- गुलाबी सुंडी या इल्ली कपास के पौधे की पत्तियों में सबसे पहले नुकसान पहुँचाना शुरू करती है।
- शुरूआती दौर में ये कपास के फूल पर पायी जाती है और फूल से परागकण खाना शुरू कर देती है।
- जैसे ही कपास का डेंडु तैयार होता है ये उसके अंदर चली जाती है और डेंडु के अंदर के कपास को खाना शुरू कर देती है।
- इस कारण कपास का डेंडु अच्छी तरह से तैयार नहीं हो पाता है और कपास में दाग लग जाता है।
- रासायनिक उपचार के रूप में इस इल्ली के नियंत्रण के लिए तीन छिड़काव बहुत आवश्यक है।
- पहला छिड़काव: बुआई के 40 से 45 दिन में फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- दूसरा छिड़काव: दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 13 से 15 दिन के बाद करें और इसके अंतर्गत क्युँनालफॉस 25% EC @ 300 मिली/एकड़ प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- तीसरा छिड़काव: यह छिड़काव दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद करें और इसके अंतर्गत नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इसके जैविक उपचार के रूप में फेरोमेन ट्रैप का उपयोग किया जा सकता है साथ ही बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ के तीन छिड़काव अवश्य करें।
जानें मध्य प्रदेश के मंडियों में क्या चल रहा है भाव?
इंदौर के गौतमपुरा मंडी में गेहूं का भाव 1716 रूपये प्रति क्विंटल का है। वहीं इस मंडी में डॉलर चना का भाव 3800 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है। बात सोयाबीन की करें तो गौतमपुरा मंडी में इसका मॉडल रेट 3500 रूपये प्रति क्विंटल बताया जा रहा है।
गौतमपुरा के बाद इंदौर के ही महू (अंबेडकर नगर) मंडी की बात करें तो यहाँ गेहूं का भाव 1745 रूपये प्रति क्विंटल, डॉलर चने का भाव 4200 रूपये प्रति क्विंटल, आम चने का भाव 3925 रूपये प्रति क्विंटल और सोयाबीन का भाव 3560 रूपये प्रति क्विंटल है।
बात करें खरगोन मंडी की तो यहाँ गेहूं का भाव 1775 रूपये प्रति क्विंटल और मक्का का भाव 1150 रूपये प्रति क्विंटल है। इसके अलावा भीकनगांव मंडी में गेहूं 1787 रूपये प्रति क्विंटल, आम चना 3801 रूपये प्रति क्विंटल, तुअर/अरहर 4740 रूपये प्रति क्विंटल, मक्का 1185 रूपये प्रति क्विंटल, मूंग 6100 रूपये प्रति क्विंटल और सोयाबीन 3600 रूपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रही है।
स्रोत: किसान समाधान
Shareऐसे करें सोयाबीन की फसल में सेमीलूपर का नियंत्रण
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- सेमीलूपर का आक्रमण सोयबीन की फसल पर बहुत अधिक मात्रा में होता है।
- यह सोयाबीन की फसल की कुल उपज में 30-40% तक हानि का कारण बनता है।
- सोयाबीन की फसल के प्रारभिक चरणों से ही इसका आक्रमण शुरू हो जाता है।
- सेमीलूपर का प्रकोप फली एवं फूल पर अधिक होता है।
- सेमीलूपर का प्रकोप आमतौर पर अगस्त के अंत और सितंबर माह के शुरुआत से पहले होता है।
रासायनिक प्रबंधन :
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- प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिलीग्राम/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़
- फ्लूबेण्डामाइड 20%WG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5 % SC@ 60 मिली/एकड़
- लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या क्युँनालफॉस 25% EC 400मिली/एकड़
जैविक प्रबंधन:
- बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम /एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कपास की फसल में एफिड एवं जैसिड का प्रकोप और प्रबंधन
एफिड (माहु) लक्षण: एफिड (माहु) एक छोटे आकर के कीट होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं और पत्तियों का रंग भी पीला हो जाता है। बाद में पत्तियाँ ऐंठीं मतलब कड़क हो जाती है और कुछ समय बाद सूखकर गिर जाती हैं।
जेसिड (हरा मच्छर/फुदका) लक्षण: इस कीट के निम्फ (शिशु कीट) और प्रौढ़ (बड़ा कीट) दोनों ही अवस्था फसल को क्षति पहुँचाते हैं। यह कीट पौधों के कोमल तनों, पत्ती एवं पुष्प भागों से रस चूसकर पौधों का विकास रोक देते हैं। फलतः पौधे कमजोर, छोटे तथा बौने रह जाते हैं साथ ही पैदावार भी कम हो जाती है।
प्रबंधन: इन दोनों रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL.@ 100 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Shareइन राज्यों में हो सकती है भारी बारिश, मौसम विभाग ने जारी किया अलर्ट
कोरोना महामारी के बीच देश के कई राज्यों में भारी बारिश और बाढ़ के कारण संकट की स्थिति बनी हुई है। मौसम विभाग ने आने वाले दिनों के लिए भी कई राज्यों के लिए मूसलाधार बारिश का अलर्ट जारी किया है।
मौसम विभाग के मुताबिक, उत्तर भारत के अधिकतर क्षेत्रों में लगातार बारिश होने की संभावना है। इसके साथ ही कुछ इलाकों के लिए मौसम विभाग ने ऑरेंज और येलो अलर्ट भी जारी किये हैं।
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार उत्तर भारत के कई राज्यों में आने वाले दो दिनों तक भारी बारिश की संभावना है। हरियाणा, दिल्ली-NCR, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि इलाकों में कहीं सामान्य बारिश, तो कहीं मूसलाधार बारिश की संभावना है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में भी हल्की से माध्यम बारिश की संभावना जताई गई है।
स्रोत: पत्रिका
Shareकपास की फसल में ऐसे करें थ्रिप्स का नियंत्रण
- यह छोटे एवं कोमल शरीर वाले हल्के पीले रंग के कीट होते हैं। इस कीट का शिशु एवं वयस्क दोनों ही रूप फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।
- यह पत्तियों की ऊपरी सतह एवं अधिक मात्रा में पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं।
- ये कीट अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों एवं कलियों के साथ फूलो का भी रस चूसते हैं।
- थ्रिप्स का प्रकोप होने पर पत्तियां किनारे से भूरी होने लग जाती है एवं प्रभावित पौधे की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती है।
- इसके कारण पत्तियां विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर कर्ल अर्थात मुड़ जाती हैं।
- थ्रिप्स के प्रकोप को खत्म करने के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मिर्च की फसल में ऐसे करें मकड़ी का प्रबंधन
- मकड़ी के प्रकोप के लक्षण: यह कीट छोटे एवं लाल या सफेद रंग के होते है जो की मिर्च की फसल के कोमल भागों जैसे पत्ती एवं टहनियों पर भारी मात्रा में आक्रमण करते हैं।
- जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उस पौधे पर जाले दिखाई देते हैं। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते है एवं इसके प्रभाव से पत्तियां मुड़ या सिकुड़ जाती हैं जिसके कारण पौधे की बढ़वार रुक जाती है। अंत में पौधा मर जाता है।
- मिर्च की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मानसून की लुकाछिपी से मध्य प्रदेश के 18 जिले के किसान हो रहे हैं परेशान
मध्यप्रदेश में मानसून से तय समय पर दस्तक दी थी पर पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के कई जिलों में मानसून की आंखमिचौली चल रही है। इस वजह से प्रदेश के लाखों किसान परेशान हैं। किसानों का कहना है की अगर मानसून आने वाले एक हफ्ते में अच्छी बारिश नहीं करवाता है तो उन्हें भारी नुकसान होगा। भोपाल स्थित मौसम विभाग की इकाई की तरफ से बताया गया है की “ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्रों में कम बारिश हुई है। गुना में शून्य से 7%, ग्वालियर में शून्य से 45% कम बारिश हुई है।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर, भिंड, दतिया, गुना, शिवपुरी, छतरपुर, दमोह, सागर, टीकमगढ़, बालाघाट, जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी, धार, मंदसौर, शाजापुर और होशंगाबाद जैसे जिलों में काफी कम वर्षा हुई है। पिछले साल जुलाई महीने में 643.1 मिमी बारिश मध्यप्रदेश में दर्ज की गई थी वहीं वहीं इस साल 1 जून से अब तक 318.6 मिमी बारिश ही दर्ज की गई है।
स्रोत: लाइव हिंदुस्तान
Shareमक्का की फसल में सैनिक कीट का प्रबंधन
- यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों और पुआल के ढेर में छिप जाता है और रात भर फसलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी काफी संख्या देखी जा सकती है। यह कीट बहुत तेज़ी से फसलों को खाता है और काफी कम समय में पूरे खेत की फसल को खाकर ख़त्म कर सकता है। अतः इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है।
- जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उस खेत में इसका प्रबंधन/नियंत्रण तत्काल किया जाना बहुत आवश्यक होता है।
- इसके नियंत्रण के लिए लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 5% EC 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC 100 मिली/एकड़, या क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1.15% WP @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जिन खेतो में इसका प्रकोप थोड़ी कम मात्रा में हो, तब ऐसी स्थिति में किसान अपने खेत के मेड़ पर या खेत के बीच में पुआल के छोटे छोटे ढेर लगा कर रखें। जब बहुत अधिक धूप पड़ती है तब आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाते हैं। शाम को इन पुआल को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।
सोयाबीन की फसल में 20 से 50 दिनों में खरपतवारनाशी का उपयोग
- सोयबीन की फसल खरीफ सीजन की एक मुख्य फसल है एवं लगातार बारिश होने के कारण सोयाबीन की फसल में बुआई के बाद समय समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत आवश्यक हो जाता है।
- सोयबीन की फसल में बुआई के बाद चौड़ी पत्ती एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार बहुत अधिक मात्रा में उग जाते है।
- 20 से 50 दिन की अवस्था में सकरी पत्ती वाले खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं अतः इसका रोकथाम करना अतिआवश्यक हो जाता है। इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग किया जा सकता है।
- प्रोपेक्यूजाफ़ॉप का इस्तेमाल 10% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।
- क्विज़ालोफ़ॉप इथाइल का इस्तेमाल 5% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से करें। यह एक चुनिंदा खरपतवार नियंत्रक है और इसका उपयोग सकरी पत्ती के खरपतवारों के लिए किया जाता है।