Signs of Boron deficiency in the crop and ways to prevent it

 

  • विभिन्न  फसलों तथा उनकी अवस्था के अनुसार बोरान की कमी के लक्षण अलग अलग होते हैं पर सामान्यतः इसके लक्षण नई पत्तियों पर देखने को मिलते हैं |
  • इसकी कमी से नई पत्तिया मोटी तथा रंगविहीन हो जाती हैं |
  • बोरान की कमी अधिक होने पर पौधे का शीर्ष गलने लगता हैं ,कई फसलों में फलो का फटना भी बोरान की कमी के लक्षण होते हैं |
  • बोरान की कमी आमतौर पर अधिक pH  वाली मिट्टी में देखी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में बोरान उस मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में हो, तो भी पौधे को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • कम कार्बनिक पदार्थ वाली मिट्टी (<1.5%) या रेतीली मिट्टी (जिसमे पोषक तत्वों की लीचिंग के द्वारा नष्ट हो जाते हैं) में भी बोरान की कमी अधिक  होती हैं।
  • बोरान की कमी से बचने के उपाय:-
  • अधिक pH वाली मिट्टी में फसल की बुवाई नहीं करे |
  • सुखी मिट्टी में तथा अधिक वातावरण की नमी बोरान की उपलब्धता को कम करती हैं |
  • अधिक उर्वरक और चुना का प्रयोग नहीं करना चाहिए |
  • अधिक सिंचाई न करे |
  • मिट्टी का नियमित परीक्षण कर अपने क्षेत्र के पोषक तत्वों के स्तर की पूरी जानकारी लेते रहे।
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Management of stem fly in the mungbean

  • मूँग की फसल में तना मक्खी के द्वारा उपज में नुकसान 24.24-34.24% के बीच नुकसान बताया गया है।
  • तना मक्खी मूँग के अंकुरण के समय  एक गंभीर कीट है और इसे भारत में मूँग के एक प्रमुख कीटो के रूप में पहचाना गया है। यह कीट पौधे को प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित करता है जिससे पोधा सूखने और मुरझाने लगता हैं ( अंकुरण के 4 सप्ताह बाद तक)।
  • तना मक्खी के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल @ 100 मिली  प्रति एकड़ और बिफेन्थ्रिन 10% ईसी @ 300 मिली प्रति एकड़ प्रति एकड़ की दर से पत्तियों पर स्प्रे करें।

 

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How much harmful stem borer in sweet corn and how to control ?

  • भारत में कीट एवं रोग के प्रकोप से स्वीट कॉर्न की उपज में लगभग 13.2% कमी हो सकती  हैं |
  • हमारे देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में, इस कीट से मक्का की कुल उपज में  26.7 से 80.4 % नुकसान अनुमानित हैं।
  • इस कीट की लार्वा तने के मध्य से प्रवेश कर आंतरिक ऊतको को खाकर तने में छेद बना देते हैं (इस स्थिति को “डेड हार्ट” कहा जाता हैं)
  • यह कीट बुवाई के 1-2 सप्ताह से लेकर कटाई तक नुकसान पहुँचाता हैं|
  • कार्बोफ्यूरान 3% G @ 5-7 किलोग्राम प्रति एकड़ का मिट्टी में बुरकाव करे।
  • डाइमेथोएट 30% EC @ 180-240 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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Importance of Zinc

  • भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक ज़िंक की कमी पाई जाती हैं जो की 2025 तक 63% तक हो जाएगी|
  • अध्ययनो से पता चला हैं की ज़िंक की कमी मिट्टी में होने पर उस मिट्टी में उत्पादित फसलों में भी ज़िंक की कमी होती हैं (IZAI) के अनुसार भारत की 25% जनसंख्या में ज़िंक की कमी हैं |
  • भारत में, जिंक (Zn) को फसल उपज की कमी के लिए चौथा सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जाता हैं | यह आठ आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक हैं।
  • ज़िंक की कमी से फसल की पैदावार और गुणवत्ता में बहुत हद तक कमी आ सकती हैं। ऐसा देखा गया हैं की पौधों में ज़िंक की कमी के लक्षण दिखने के पहले ही फसल की उपज में 20% तक कमी आ जाती हैं |
  • जिंक पौधे के विकास के लिए अहम् होता है| यह पौधों में, कई एंजाइमों और प्रोटीनों का एक प्रमुख घटक है। इसके साथ साथ ज़िंक पौधों के विकास सम्बन्धी हार्मोन का उत्पादन भी करता हैं परिणाम स्वरुप इंटर्नोड का आकर बढ़ता हैं।

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How to Save 20-25% of Nitrogen Fertilizer

  • एज़ोटोबैक्टर स्वतंत्रजीवी नाईट्रोजन स्थिरिकरण वायवीय जीवाणु हैं |
  • यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थरीकरण करता है |
  • इसका उपयोग करने पर प्रति फसल 20 % से 25 % तक कम नाईट्रोजन उर्वरक की आवश्यकता होती हैं|
  • यह पौधो की जड़ो में विभिन्न प्रकार के विटामिन्स और जिब्रेलिन्स का स्त्राव करता है जिससे बीजो का शीघ्र जमाव (अंकुरण ) व जड़ो की अच्छी बढ़वार तथा पौधो में सूक्ष्म पोषक तत्वों एवंम जल के अवशोषण की क्षमता बढ़ती है|
  • बीज उपचार- एज़ोटोबैक्टर( सी.फ.यू.1 X108 ) :-  4 – 5 मिली /किलो बीज
  • मृदा  में अनुप्रयोग –एज़ोटोबैक्टर( सी.फ.यू.1 X108 ) 1 लीटर की मात्रा को 40-50 किलोग्राम अच्छी तरह से विघटित FYM / खाद या वर्मी कम्पोस्ट या खेत की मिट्टी में मिला कर बुवाई से पहले दिया जाता है  या खड़ी फसल में बुवाई के 45 दिन बाद सिचाई से पहले खेत में बिखेर कर दे |
  • ड्रिप सिंचाई – एज़ोटोबैक्टर (सी.फ.यू.1 X108 ) 1 लीटर की मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाएं और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से खेत में दे|

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How to increase flowering in Bottle gourd?

  • लोकी के पोधे में मादा फूलो से अधिक फल बनते हे  जिससे उत्पादन ज्यादा होता है
  • जब पोधे पर 6-8 पत्तीया आ जाए तब, इथेलीन या जिब्रेलिक अम्ल  0.25-1ml प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर लोकी के बेलों और फूलो पर छिडकाव करे , जिससे मादा फूलो एवं फलो की संख्या बढ़ जाती है और दुगुनी हों सकती  है

इस छिडकाव का असर पोधो पर 80 दिनों तक रहता है

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Suggestions for control of yellowing of Coriander Leaves

  • धनिया एक मसाले वाली महत्वपूर्ण फसल हे, जिसके सभी भाग तना,पत्ती एवं बीज का उपयोग किया जाता हैं।
  • यदि इसका प्रबंधन सही नही हो, तो यह पीली पड़ जाती हे, जिससे उत्पादन में कमी होती है।
  • भूमि में नाईट्रोजन की कमी एवं बीमारी ओर कीट की समस्या होने से धनिया की पत्तीया पीली पड़ जाती है।
  • इसके प्रबंधन के लिए बेसल डोज में उर्वरको के साथ  नाईट्रोजन एवं फस्फोरस स्थरीकरण जीवाणु की मात्रा 2 kg प्रति एकड़ की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दे।
  • थायोफिनेट मिथाईल 70 % डब्लूपी @ 250-300 ग्राम और क्लोरोपयरिफोस 20 % ईसी @ 500 ml प्रति एकड को सिचाई के साथ दे।
  • इस स्प्रे के बाद 19:19:19 का 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना चाहिए।

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How to protect our crops from White Grubs

किसानों के  लिए सफ़ेद ग्रब एक चुनौतीपूर्ण विषय बन गया है। इस कीट के  हमले से 80-100

प्रतिशत तक की नुक्सान होने की संभावना बताई गयी हे फसलो में 2-14 ग्रब से 64.7 प्रतिशत तक की हानि रिकॉर्ड की गयी हे

जीवन चक्र:-

  1. इस कीड़े के वयस्क पहली बारिश के बाद प्यूपा अवस्था से बहार आते हे और अगले एक महीने में जमीन में 8 इंच नीचे अपने अंडे  देते है
  2. ये अंडे 3-4 सप्ताह में लार्वा अवस्था (इल्ली अवस्था ) में बदल जाते है
  3. इस कीट के लार्वा अगले 4-5 महीनो में अपनी अवस्था बदलते हुए फसल को नुकसान पहूंचाते है और गर्मी शुरू होने से पहले पुनः प्यूपा अवस्था में चले जाते है

नियंत्रण केसे करे ?

रसायनिक उपचार:- फेनप्रोपेथ्रिन 10% ईसी  @ 500 मिली प्रति एकड़, फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 100 ग्राम / एकड़ या क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी @ 500 मिली / एकड़ का मिटटी में छिडकाव करे।

जैविक उपचार:– मेटाराइजियम स्पी. @ 1 किग्रा / एकड़ और बेवरिया + मेटाराइजियम  स्पी. @ 2 किग्रा / एकड़ की दर से पहले उर्वरक छिडकाव के साथ दे।

यांत्रिक नियंत्रण:-  लाइट ट्रैप का उपयोग करे।

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Thing to keep in mind before selecting Suitable cotton variety to your field

अधिक उपज के लिए सही व उचित किस्म का चयन करना जरूरी हैं। किस्म का चुनाव खेती के उद्देश्य पर निर्भर करता हैं। इसलिए हम यहां ख़ास उद्देश्य हेतु लोकप्रिय किस्मों के बारे में बता रहे हैं।

अगेती किस्मे:- ( 140-160 दिन )

  • आरसीएच 659 बीजी-2 ( रासी )
  • मनीमेकर ( कावेरी )
  • भक्ती ( नुजिवीडू)

मिट्टी के किस्म के आधार पर:-

  • आरसीएच 659 बीजी-2 ( रासी ) ( मध्यम से भारी मिट्टी के लिये )
  • नीओ ( रासी ) ( मध्यम से हल्की मिट्टी के लिये )

अच्छे आकार की बोल वाली किस्मे:-

  • आरसीएच 659 बीजी-II
  • मनीमेकर ( कावेरी )
  • एटीएम केसीएच- बीजी-2 ( कावेरी )
  • जेकपॉट ( कावेरी )

अच्छे बोल वजन वाली किस्मे (6-7.5 ग्राम)  :-

  • जेकपॉट ( कावेरी )
  • जादू ( कावेरी )
  • एटीएम केसीएच- बीजी-2 ( कावेरी )

रस चुसक कीटो के प्रति सहिष्णु:-

  • नीओ ( रासी )
  • भक्ति ( नुज़िवीडू )

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How to prepare Nursery for chilli

  • मिर्च के लिए नर्सरी तैयार करने का समय 1 मई से 30 मई हैं |
  • सबसे पहले मिट्टी को जुताई कर बारीक कर ले।
  • एक एकड़  क्षेत्रफल के लिए 60 मीटर वर्ग क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है इस जगह को 3 मीटर लंबाई तथा 1.25 मीटर चौड़ाई के 16 से18 नर्सरी बेड में विभाजित कर लेते हैं
  • 60 मीटर वर्ग क्षेत्र के लिए 750 gm डीएपी 150 किलो गोबर की खाद की आवश्यकता होती हैं |
  • फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए थियोफैनेट मिथाइल 0.5 ग्राम / वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाइये।
  • मिर्च  के लिये उपयुक्त  बीज की दर 100 ग्राम / एकड़ हैं |

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