- भारत में देसी गायों की दुधारू नस्लों में गिर, रेड सिंधी, साहीवाल, राठी, देवनी, हरियाणा, थारपारकर, कांकरेज, मालवी, निमाड़ी इत्यादि प्रमुख हैं।
- देसी गाय का दूध A2 प्रकार का दूध है जिसके सेवन से शरीर में रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है इस कारण दूध की कीमत भी अधिक मिलती है।
- ये नस्लें पर्यावरणीय बदलावों और विपरीत परिस्थिति से लड़ने की क्षमता रखती है।
- इन नस्लों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है और रखरखाव खर्च भी कम आता है।
किसानों के लिए लाभकारी है डायरेक्ट मार्केटिंग, कोरोना संकट के बीच दिया जा रहा है बढ़ावा
कोरोना संकट के बीच भारत सरकार किसानों के बीच डायरेक्ट मार्केटिंग या प्रत्यक्ष विपणन को बढ़ावा दे रही है। इसके अंतर्गत किसानों की सुविधा और बेहतर रिटर्न मिले सरकार इसके लिए प्रयासरत है। इसके साथ ही केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को भी अनुरोध किया गया है कि वे किसानों/किसान समूहों/एफपीओ/सहकारी समितियों को थोक खरीदारों/बड़े खुदरा विक्रेताओं/प्रोसेसरों आदि को अपनी उपज बेचने में सुविधा प्रदान करने के लिए ’डायरेक्ट मार्केटिंग’ को बढ़ावा दें।
बहरहाल कई राज्यों ने ’डायरेक्ट मार्केटिंग’ को बढ़ावा दिया भी है। इन राज्यों में कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात जैसे राज्य शामिल है।
लॉकडाउन के दौरान कई राज्यों में ’डायरेक्ट मार्केटिंग’ के अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं। राजस्थान में लॉकडाउन के दौरान 1,100 से ज्यादा डायरेक्ट मार्केटिंग के लाइसेंस दिए गए जिससे किसानों को अपनी उपज बेचने में आसानी हुई।
तमिलनाडु में इसके अंतर्गत बाजार शुल्क माफ हो गए जिसकी वजह से व्यापारियों ने किसानों से उनके खेतों से उपज खरीद लिया। वहीँ उत्तर प्रदेश में किसानों तथा व्यापारियों के साथ एफपीओ शहरों के उपभोक्ताओं को उपज की आपूर्ति कर रहे हैं। इससे किसानों के अपव्यय में बचत और प्रत्यक्ष लाभ मिल रही है।
स्रोत: कृषक जगत
Shareबागवानी वाली फसलों में ऐसे करें दीमक (उदई) नियंत्रण
- दीमक की समस्या बागवानी वाली फसल जैसे अनार, आम, अमरुद, जामुन, निम्बू, संतरा, पपीता, आंवला आदि में देखने को मिलता है।
- यह जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। इसका अधिक प्रकोप होने पर ये तने को भी खाने लगते हैं और मिट्टी युक्त संरचना बनाते हैं।
- गर्मियों में मिट्टी में दीमक को नष्ट करने के लिए गहरी जुताई करें और हमेशा अच्छी सड़ी खाद का हीं प्रयोग करें।
- 1 किग्रा बिवेरिया बेसियाना को 25 किग्रा गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर पौधरोपण से पहले डालना चाहिए।
- दीमक के टीले को केरोसिन से भर दे ताकि दीमक की रानी के साथ-साथ अन्य सभी कीट मर जाएँ।
- दीमक द्वारा तनों पर बनाये गए छेद में क्लोरोपायरिफोस 50 ईसी @ 250 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें और पेड़ की जड़ों के पास यही दवा 50 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर डाले।
तुलसी के पौधे की क्या है वैज्ञानिक महत्ता
- तुलसी के पौधे के धार्मिक महत्व के साथ साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी खूब है। इसका काढा बुखार, जुकाम, खांसी दूर करने में फ़ायदेमंद होता है।
- यह पौधा शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बनाने के साथ-साथ जीवाणु और विषाणु संक्रमण से भी लड़ता है।
- तुलसी का पौधा एक प्राकृतिक हवा शोधक है जो 24 में से 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड तथा सल्फर ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों को भी अवशोषित करता है।
- यह आयरन व मैंगनीज का स्रोत होता है जो आपके शरीर में विभिन्न यौगिकों को चयापचय में मदद करता है।
- एंटीऑक्सिडेंट का समृद्ध स्रोत होने के कारण यह पौधा तनाव को भी कम करने में सहायक है।
फसल बीमा योजना: जरूरी दस्तावेज़ों के साथ करें आवेदन, फसल के नुकसान पर होगी भरपाई
बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अक्सर किसानों की फसल प्रभावित होती है। इससे बचने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की थी। इस योजना से किसान अपने फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। यह योजना साल 2016 में शुरू हुई जिससे अब तक देश के करोड़ो किसान लाभान्वित हो चुके हैं।
कैसे करें आवेदन?
इसका आवेदन आप बैंक के माध्यम से और ऑनलाइन भी कर सकते हैं। ऑनलाइन आवेदन देने के लिए https://pmfby.gov.in/ लिंक पर जाकर फॉर्म भरें। इसके आवेदन के लिए एक फोटो और पहचान पात्र हेतु पैन कार्ड, ड्रायविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड या आधार कार्ड की जरुरत होती है। इसके अलावा एड्रेस प्रूफ के लिए भी एक दस्तावेज़ जरुरी होता है जिसके लिए किसान को खेती से जुड़े दस्तावेज़ और खसरा नंबर दिखाने होते हैं। फसल की बुआई हुई है इसकी सत्यता हेतु प्रधान, पटवारी या फिर सरपंच का पत्र देना होता है। एक कैंसिल चेक भी देना होता है ताकि क्लेम की राशि खाते में सीधे आए।
स्रोत: नई दुनिया
Shareपशुओं में आफरा की समस्या होने पर उपचार कैसे करें?
- आफरा हो जाने पर इलाज में देर करने से पशु की मृत्यु तक हो जाती है। इसलिए इलाज में देरी नही करनी चाहिए। तुरन्त चिकित्सक बुलाये या निम्न में से कोई एक उपाय करने से भी पशु की जान बचाई जा सकती है।
- एक लीटर छाछ में 50 ग्राम हींग और 20 ग्राम काला नमक मिला कर उसे पिलाए। या
- सरसों, अलसी या तिल के आधा लीटर तेल में तारपीन का तेल 50 से 60 मी.ली. मिला कर पिलाये। या
- आधा लीटर गुनगुने पानी में 15 ग्राम हींग घोल कर नाल द्वारा पिलाये।
- ऊपर दिए गये आफरे के घरेलू उपचार है तथा कुछ दवाइयाँ भी पशुपालक को अपने पास रखनी चाहिए ताकि चिकित्सक के समय पर ना आने पर उचित इलाज हो सके।
- आफरा नाशक दवाइयों में एफ़्रोन, गार्लिल, टीम्पोल, टाईम्पलेक्स आदि प्रमुख है जिसे चिकित्सक के परामर्श पर ही पशु को देना चाहिए।
पशुओं में आफरा रोग के लक्षण और कारण
- पशु को सांस लेने में कठिनाई होना, पशु का पेट अधिक फूल जाना, ज़मीन पर लेट कर पाँव पटकना,पशु का जुगाली नही करना, चारा-पानी बंद कर देना, नाड़ी की गति तेज हो जाना किन्तु तापमान सामान्य रहना आदि आफरे के प्रमुख लक्षण है।
- आफरा का असर बढ़ने पर पशु की हालत गंभीर हो जाती है और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है।
- बरसीम, जई और दूसरे रसदार हरे चारे, विशेषकर जब यह गीले होते है तब पशु द्वारा खाया जाना आफरे का कारण बनते है।
- गेहूं, मक्का जैसे अनाज ज्यादा मात्रा में खाने से भी आफरा हो जाता है क्योंकि इनमें स्टार्च की मात्रा अधिक होती है।
- बरसात के दिनों में कच्चा चारा अधिक मात्रा में खा लेना, गर्मी के दिनों में उचित तापमान न मिलना, पाचन क्रिया गड़बड़ाना, अपच हो जाना, पशु को खाने के तुरन्त बाद खूब सारा पानी पिलाने आदि से भी आफरा हो जाता है।
कृषि व्यवसाय हेतु 20 लाख के लोन पर मिलेगी 8.8 लाख की सब्सिडी, जानें आवेदन की प्रक्रिया
पढ़े लिखे युवाओं को कृषि क्षेत्र में लाने के लिए सरकार कई तरह के प्रयास कर रही है। अब केंद्र सरकार ने कृषि संबंधित व्यवसाय को बढ़ावा देने और इससे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने का प्लान तैयार किया है। इस प्लान के अंतर्गत खेती से जुड़े व्यवसाय की शुरुआत के लिए 20 लाख रुपए तक का लोन सरकार देने वाली है।
आवेदन देने वाली व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से 20 लाख रुपए और पांच व्यक्तियों के समूह को 1 करोड़ रुपए तक का लोन दिया जाएगा। सामान्य वर्ग के आवेदकों को इस लोन पर 36 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिला वर्ग के आवेदकों को 44 प्रतिशत सब्सिडी दी जायेगी।
इस योजना का लाभ पाने के लिए किसी भी व्यक्ति को 45 दिन की ट्रेनिंग लेनी होती है। ट्रेनिंग के बाद अगर व्यक्ति इस लोन के योग्य पाया जाता है तो नाबार्ड उसे ऋण देगा। इस योजना से जुड़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ https://www.acabcmis.gov.in/ApplicantReg.aspx
Shareकिसानों को 36,000 रूपए सालाना पेंशन, जानें योजना की जानकारी और आवेदन की विधि
किसानों को वृद्धावस्था में कई प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ता है। शरीर कमजोर हो जाने से वे कृषि कार्यों में भी पूर्णतः भागीदारी नहीं निभा पाते इसी लिए उन्हें वृद्धावस्था आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। किसानों के वृद्धावस्था में इसी आर्थिक संकट को दूर करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत बुढ़ापे में किसानों को 36,000 रूपए सालाना पेंशन दी जायेगी।
18 से 40 वर्ष के मध्य आने वाले किसान इस योजना में रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। किसानों को इस योजना में कम से 20 और अधिकतम 42 साल तक 55 से 200 रुपये का मासिक प्रीमियम जमा करना होगा। जितनी रकम किसान जमा करेंगे उतनी ही रकम सरकार भी इसमें जमा करेगी। आखिर में किसान के 60 वर्ष की उम्र पार करने के बाद सरकार की तरफ से 36,000 रूपए सालाना पेंशन मिलेगी। यह 36,000 रूपए किसानों 3 हजार रुपये के क़िस्त में हर माह दी जायेगी।
कैसे करें रजिस्ट्रेशन?
किसान इस योजना के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन अपने नज़दीकी कॉमन सर्विस सेंटर पर जाकर करवा सकते हैं। इसके रजिस्ट्रेशन में कोई शुल्क नहीं लगता है। अगर कोई किसान पीएम-किसान सम्मान निधि के अंतर्गत लाभ उठा रहा है तो उसे इस योजना के लिए सिर्फ आधार कार्ड लेकर जाना होता है।
किसानों का पैसा नहीं डूबेगा
अगर कोई किसान इस योजना को बीच में ही छोड़ना चाहता है तो उसके द्वारा जमा किया गया पैसा डूबेगा नहीं बल्कि उसके द्वारा जमा की गई रकम सेविंग अकाउंट के अंतर्गत मिलने वाले ब्याज के साथ लौटा दिया जाएगा।
स्त्रोत: कृषि जागरण
Shareमिर्च की फसल में वैज्ञानिक विधि से नर्सरी प्रबंधन कैसे करें?
- मिर्च की पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों की बुआई 3 गुणा 1.5 मीटर आकार की भूमि में करनी चाहिए तथा इसमें क्यारियां जमीन से 8-10 सेमी ऊँची उठी होनी चाहिए ताकि पानी इकट्ठा होने से बीज व पौध सड़ न जाये।
- एक एकड़ क्षेत्र के लिए 100 ग्राम मिर्च के बीजों की आवश्यकता होती है। 150 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद में 750 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम इंक्रील (समुंद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड और माइकोराइजा) और 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलाएं ताकि मिट्टी की संरचना के साथ पौधे का विकास अच्छा हो और हानिकारक मृदाजनित कवक रोगों से भी सुरक्षा हो जाए।
- बुआई के 8-10 दिन बाद एफिड व जैसिड कीट आने पर 10 ग्राम थाइमेथोक्सोम 25% WG 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा 20-22 दिन बाद दूसरा छिड़काव 5 ग्राम फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG को 15 लीटर पानी संग छिड़काव करें।
- बुआई के 15-20 दिन बाद आर्द्र गलन की समस्या नर्सरी में आती है, अतः 0.5 ग्राम थियोफिनेट मिथाइल 70 WP का छिड़काव या डेंचिंग प्रति वर्ग मीटर करें या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
