- खेत में रोपाई के 20 से 30 दिन बाद मिर्च की फसल के बेहतर विकास के लिए आवश्यक प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व का फसल में उपयोग करना बहुत आवश्यक है।
- ये सभी पोषक तत्व मिर्च की फसल में सभी तत्वों की पूर्ति करते हैं जिसके कारण मिर्च की फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
- पोषक तत्व प्रबंधन में यूरिया- 25 किग्रा, डीएपी- 20 किग्रा, मैग्नीशियम सल्फेट- 15 किग्रा, सल्फर (कॉसवेट) – 3 किग्रा और जिंक सल्फेट- 5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
फलोद्यान योजना के अंतर्गत किसानों को 3 साल में मिलेंगे 2.25 लाख रुपये
लघु सीमांत किसानों के लिए सरकार फलोद्यान योजना शुरू कर रही है। अगर किसान इस योजना में शामिल होते हैं, तो उन्हें तीन साल में सरकार की तरफ से लगभग सवा दो लाख रुपए का अनुदान मिलेगा। योजना के तहत किसान को एक एकड़ में 4 फलों की पौध लगानी होगी। किसान चाहे तो इसे अपने खेतों की मेड़ पर भी लगा सकते हैं। 1 एकड़ क्षेत्रफल के लिए किसान को 4 सौ फलों के पौधे उपलब्ध कराए जाएंगे।
इस योजना के अंतर्गत शुरूआती साल में किसान को उद्यान लगाने के साथ उसकी देखरेख करने के एवज में मनरेगा के तहत 316 मानव दिवस की मजदूरी दी जाएगी। उद्यान की देखरेख में आने वाली सामग्री के लिए 35 हजार रुपए का अनुदान अलग से, तीन साल तक लगातार किसान को मिलता रहेगा।
इस योजना के अंतर्गत किसान क्षेत्रीय फल पपीता, अनार, जामुन, मुनगा, अमरूद, संतरा सहित वह फल लगा सकते है जिनके लिए उस स्थान विशेष का मौसम अनुकूल हैं। योजना में ऐसे कृषक परिवार जिसकी मुखिया कोई महिला या दिव्यांग हो, को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा योजना का लाभ बीपीएल कार्डधारी, इंदिरा आवास योजना के हितग्राही, अनुसूचित जाति, जनजाति के साथ लघु सीमांत किसान ले सकते हैं।
स्रोत: भास्कर
Shareखेत में रोपाई के 15-20 बाद मिर्च की फसल में लगने वाले रोग एवं कीट से ऐसे करें बचाव
- मिर्च की फसल के नर्सरी से खेत में रोपाई के बाद कीट एवं रोग प्रबंधन के लिए छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस अवस्था में मिर्च की फसल में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, एफिड आदि के अलावा कवक जनित बीमारियाँ जैसे डम्पिंग ऑफ आदि का प्रकोप भी होता है।
- इसी के साथ मिर्च के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए वृद्धि कारकों का भी उपयोग करना पड़ता है।
- कीट एवं रोग प्रबंधन में निम्र उत्पादों का उपयोग करना चाहिए।
- इन सब के नियंत्रण के लिए थियोफिनेट मिथाइल @ 300 ग्राम/एकड़ + थियामेथोक्साम 25% WP@100 ग्राम/एकड़ + सीवीड @400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
फसल उत्पादन में मिट्टी के पीएच का महत्व
- मृदा पीएच को मिट्टी की अम्लता या क्षारीयता के रूप में जाना जाता है।
- पीएच 7 से कम पीएच की मिट्टी अम्लीय होती है और पीएच 7 से ज्यादा पीएच की मिट्टी क्षारीय होती है।
- पौधे के विकास के लिए पीएच बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लगभग सभी आवश्यक पौष्टिक पोषक तत्वों की उपलब्धता को निर्धारित करता है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 7.5 के बीच में होता है।
- मृदा पीएच पौधे की वृद्धि एवं उन पोषक तत्वों और रसायनों की मात्रा को प्रभावित करता है जो मिट्टी में घुलनशील होते हैं, और इस कारण पौधों को पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाती है।
- अम्लीय पीएच के कारण (5.5 पीएच से कम) पौधे की वृद्धि रुक जाती है परिणामस्वरूप पौधे खराब हो जाते हैं।
- जब किसी पौधे की मिट्टी का पीएच बढ़ जाता है, तब पौधे की कुछ पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता बाधित होती है। नतीजतन, कुछ पोषक तत्वों को ठीक से अवशोषित नहीं किया जा सकता है। मिट्टी का उच्च पीएच, मिट्टी में मौजूद लोहे को पौधे को आसान रूप में बदलने से रोकता है।
- मिट्टी का पीएच कम अम्लीय बनाने के लिए, चूने का उपयोग किया जाता है। कृषि में चूना पत्थर का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। चूना पत्थर के कण जितने महीन होते हैं, उतनी ही तेजी से प्रभावी भी होते हैं। मिट्टी के पीएच मान को समायोजित करने के लिए विभिन्न मिट्टी को चूने की एक अलग मात्रा की आवश्यकता होगी।
- मिट्टी के पीएच को कम क्षारीय बनाने के लिए, जिप्सम का उपयोग किया जाता है। मिट्टी के पीएच मान को समायोजित करने के लिए विभिन्न मिट्टी को जिप्सम की एक अलग मात्रा की आवश्यकता होगी।
मानसून इफेक्ट: दलहन, तिलहन फ़सलों के साथ कपास की बुआई में 104 फीसदी की बढ़ोतरी
देश भर में कई राज्य में जून महीने में मानसून से पहले ही प्री मानसून के कारण अच्छी बारिश हुई थी और अब मानसून भी बहुत सारे राज्यों में सक्रिय होता नजर आ रहा है। इसी मानसूनी इफेक्ट का नतीजा है की खरीफ फ़सलों की बुआई में 104.25 फीसदी की भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
खरीफ फ़सलों में दलहन के साथ तिलहन, कपास और मोटे अनाजों की बुआई बहुत अधिक हुई है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक वर्तमान समय में खरीफ फ़सलों की बुआई बढ़कर 315.63 लाख हेक्टेयर में हो गई है जो पिछले साल इस समय तक 154.53 लाख हेक्टेयर तक ही पहुँच पाई थी।
खरीफ फ़सलों में मुख्यतः धान की रोपाई 37.71 लाख हेक्टेयर में हुई है जो पिछले साल इस समय तक 27.93 लाख हेक्टेयर से थोड़ी कम रही थे। दलहन फसलों की बुआई भी बढ़कर 19.40 लाख हेक्टेयर में हो गई है जो पिछले साल इस समय तक महज 6.03 लाख हेक्टेयर थी। बात करें कपास की बुआई की तो यह भी बढ़कर 71.69 लाख हेक्टेयर हो गया है जो की पिछले साल इस समय तक महज 27.08 लाख हेक्टेयर ही हो पाया था।
स्रोत: आउटलुक एग्रीकल्चर
Shareऐसे करें सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल का प्रबंधन
- गर्डल बीटल के द्वारा पौधे के तने को अंदर से लार्वा द्वारा खाया जाता है और तने के अंदर एक सुरंग बनाई जाती है।
- संक्रमित हिस्से वाले पौधे की पत्तियां पोषक तत्व प्राप्त करने में असमर्थ होती हैं और सूख जाती हैं।
- इस समस्या के समाधान के लिए लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्विनालफॉस 25% EC@400 मिली/एकड़ या बायफैनथ्रीन @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कपास की फसल में कोणीय पत्ती (ऐगूलरलीफ स्पॉट) रोग का प्रबंधन
- पौधों में कोणीय पत्ती रोग कई प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होता है जो बीज और पौधे के मलबे में जीवित रहते हैं, जिसमें स्यूडोमोनास सिरिंज और ज़ेंथोमोनस फ्रैगरिया शामिल हैं।
- पत्तियों की शिराओं के बीच पानी से लथपथ घाव इस बीमारी का एक लक्षण है, लक्षण अक्सर पत्तियों के नीचे पर दिखाई देते हैं। जिसके कारण पत्तिया मर जाती हैं।
- इसके कारण ऊतक भंगुर हो जाता है और उन पत्ती के हिस्से दूर हो जाते हैं, जिससे पीड़ित पत्तियों को एक रगड़ दिखाई देती है। कोणीय पत्ता स्पॉट घाव रोग के कारण पत्तियों से एक दूधिया तरल पदार्थ को बाहर निकालता है जो पत्ती की सतहों पर सूख जाता है। इसका गंभीर प्रकोप होने पर तने और फलों पर घाव दिखाई देते हैं।
- इस रोग के प्रबंधन के लिए कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@300 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड@ 24 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या बेसिलस सबटिलिस@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पूरे मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए मानसून को देख किसानों के चेहरे पर बिखरी मुस्कान
तय समय पर दस्तक देने के बाद मानसून अब धीरे धीरे पूरे मध्य प्रदेश में सक्रिय हो गया है। मानसून की सक्रियता को देख कर किसानों के चेहरे पर भी मुस्कान बिखर गई है। ख़ास कर के धान की खेती करने वाले किसानों के लिए मानसून की बारिश किसी सौगात की तरह है।
इसके अलावा मक्का की खेती करने वाले किसान भी मानसून की बारिश से खुश हैं। हालांकि इस बारिश से सोयाबीन और कपास जैसी फ़सलों में कीटों का प्रकोप भी हो सकता है जिसके लिए किसानों को पहले से बचाव के उपाय कर लेने चाहिए।
अगर बात करें अगले 24 घंटों के दौरान मध्य प्रदेश के मौसम पूर्वानुमान की तो प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश होने की संभावना जताई गई है। इससे पहले जबलपुर, भोपाल के इलाकों में पिछले दिनों मानसून की अच्छी बारिश देखने को मिली है।
स्रोत: नई दुनिया
Shareमिर्च के पौधों में पत्ते मुड़ जाने की समस्या का ऐसे करें निदान
- एफिड्स, थ्रिप्स, माइट्स और वाइटफ्लाइज़ जैसे कीट अपनी फीडिंग गतिविधियों के साथ मिर्च के पौधों पर पत्तियों के मुड़ाव का कारण बनते हैं।
- परिपक्व पत्तियां धब्बेदार या कटे-फटे क्षेत्रों को विकसित कर सकती हैं, सूख सकती हैं या गिर सकती हैं, लेकिन विकास के दौरान खिलाए गए पत्ते बेतरतीब ढंग से मुड़े हुए होते हैं या मुड़ जाते हैं।
- इस समस्या के समाधान के लिए प्रीवेंटल BV @ 100 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ या लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेट्राज़ियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
मिर्च की फसल में थ्रिप्स का प्रबंधन
- मिर्च की फसल में जब पहली मानसूनी बारिश हो जाती है तब रस चूसक कीटों का प्रकोप शुरू होने लगता है यह कीट पत्तियों का रस चूसते हैं वे अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों एवं कलियों का रस चूसते हैं।
- इसके कारण पत्तियां किनारों पर भूरी हो सकती हैं, या विकृत हो सकती हैं और ऊपर की ओर कर्ल कर सकती हैं। इस कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे की बढ़वार पूरी तरह रुक जाती हैं यह वायरस के भी फैलने का कारण बनते हैं।
- इन कीटों में मुख्य रूप से थ्रिप्स का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- इन कीटों के प्रबंधन के लिए निम्र रसायनों का उपयोग लाभकारी होता है।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल.@ 100 मिली/एकड़, या थायमेंथाक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़, या
- ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@300 ग्राम/एकड़ या एसिटामेप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़।
- प्रोफेनोफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रिड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़।
- मेट्राज़ियम @1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से करें।
