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- यह रोग जीवाणु एवं कवक जनित है जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है।
- बैक्टीरियल विल्ट संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं और धीरे धीरे पूरा पौधा सूख कर मर जाता है।
- इसके कारण फसले गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
- इस रोग का मुख्य कारण मौसम में बदलाव भी है।
- इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
- जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 5 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 5 ग्राम/किलो बीज़ की दर से बीज़ उपचार करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
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- मौसम में लगातार हो रहे परिवर्तन की वजह से प्याज़ एवं लहसुन की फसल बहुत अधिक प्रभावित हो रही है
- इस प्रभाव के कारण सबसे पहले प्याज़ एवं लहसुन की फसल में पत्ते पीले दिखाई देते हैं एवं किनारों से पत्ते सूख जाते हैं।
- इसके कारण कहीं कहीं फसल में सही एवं समान वृद्धि नहीं होती है।
- प्याज़ एवं लहसुन की फसल में इसके कारण पत्तियों पर अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं।
- इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए एवं मौसम की विपरीत परिस्थिति के कारण फसल को होने वाले नुकसान से फसल को बचने के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70%W/W@ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- ग्रामोफ़ोन की ख़ास पेशकश ‘गेहूँ समृद्धि किट’ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।
- इस किट की कुल मात्रा 2.2 किलो है और यह मात्रा एक एकड़ के लिए पर्याप्त होती है।
- इसका उपयोग यूरिया, DAP में मिलाकर किया जा सकता है।
- इसका उपयोग 50 किलो पकी हुई गोबर की खाद, कम्पोस्ट या मिट्टी में भी मिलाकर कर सकते हैं।
- इसके उपयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना जरूरी होता है।
- अगर बुआई के समय इस किट का उपयोग नहीं कर पाए हैं तो बुआई के बाद 20-25 दिनों के अंदर इसका उपयोग मिट्टी में भुरकाव के रूप में कर सकते हैं।
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- ये जीवाणु फास्फोरस के साथ साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी पौधे को उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं।
- यह तेजी से जड़ों का विकास करने में सहायक होते है जिससे पानी और पोषक तत्व आसानी से पौधों को प्राप्त हो जाते हैं।
- पीएसबी बैक्टीरिया कुछ खास प्रकार के जैविक अम्ल बनाते हैं जैसे मैलिक, सक्सेनिक, फ्यूमरिक, साइट्रिक, टार्टरिक और एसिटिक एसिड। ये अम्ल फॉस्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाते हैं।
- करेले में रोगों और सूखा के प्रति प्रतिरोध क्षमता को भी यह बढ़ा देते हैं।
- इसका उपयोग करने से 25 से 30% फॉस्फेटिक उर्वरक की आवश्यकता कम होती है।
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- एज़ोटोबैक्टर एक नाइट्रोज़न बैक्टेरिया है जो स्वतंत्रजीवी नाइट्रोजन स्थिरिकरण वायवीय जीवाणु है।
- यह जमीन में उपलब्ध नाइट्रोज़न को सरल रूप में परिवर्तित करके पौधे को प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
- उपलब्ध नाइट्रोज़न का उपयोग भिंडी की फसल के द्वारा किया जाता है जिसके कारण 20% से 25% तक कम नाइट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- ये जीवाणु बीजों के अंकुरण प्रतिशत को बढ़ाने में भी मदद करते हैं।
- भिंडी की फसल में तना और जड़ की संख्या और लंबाई बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।
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- गेंदे की फसल कम समय और कम लागत की फसल है इसी वजह से यह एक काफी लोकप्रिय फसल बन गई है।
- इसकी खेती आसान होने के कारण किसानों द्वारा इसे व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है। यह दो अलग-अलग रंगो नारंगी एवं पीला होता है। रंग एवं आकर के आधार पर इसकी दो किस्में होती हैं- अफ्रीकी गेंदा और फ्रैंच गेंदा।
- गेंदा की खेती लगभग हर क्षेत्र में की जाती है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण फूल की फसल है। इसका उपयोग व्यापक रूप से धार्मिक और सामाजिक कार्यों में किया जाता है।
- गेंदे की खेती कैरोटीन पिगमेंट को प्राप्त करने के लिए भी की जाती है। इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में पीले रंग के लिए किया जाता है।
- गेंदे के फूल से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है साथ ही यह अपने औषधीय गुणों के लिए भी विशेष पहचान रखता है।
- दूसरे फ़सलों में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए इसे फ़सलों के बीच एक रक्षा कवच के रूप में भी लगाया जाता है।
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- कद्दू वर्गीय सब्जियों में इस बीमारी के प्रभाव से पत्तियों की निचली सतह पर राख के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
- इसके कारण ऊपरी सतह पर पीले-पीले धब्बे बनते हैं। इससे खीरा, तोरई तथा खरबूज की फसल को ज्यादा हानि होती है।
- इसके अलावा इसके कारण पत्तियों पर भूरापन लिए हुए काले रंग की पर्ते भी चढ़ जाती हैं। यदि गर्मियों के मौसम में बरसात हो जाए तो यह बीमारी बहुत आम हो जाती है।
- इस रोग के नियंत्रण लिए मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP @ 600 ग्राम/एकड़ या सल्फर 80% WDG @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।
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- अरहर की खेती करने वाले किसानों के लिए यह बहुत ही सावधान रहने का समय है क्योंकि इस समय अरहर की फसल में फूल आते हैं।
- ऐसे में थोड़ी सी सावधानी बरत कर किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। फूल आने की अवस्था में अरहर की फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
- अरहर में फूल झड़ने का एक कारण थ्रिप्स का प्रकोप भी है जिसका नियंत्रण समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
- इसी के साथ यदि इस अवस्था में अरहर की फसल में तनाव की स्थिति बनती है तो इसके निवारण के लिए होमोब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- चने की फसल के लिए ग्रामोफ़ोन की ख़ास पेशकश ‘चना समृद्धि किट’ का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।
- इस किट की कुल मात्रा 4.5 किलो है और यह मात्रा एक एकड़ के खेत के लिए पर्याप्त है।
- इसका उपयोग DAP या पोटाश में मिलाकर किया जा सकता है।
- इसका उपयोग 50 किलो पकी हुई गोबर की खाद, कम्पोस्ट या मिट्टी में भी मिलाकर कर सकते हैं।
- इसके उपयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
- अगर बुआई समय इस किट का उपयोग नहीं कर पाए हैं तो बुआई बाद 15-20 दिनों के अंदर इसका उपयोग मिट्टी में भुरकाव के रूप में कर सकते हैं।
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- लहसुन की फसल एक कंद वाली फसल है इस वजह से इसमें पोषण प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस समय फसल प्रबंधन करने से लहसुन की फसल में कवकजनित रोगों जैसे जड़ गलन, तना गलन, पीलेपन आदि से फसल की सुरक्षा की जा सकती है। इसके प्रबंधन लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ दर से छिड़काव करें।
- लहसुन की फसल लगने वाले रस चुसक कीटों से फसल की रक्षा करने के लिए एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- लहसुन की फसल की एक सामान वृद्धि एवं जड़ों के अच्छे बढ़ावार के लिए यूरिया @ 25 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़+ सल्फर 90% @ 10 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाकर बुआई के बाद 15 दिनों में भुरकाव करें।
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