What to do for more yield in Gram?

फूलों के समय 2% यूरिया का पत्ती पर छिडकाव और उसके बाद 10 दिनों में फिर से, बीज प्रीमिंग (4-5 घंटों के लिए बीज का भिगोना) और 10 सेमी गहराई पर बुवाई करने से वर्षा आधरित स्थिति में उत्पादकता बढ़ाने में लाभकारी पाया गया है।

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Suitable Climate for Wheat

गेहू के लिए उपयुक्त जलवायु:-

  • गेहूँ मुख्यतः एक ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है अतः फसल :बोने के समय 20 से 22 डि. से. , बढ़वार के समय इष्टतम ताप 25 डि. से. तथा पकने के समय 14 से 15 डि. से. तापक्रम उत्तम रहता है।
  • तापमान अधिक होने पर फसल जल्दी पक जाती है और उपज घट जाती है। पाले से फसल को बहुत नुकसान होता है। बाली लगने के समय पाला पड़ने पर बीज अंकुरण शक्ति खो देते है और उसका विकास रूक जाता है ।
  • छोटे दिनो में पत्तियां और कल्लो की वृद्धि अधिक होती है जबकि दिन बड़े होने के साथ-साथ बाली निकलना आरम्भ होता है। इसकी खेती के लिए 60-100 से. मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते है।
  • पौधों की वृद्धि के लिए वातावरण में 50-60 प्रतिशत आर्द्रता उपयुक्त पाई गई है। ठण्डा शीतकाल तथा गर्म ग्रीष्मकाल गेंहूँ की बेहतर फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है ।

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Weed Management of Gram (chickpea)

खरपतवार प्रबंधन सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य पाया गया है| सबसे असरदार अंकुरण पूर्व खरपतवारनाशियों में से पेंडामेथलीन सबसे असरदार साबित हुआ है| अंकुरण के बाद क्यूजेलोफ़ोप ईथाइल अच्छा खरपतवार नियंत्रण करते है|

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Seed treatment of wheat

गेंहू का बीज उपचार:-

  • गेंहू को बुआई से पहले फफुद जनित बिमारियों जैसे जड़ सडन, कंडवा रोग, ध्वज कंडवारोग एवं अन्य से बचने के लिए कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% या कार्बेन्डाजिम 12% + मेनकोझेब 63% 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज या टेबुकोनाज़ोल DS 1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए |
  • दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपायरीफास 4 मिली प्रति किलो बीज से उपचारित करना चाहिए |

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Symptoms of Deficiency and Dose of Sulphur in Onion

सल्फर की कमी के परिणामस्वरूप पत्तियों का एक सामान्य पीलापन नई पत्तों सहित पूरे पौधे पर एक समान होता है| मृदा द्वारा 30 किलो/हे. सल्फर खेत की तैयारी के समय देने की अनुशंसा की जाता है | वैसे तो सल्फर कई रूप में दिया जाता है पर सल्फर 80% WDG छिड़काव के रूप में देने से यह फफूंदनाशी एवं मकड़ी नाशी का भी काम करता है इसलिए सल्फर 80% WDG @ 50 ग्राम/15 लीटर पानी का प्रयोग करे |

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Use of Nitrogen fixing bacteria

नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु फायदेमंद जीवाणु हैं जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर नाइट्रोजन (पौधों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अकार्बनिक यौगिक) में बदलने में सक्षम हैं। कुछ महत्वपूर्ण नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया जैसे कि राइज़ोबियम, एज़ोस्पिरीलियम, एज़ोटोबैक्टर आदि किसानों के द्वारा कल्चर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 5 ग्राम प्रति किलो बीज के अनुसार बीज उपचारित करे| या 2 किलो प्रति एकड़ गोबर की खाद में मिला कर दे|

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Phosphate Solubilizing Bacteria (PSB)

फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) फायदेमंद बैक्टीरिया है यह अघुलनशील यौगिकों से अकार्बनिक फास्फोरस को घुलनशील बनाने में सक्षम है।पीएसबी 5 ग्राम प्रति किलो बीज के अनुसार बीज उपचारित करे | या 5 किलो प्रति एकड़ गोबर की खाद में मिला कर दे |

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Sowing and sowing time of Chickpea (Gram)

  • असिचिंत क्षेत्रों में चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में कर देनी चाहिये। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा हो वहाँ पर बुवाई 30 अक्टूबर तक अवश्य कर देनी चाहिये।
  • फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में प्रति इकाई पौधों की उचित संख्या होना बहुत आवश्यक है। पौधों की उचित संख्या के लिए आवश्यक बीज दर व पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की उचित दूरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है|
  • बारानी खेती के लिए 80 कि.ग्रा. तथा सिंचित क्षेत्र के लिए 60 कि.ग्रा. बीज की मात्रा प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होती है।
  • बारानी फसल के लिए बीज की गहराई 7 से 10 से.मी. तथा सिंचित क्षेत्र के लिए बीज की बुवाई 5 से 7 से.मी. गहराई पर करनी चाहिये। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 से.मी. पर रखनी चाहिये।

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Irrigation in Gram

चने में सिंचाई:-

  • चना में भारी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
  • कुछ क्षेत्रो में दो सिंचाई शाखाएं निकलते समय ( फुल आने से पहले ) एवं फली बनते समय देने से अधिक उपज प्राप्त हुई है लेकिन एक सिंचाई शाखाएं निकलते समय (फुल आने से पहले ) देने से इष्टतम उपज में वृद्धि होती है |

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Suitable soil for Gram

चना भारत में विस्तृत तरह की मिट्टी पर उगाया जाता है। हालांकि रेतीले चिकनी मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में इस तरह की मिटटी में चना लगता है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में, काली कपास की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। बेहतर विकास के लिए मिटटी को अच्छी तरह से सूखा और बहुत भारी नहीं होना चाहिए। भारी मिट्टी में पानी को सोखने की क्षमता होती है जिससे पौधों में भारी वनस्पति विकास हो जाता है और सूर्य की रौशनी कम मिलने के कारन फ्रूटिंग घट जाती है। ध्यान रखें मिटटी में नमक की मात्रा काम हो और pH 6.5 – 7.5 के बीच हो।

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