Soil Preparation and Sowing Time for Wheat

गैंहू के लिए खेत की तैयारी एवं बुआई का समय:-

  • ग्रीष्मकालीन जुताई करें |
  • तीन वर्षों में एक बार गहरी जुताई करें |
  • 2 -3 बार कल्टीवेटर कर खेत को समतल करें |
  • बुवाई का उचित समय
  • असिंचित:- मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक|
  • अर्धसिंचित:- नवम्बर माह का प्रथम पखवाड़ा|
  • सिंचित (समय से):- नवम्बर माह का द्वितीय पखवाड़ा|
  • सिंचित (देरी से):- दिसंबर माह का द्वितीय सप्ताह से|

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Requirement of Irrigations in Pea

मटर के लिए आवश्यक सिंचाई:-

  • यदि भूमि सूखी हो तो अच्छी तरह से बीजांकुर होने के लिये बोने पूर्व सिंचाई करें ।
  • भूमि के प्रकार व मौसमानुसार 10 से 15 के अंतर से सिंचाई करना चाहिये ।
  • फल एवं फल्ली आने के समय नमी की कमी होने पर उपज में कमी आती है अंतः इस समय सिंचाई अवश्य करें ।

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Suitable Climate and soil for Cabbage Cultivation

पत्ता गोभी के लिए उपयुक्त जलवायु एवं भूमि:-

  • पत्तागोभी की किस्में तापमान के प्रति अति संवेदनशील है। अच्छे अंकुरण के लिए 10°C से 21 °C तापमान उपयुक्त है।
  • पौधों व पत्तागोभी के विकास के लिए 15°C से 21°C तापमान अनुकूल है। 10°C से कम तापमान पर पौधों का विकास कम होता व गोभी भी देर से बनती है।
  • पत्तागोभी की खेती, हल्की एवं दोमट मिट्टी जिसका जल निकास अच्छा हो तथा पी.एच. 5.5 से 6.8 हो उपयुक्त होती है।
  • अगेती किस्मों के लिए हल्की मिट्टी व मध्य अवधि किस्मों और पिछेती किस्मों के लिए भारी दोमट भूमि उपयुक्त है।
  • लवणीय भूमि में फंगस व जीवाणु से फैलने वाले रोग ज्यादा होते है।

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Critical stage of irrigation in Potato

आलू में सिचाई की क्रांतिक अवस्था:-

  • आलू की फसल में सीजन के दौरान उच्चतम मृदा नमी को बांये रखने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधन की आवश्यकता होता है |
  • वृद्धि के कुछ चरण जब जल प्रबंधन बहुत महत्त्वपूर्ण है-
  • 1). अंकुरण अवस्था
  • 2). कंद स्थापित अवस्था
  • 3). कंद बढ़वार अवस्था
  • 4). अंतिम फसल अवस्था
  • 5). खुदाई के पूर्व |

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Sowing time, Planting and Seed Rate of Garlic

लहसुन लगाने का समय, लगाने का तरीका एवं बीज दर:-

  • कलियों की चोपाई मध्य भारत में सितम्बर- नवम्बर तक की जाती हैं|
  • लहसुन की कलियॉं को गाँठ से अलग कर लें यह काम बुआई के समय ही करें|
  • कलियों का छिलका निकल जाने पर वह बुआई के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं|
  • कड़क गर्दन वाली लहसुन, जिसके एक एक कली कड़क और अलग अलग हो उपयुक्त होता हैं |
  • बड़ी कलियों (1.5 ग्राम से बड़ी) का चयन करना चाहिए| छोटे, रोग ग्रस्त एवं क्षति ग्रस्त कलियों को हटा दो |
  • लहसुन की बीज दर 400-500 किलो प्रति हे.
  • चयनित कलियों को 2 सेमी. की गहराई पर 15 X 10 सेमी. की दूरी पर लगना चाहिए|

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Nursery bed preparation for Tomato

टमाटर के लिए नर्सरी बनाना:-

  • क्यारियों की लंबाई 3 मी., चौड़ाई 0.6 मी. एवं ऊंचाई 10-15 से.मी. होनी चाहिये ।
  • दो नर्सरी क्यारियों के बीच की दूरी 70 से.मी. होनी चाहिये, ताकि नर्सरी के अंदर निदाई, गुड़ाई एवं सिंचाई जैसी अंतरसस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके ।
  • नर्सरी क्यारियों की सतह चिकनी (भुरभुरी) अच्छी तरह से समतल, ऊंची एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिये ।
  • नर्सरी क्यारियों को बुआई के पूर्व मैंकोजेब के द्वारा उपचारित कर लेना चाहिये ।

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Spacing and Seed Rate of Pea

मटर की दूरी एवं बीज दर:-

  • मटर को कतार से कतार में 30 से.मी. तथा बीज से बीज 10 से.मी. की दूरी पर बोना चाहिये ।
  • बीज को 2-3 से.मी. गहरी  बोना चाहिये ।
  • लगभग 100 कि.ग्रा.  बीज/हेक्टर पर्याप्त होता है ।

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Control of Jassids in Brinjal

बैंगन में जैसिड का नियंत्रण:-

  • शिशु एवं वयस्क कीट दोनों हरे रंग के एवं छोटे आकार के होते है।
  • शिशु एवं वयस्क, पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं ।
  • ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती है जो बाद में पीली हो जाती है एवं उन पर जले हुये धब्बे बन जाते है ।
  • इनके द्वारा माइकोप्लाज्मा रोग जैसे लघु पर्ण एवं विषाणु रोग जैसे चितकबरापन स्थानांतरित होता है।
  • इस कीट के अत्यधिक प्रभाव देखे जाने पर पौधे में फल लगना कम  हो जाता है।

नियंत्रण:-

  • जेसिड की रोकथाम हेतु पौध रोपाई के 20 दिन बाद से  एसीटामिप्रिड 20% WP @ 80 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8%@ 80 मिली/ एकड़ दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

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Happy Ganesh Chaturthi

गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये|

आपकी खुशियाँ

गणेश जी की सूंड की तरह लम्बी हो

आपकी ज़िंदगी

उनके पेट की तरह बड़ी हो

और जीवन का हर

पल लडडु की तरह मीठा हो,

ग्रामोफोन टीम की और से आपको गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये |

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Control of Late Blight in Tomato

टमाटर में पछेती झुलसा रोग का नियंत्रण:-

  • यह रोग पौधे की पत्तियों पर किसी भी अवस्था में होता है।
  • भूरे एवं काले बैगनी धब्बे पर्णवृन्त, डंढल, फल और तने के किसी भी भाग पर उत्पन्न हो सकते है।
  • आक्रमण के अंतिम अवस्था में पौधा मर जाता है।
  • यह रोग कम तापमान एवं अत्यधिक नमी होने पर पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देती है।

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