फसलों को टिड्डियों के हमले से कैसे बचाया जाए?

How to protect crops from Locust attack
  • टिड्डी दल फ़सलों को कुछ ही घंटों में चट कर जाती हैं साथ ही साथ जिस पेड़ पर ये बैठती हैं उसकी सारी हरियाली खत्म कर देती हैं। अतः टिड्डी दल दिखाई देते ही बिना देर किए इसकी सूचना तुरंत प्रशासन को दें। 
  • खेतों में क़ब्ज़ा जमाये टिड्डी दल को उस क्षेत्र से हटाने या भगाने के लिए ध्वनि विस्तारक यंत्रों यानी लाउड स्पीकर का इस्तेमाल किया जा सकता है, इसकी आवाज़ से टिड्डी दल भागने लगते हैं।
  • इसके अलावा आप अपने खेतों में कही कही आग जलाकर, पटाखे फोड़ कर, थाली बजाकर, ढोल नगाड़े बजाकर, ट्रैक्टर के साइलेंसर को निकाल कर तेज ध्वनि निकाल कर भी टिड्डियों को दूर भगा सकते हैं। 
  • अगर आप टिड्डियों के झुंड को अपने खेतों में बैठते हुए शाम के समय देखें तो रात के समय ही खेत में कल्टीवेटर चला दें। इसके अलावा कल्टीवेटर के पीछे खंबा, लोहे की पाइप या ऐसी ही कोई अन्य वस्तु बांध के चलाएं। ऐसा करने से पीछे की भूमि पुनः समतल हो जायेगी और टिड्डी उसमें दब कर मर जाएंगे।  
  • जहाँ टिड्डियां अंडे देती है उन स्थानों को खोद कर या पानी भरकर या फिर जुताई करके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा रासायनिक दवा मैलाथियान 5% चूर्ण को 10 किलो प्रति एकड़ की दर से अंडे देने वाली जगह पर भुरकाव कर देना चाहिए। 
  • अंडों से निकलने वाले फाके पहली और दूसरी अवस्था में चलने लायक नहीं होते अतः इन्हे इसी अवस्था में नष्ट कर देना चाहिए। तीसरी अवस्था में ये झुंड में चलना शुरू कर देते हैं अतः फाको के बढ़ने वाली दिशा में ढाई फूट गहरी और एक फुट चौड़ी खाई खोद दें (S) ताकि फाके इसमें गिर जाएँ। इसके बाद इन गड्ढों को मिट्टी से भर दें ताकि इनमें गिरे फाके दब कर खत्म हो जाएँ।
  • टिड्डी को कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके इनको मारा जा सकता है। 
  • टिड्डी दल के प्रभाव को कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके कम किया जा सकता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरिफॉस 20% EC 480 मिली या क्लोरोपायरिफॉस 50% EC 200 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8% EC 200 मिली या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 5% EC 160 मिली या (46) लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 10% WP 80 ग्राम या मेलाथियान 50% EC 740 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी की दर से कीटनाशकों का उपयोग टिड्डियों पर किया जा सकता है।
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धान की खेती में लाभकारी होगा बीज उपचार, जानें उपचार की विधि

Seed treatment will be beneficial in paddy cultivation, know the method of treatment
  • धान की फसल में फफूंद एवं जीवाणुनाशक दवाओं से बीज के द्वारा फैलने वाली फफूंद एवं जीवाणु जनित रोगों को नियंत्रित किया जाता है। 
  • रोग से बचाव के लिए एक किलो बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 64% या 3 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% DS या 3 मिली थियोफेनेट मिथाइल 45% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% FS से बीज उपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। 
  • इसके बाद बीज कों समतल छायादार स्थान पर फैला दें तथा इसे भीगे जूट की बोरियों से ढक दें। बोरियों के ऊपर पानी का छिड़काव करें जिससे नमी बनी रहे। 24 घंटे के बाद बीज अंकुरित हो जाएगा। 
  • फिर अंकुरित बीज को समान रूप से बुआई कर दें। ध्यान रखें कि बीज की बुआई शाम को करें क्योंकि अधिक तापमान से अंकुरण नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।
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जानें क्या है माइकोराइजा और मिर्च की फसल को यह कैसे पहुँचाता है लाभ

Mycorrhiza effect on chilli plant
  • माइकोराइजा एक जैविक उर्वरक है जो कवक और पौधों की जड़ों के बीच का एक संबंध रखता है। इस प्रकार के संबंध में कवक पौधों की जड़ पर आश्रित हो जाता है और मृदा-जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है। 
  • माइकोराइजा के उपयोग से जड़ों का बेहतर विकास होता है।
  • माइकोराइजा पौधों के लिए मृदा से फास्फोरस की उपलब्धता और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के अवशोषित करने में मदद करता हैं। 
  • माइकोराइजा मिट्टी से फास्फोरस की उपलब्धता को 60-80 % तक बढ़ाता है।
  • माइकोराइजा पौधों के द्वारा जल के अवशोषण की क्रिया दर को बढ़ाकर पौधे को सूखे के प्रति सहनशीलता बढ़ाता है। जिससे यह पौधों को हरा भरा रखने में मदद मिलती है।  
  • अतः यह फ़सलों की पैदावार को बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
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गाय एवं भैंस वंशीय पशुओं को संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए लगाया जाएगा मुफ्त टीका

Free vaccination to protect Cow Descent animals from infectious diseases

वर्षा ऋतु आने को है और आपको पता ही होगा की बरसात के मौसम में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों के फैलने का डर बना रहता है। खासकर के गाय एवं भैंस वंशीय पशुओं में फूट एंड माउथ और ब्रुसेला डिसीज जैसी संक्रामक बीमारियों के होने कि संभावना ज्यादा रहती है | इसकी रोकथाम के लिए अब केंद्र सरकार एक टीकाकरण योजना शुरु कर रही है जिससे बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोका जा सकता है |

इस योजना के अंतर्गत देश के अलग–अलग राज्यों में सभी गाय तथा भैंस वंशीय पशुओं को टीका लगाया जाना है। मध्य प्रदेश सरकार भी बरसात शुरू होने से पहले टीकाकरण को शुरू करने जा रही है और यहाँ करीब 290 लाख गाय तथा भैंस वंशीय पशुओं का टीकाकरण किया जायेगा।

भारत सरकार की तरफ से इस योजना के लिए 13 हजार 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत एक वर्ष में दो बार टीकाकरण किया जायेगा।

स्रोत: किसान समाधान

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मिर्च की फसल में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग से बचाव के उपाय

bacterial leaf spot in chilli
  • पुरानी फसल के अवशेष व खरपतवारों से खेत को मुक्त रखना चाहिए। 
  • इससे रोग रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम/ एकड़ या 
  • कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली/ एकड़ या 
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम/ एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
  • जैविक माध्यम से इस रोग के लिए 500 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस और  500 मिली बेसिलस सबटिलिस प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
  • फलों के बनने के बाद स्ट्रेप्टोमाइसिन दवा का छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए।
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कपास की फसल में जीवाणु झुलसा रोग के निवारण के उपाय

Bacterial Blight in Cotton crop
  • इस रोग से बचाव हेतु 4 टन सड़ी गोबर की खाद में 2 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडी को अच्छी तरह से मिलाकर खेत में छिड़काव कर दे उसके तुरंत बाद पानी लगा दे या पहली बारिश के बाद खेत में छिड़काव कर दे। 
  • इससे रोग रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम/ एकड़ या 
  • कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली/ एकड़ या 
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम/ एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • जैविक माध्यम से इस रोग के लिए 500 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस और  500 मिली बेसिलस सबटिलिस प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
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खेती में नुकसान झेलने वाले म.प्र के किसानों को आर्थिक मदद देती है भावांतर भुगतान योजना

Bhavantar Bhugtan Yojana provides financial help to farmers of MP who suffer losses

खेती में होने वाले नुकसान के समय किसानों को वित्तीय सहायता देने उद्देश्य मध्यप्रदेश सरकार ‘मुख्यमंत्री भावांतर भुगतान योजना’ चलाती है। इस योजना के अंतर्गत किसानों को नुकसान होने की स्थिति में, नुकसान भरपाई सीधे किसान के एकाउंट में पैसे भेजकर की जाती है।

किसानों को नुकसान आम तौर पर फसल का वाजिब भाव नहीं मिल पाने की वजह से होता है। इसी नुकसान की भरपाई करते हुए उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए भावांतर योजना काम आती है।

इस योजना से फसल की कीमतें गिर जाने पर मध्य प्रदेश सरकार बाजार भाव और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बीच के अंतर की राशि किसानों को देती है। यह राशि किसानों के खाते में जमा की जाती है।

कैसे उठायें इस योजना का लाभ?
भावांतर योजना का फायदा उठाने के लिए किसानों को अपनी उपज को बेचने से पहले रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होता है। इसका रजिस्ट्रेशन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बनाए एमपी उपार्जन पोर्टल पर कराया जा सकता है। रजिस्ट्रेशन कराने के बाद किसान को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलना सुनिश्चित हो जाता है। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।

स्रोत: नई दुनिया

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कपास की फसल में जीवाणु झुलसा रोग की पहचान

Bacterial blight disease in Cotton crop
  • जीवाणु झुलसा रोग संक्रमित पौधे के किसी भी हिस्से और पौधे के विकास के किसी भी अवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।
  • पौधे के विकास के शुरुआती अवस्था में जलमग्न, गोलाकार या अनियमित घाव तने में फैल जाते हैं और अंत में मुरझाने और अंकुर की मृत्यु हो जाती है जिसे सीडलिंग ब्लाइट के रूप में जाना जाता है।
  • छोटे, गहरे हरे, जलमग्न कोणीय धब्बे सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर विकसित होते हैं, धीरे-धीरे ये धब्बे बढ़ते हुए गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं और बाद में दोनों पत्तियों की सतह पर ये धब्बे दिखाई देते है, जिसे कोणीय पत्ती धब्बा कहते है।
  • इसमें पत्तियों की शिराएं काली पड़ जाती है और पत्तियां झुर्रीदार और मुड़ी हुई दिखाई देने लगाती है। जिसे शिरा परिगलन कहते है। 
  • तने और शाखाओं पर काले घाव और पत्तियों का समय से पहले गिरना इसका लक्षण है जिसे ब्लैक आर्म के रूप में जाना जाता है।
  • इस रोग में बोल (डेंडु) में सड़े- गले बीज और रेशे बेरंग हो जाते है। संक्रमित डेंडु में कोणीय के बयाज गोल जलमग्न धब्बे दिखते है जो समय के साथ गड्डेदार और गहरे भूरे या काले होते जाते है, इसे बोल रॉट कहते है।
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मिर्च की फसल में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण

Bacterial leaf spot disease in Chilli crop
  • पहले लक्षण नए पत्तों पर छोटे पीले- हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है तथा ये पत्तियां विकृत और मुड़ी हुई होती है।  
  • बाद में पत्तियों पर छोटे गोलाकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले चिकने धब्बे दिखाती देते हैं। जैसे ही ये धब्बे आकार में बड़े होते है, इनमें बीच का भाग हल्का और बाहरी भाग गहरा हो जाता है। 
  • अंत में ये धब्बे छेदों में बदल जाते है क्योंकि पत्तों के बीच का हिस्सा सूख कर फट जाता है।  
  • गंभीर संक्रमण होने पर प्रभावित पत्तियां समय से पहले झड़ जाती हैं।
  • फलों पर गोल, उभरे हुए, पीले किनारों के साथ जलमग्न धब्बे बन जाते है। 
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पपीते के पौधों में लौह तत्व की कमी के लक्षण

Symptoms of Iron deficiency in Papaya plants
  • लौह तत्व की कमी सबसे पहले नई पत्तियों पर दिखाई देती है। इसमें ऊपरी पत्तियां का पीली पड़ जाती है किंतु शिरायें हरी बनी रहती है। 
  • बाद के चरणों में यदि कोई उपाय नहीं किया जाता है तो पूरी पत्ती सफ़ेद-पीली हो जाती है और पत्ती की सतह पर भूरे गले हुए धब्बे उभर आते है। 
  • इससे प्रकाश संश्लेषण की दर कम हो जाती है जिससे पौधा भोजन नहीं बना पाता तथा पौधे की उपज संभावना कम हो जाती है। 
  • इसकी कमी को 15 ग्राम चिलेटेड आयरन को प्रति 15 लीटर पानी की टंकी में घोल कर पत्तियों पर छिड़काव करके दूर कर सकते है। या
  • फेरस सल्फेट (Fe 19%) की 30 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी की टंकी में घोल कर पत्तियों पर छिड़काव करे तथा दूसरा छिड़काव 15-20 दिनों बाद करे।
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