- टमाटर की फसल में पछेती अंगमारी एक बहुत गंभीर रोग होता है।
- यह एक कवक जनित रोग है और इस रोग के लक्षण सबसे पहले टमाटर की पत्तियों पर दिखाई देते हैं।
- पत्तियों की ऊपरी सतह पर बैगनी भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं एवं पत्तियों की निचली सतह पर भूरे सफ़ेद रंग के धब्बे हो जाते हैं।
- इसके संक्रमण के कारण पत्तियां सूख जाती हैं और धीरे-धीरे यह कवक पूरे पौधे पर फैल जाता है।
- इसके प्रबंधन के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 ग्राम/एकड़ या मैनकोज़ेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्त्रोबिन 25% WG@ 150 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
एक करोड़ से ज्यादा किसानों के खाते में डाले गए 89910 करोड़ रुपये, आप भी उठा सकते हैं लाभ
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने बताया है कि अब तक देश के 1 करोड़ से अधिक किसानों को केसीसी अर्थात किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए है और इसके अंतर्गत 89,810 करोड़ रुपये किसानों के खाते में भेज भी दिए गए हैं।
ग़ौरतलब है की केसीसी के अंतर्गत तीन लाख रुपये तक का लोन लेने पर महज 7 फीसदी ब्याज लगता है। अगर यह लोन किसान समय रहते लौटा देता है तो किसान को 3 फीसदी की और छूट मिल जाती है। ऐसे में इसकी दर किसानों के लिए महज 4 फीसदी रह जाती है। केसीसी के अंतर्गत 1 हेक्टेयर ज़मीन पर 2 लाख रुपये तक का लोन मिल सकता है। हालांकि इस लोन की लिमिट हर बैंक में अलग-अलग होती है।
स्रोत: न्यूज़ 18
Shareसोयाबीन की फसल में फूल आने की अवस्था में फसल प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल में फूल आने की अवस्था में फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- सोयबीन की फसल में यदि बहुत अधिक बारिश हो तब भी और कम बारिश हो तब भी फूल आने की अवस्था में कीट जनित एवं कवक जनित रोगों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- अधिक बारिश के कारण फूल गिरने लगते एवं कम बारिश के कारण पौधा तनाव में आ जाता है, और इसी कारण फूलों का निर्माण नहीं हो पाता है।
- रोग प्रबंधन के लिए टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कीट प्रबंधन के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ के साथ क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ या लैम्डा साइहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC@ 80 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- वर्द्धि एवं विकास: पोषक तत्वों की पूर्ति उचित मात्रा में हो एवं सही समय पर हो तो फूल अच्छे बनते है एवं अच्छे फूल बनने के कारण फल अच्छे बनते है इसलिए फूल आने की अवस्था में 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मौसम पूर्वानुमान: मध्य प्रदेश समेत इन 5 राज्यों में अगले दो दिन हो सकती है भारी बारिश
मॉनसून को आये अब 2 महीने बीत चुके हैं और बारिश का आधा सीजन भी बीत चुका है। देश के कई राज्यों में जहाँ बाढ़ के हालात बने हैं वहीं कई क्षेत्रों में अभी तक अच्छी बारिश देखने को नहीं मिली है जिसके कारण किसानों के बीच अनिश्चितता का माहौल है। बिहार और असम जैसे राज्यों में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई है, वहीं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में अभी भी मूसलाधार बारिश का इंतजार है।
इसी बीच मौसम विभाग ने आने वाले दो दिनों में कुछ राज्यों में भारी बारिश की संभावना जताई है। इन राज्यों में महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक शामिल हैं। इसके अलावा आने वाले 24 घंटों के दौरान तटीय कर्नाटक और दक्षिणी कोंकण-गोवा क्षेत्र में अच्छी मॉनसून वर्षा के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश होने की संभावना है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareकम बारिश में कैसे करें सोयाबीन की फसल की देखभाल?
- जैसे की आप सभी जानते हैं की किस प्रकार आज कल मौसम में बदलाव हो रहे हैं कही पर बहुत बारिश हो रही है तो कही पर बारिश बहुत कम मात्रा में हो रही है।
- जिन जगहों पर बारिश की कमी है ऐसे जगहों पर सोयाबीन की फसल पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।
- सूखे एवं अधिक तापमान के कारण सोयाबीन की फसल को बहुत नुकसान होता है।
- इसके कारण पानी की कमी के लक्षण सोयाबीन की फसल पर म्लानि एवं पौधे के मुरझाने के रूप में दिखाई देते है।
- इसके कारण पौधा तनाव में आ जाता है और पौधे की वृद्धि भी या तो बहुत कम होती है या रुक जाती है।
- इसके प्रबंधन के लिए जिब्रेलिक एसिड 0.001% @ 300 मिली/एकड़ या ट्रायकॉनटेनाल 0.1% @ 300 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम/एकड़ या सीवीड@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- यदि सोयबीन की फसल फल या फूल बनने की अवस्था में है और पानी की कमी एवं अधिक तापमान के कारण पौधा तनाव में आ जाता है तो इसके निवारण के लिए होमोब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
ग्रामोफ़ोन एप के उपयोग ने देवास के किसान को मूंग की फसल से दिलाया पहले से अधिक मुनाफ़ा
कोई भी किसान खेती इसलिए करता है ताकि उसे इससे अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त हो और खेती से मुनाफ़ा प्राप्त करने के लिए जो दो महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखने वाली होती हैं उनमें पहला ‘खेती की लागत को कम करना’ होता है और दूसरा ‘उत्पादन को बढ़ाना’ होता है। इन्हीं दो बिंदुओं पर कार्य करता है ग्रामोफ़ोन जिसका लाभ किसान भाई उठाते हैं। कुछ ऐसा ही लाभ देवास जिले के खातेगांव तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम नेमावर के किसान श्री किशन राठौर जी ने भी उठाया।
देवास जिले के युवा किसान किशन चंद्र जी दो साल पहले ग्रामोफ़ोन एप से जुड़े थे। शुरुआत में उन्होंने ग्रामोफ़ोन एप से थोड़ी बहुत सलाह ली लेकिन इस साल उन्होंने पांच एकड़ में की गई मूंग की खेती में पूरी तरह से ग्रामोफ़ोन के सुझावों को माना, जिसका असर उत्पादन वृद्धि में दिखा।
पहले जहाँ पांच एकड़ के खेत में किशन जी को 20 क्विंटल मूंग का उत्पादन होता था वहीं अब उत्पादन बढ़कर 25 क्विंटल हो गया। कमाई पहले के 110000 रूपये मुकाबले बढ़ कर 142500 रूपये हो गई और कृषि लागत भी पहले से काफी घट गई।
Shareफसलों में सल्फर की कमी के लक्षण
- सभी फसलों में सल्फर की कमी देखी जा सकती है।
- सल्फर फसलों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है।
- सल्फर की कमी के लक्षण नाइट्रोज़न की कमी के लक्षणों के सामान ही होते हैं।
- सल्फर की कमी के कारण पौधे का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता है।
- अनाज वाली फसलों में सल्फर की कमी के कारण परिपक्वता बहुत देर से होती है।
- फसलों की प्रकृति के अनुसार किसी फसल पर इसके प्रकोप के लक्षण नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं और कुछ फसलों में पुरानी पत्तियों पर भी दिखाई देते हैं।
मिर्च की फसल में पत्ते मुड़ने (पत्ता कर्ल) की समस्या
- एफिड, जैसिड, मकड़ी, सफेद मक्खी आदि जैसे रस चूसक कीट मिर्च की फसल में पत्ते मुड़ने की समस्या के वाहक होते हैं।
- सफेद मक्खी वायरस फैलाने का कार्य करती है जिसे चुरा-मुरा (लीफ कर्ल वायरस) के नाम से जाना जाता है।
- इस वायरस के कारण पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
- परिपक्व पत्तियों पर इसकी वजह से उभरे हुऐ धब्बे बन जाते हैं एव पत्तियां छोटी और कटी – फटी नजर आती हैं।
- इसके कारण पत्तियाँ सूख सकती हैं या गिर सकती हैं, एवं मिर्च की फसल के विकास को भी अवरुद्ध कर सकती हैं।
- वायरस जनित इस समस्या के लिए प्रीवेंटल BV @ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- वायरस के वाहक कीटों के नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
सोयाबीन की फसल में पत्ती खाने वाली इल्ली का प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल में पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाने वाली इल्लियों का बहुत प्रकोप होता है।
- यह इल्लियाँ सोयाबीन की फसल को बहुत प्रभावित करती हैं।
- नवजात इल्लियाँ झुंड में रहती हैं एवं ये सभी एक साथ मिलकर पत्तियों पर आक्रमण करती हैं।
- पत्तियों के हरे भाग को खुरच कर ये खा जाती है एवं बाद में पूरे पौधे पर फैल जाती हैं।
- यह पूरे पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। इल्लियों के द्वारा खायी गयी पत्तियों पर सिर्फ जाली ही रह जाती है।
- इन इल्लियों का नियंत्रण समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
- इनके नियंत्रण के लिए जैविक उपचार के रूप में गर्मियो के समय खाली खेत में गहरी जुताई करें।
- उचित समय पर यानि मानसून के शुरूआती समय पर ही बुआई करें।
- बवेरिया बेसियाना @500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
रासायनिक प्रबंधन:
- प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- फ्लूबेण्डामाइड 20% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मिर्च की फसल में सफेद मक्खी के प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण
- यह कीट अपने शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था में मिर्च की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- यह पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को बाधित कर देते हैं।
- यह कीट पौधे पर उत्पन्न होने वाली काली कवक नामक हानिकारक कवक के संक्रमण का कारण भी बनती है।
- इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में मिर्च की फसल पूर्णतः सक्रमित हो जाती है।
- फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है। इसके कारण से मिर्च के पौधे की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।
- प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डायफैनथीयुरॉन 50%WP @250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 मिली/एकड़ या एसिडामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।