मिट्टी में मिलाने पर आवश्यक तत्वों की पूर्ति करने में मदद करते हैं।
काले गेहूं की खेती के फायदे
- काला गेहूं दरअसल गेहूं की एक खास किस्म होती है, जिसकी खेती खास तरीके से की जाती है।
- काले गेहूं में सामान्य गेहूं की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत अधिक आयरन होता है।
- इस गेहूं में प्रोटीन, पोषक तत्व और स्टार्च की मात्रा सामान्य गेहूं की तरह ही समान रहती है।
- भारत में आम तौर पर काले गेहूं की खेती बहुत कम होती है।
- साधारण गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है।
- एंथ्रोसाइनीन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है।
कवक जनित रोगों के नियंत्रण हेतु क्या करना चाहिए?
- किसी भी फसल से अच्छे उत्पादन की प्राप्ति के लिए फसल में कवक जनित रोगों को नियंत्रण करना बहुत आवश्यक होता है।
- कवक जनित रोगों की रोकथाम में ‘सावधानी ही सुरक्षा है’ का मूल मंत्र काम करता है। इस रोग के प्रकोप होने से पहले उपचार करना बहुत आवश्यक है। अर्थात इसके लिए बुआई के पूर्व ही नियंत्रण करना बहुत आवश्यक होता है।
- सबसे पहले बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- मिट्टी उपचार बाद बीजो को कवक रोगों से बचाव के लिए कवक नाशी से बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक है।
- बुआई के 15-25 दिनों में कवकनाशी का छिड़काव करें जिससे की फसल को अच्छी शुरुआत मिल जाए एवं जड़ों विकास अच्छे से हो जाए।
- इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में हर 10 से 15 दिनों में छिड़काव करते रहें।
करेले की फसल में लाल भृंग कीट का नियंत्रण
- इस कीट के अंडे से निकले हुये ग्रब जड़ों, भूमिगत भागों एवं जो फल भूमि के संपर्क में रहते है उनको खाता है।
- इनसे प्रभावित पौधे के संक्रमित भागों पर मृतजीवी फंगस का आक्रमण हो जाता है जिसके फलस्वरूप अपरिपक्व फल व लताएँ सुख जाती हैं।
- ये पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देते हैं। पौध अवस्था में बीटल का आक्रमण होने पर यह मुलायम पत्तियों को खाकर हानि पहुँचाते है जिसके कारण पौधे मर जाते हैं।
- गहरी जुताई करने से भूमि के अंदर उपस्थित प्यूपा या ग्रब ऊपर आ जाते हैं और सूर्य की किरणों के सम्पर्क में मर जाते हैं।
- इससे बचाव के लिए बीजो के अंकुरण के बाद पौध के चारों तरफ भूमि में कारटाप हाईड्रोक्लोराईड 4G@ 7.5 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- इसके अलावा आपक प्रोफेनोफोस 40 % + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS@ 200 मिली/एकड़ की दर से भी छिड़काव में उपयोग कर सकते हैं।
- जैविक उपचार के रूप बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करे या मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
