- जैसे की आप सभी जानते हैं की किस प्रकार आज कल मौसम में बदलाव हो रहे हैं कही पर बहुत बारिश हो रही है तो कही पर बारिश बहुत कम मात्रा में हो रही है।
- जिन जगहों पर बारिश की कमी है ऐसे जगहों पर सोयाबीन की फसल पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।
- सूखे एवं अधिक तापमान के कारण सोयाबीन की फसल को बहुत नुकसान होता है।
- इसके कारण पानी की कमी के लक्षण सोयाबीन की फसल पर म्लानि एवं पौधे के मुरझाने के रूप में दिखाई देते है।
- इसके कारण पौधा तनाव में आ जाता है और पौधे की वृद्धि भी या तो बहुत कम होती है या रुक जाती है।
- इसके प्रबंधन के लिए जिब्रेलिक एसिड 0.001% @ 300 मिली/एकड़ या ट्रायकॉनटेनाल 0.1% @ 300 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम/एकड़ या सीवीड@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- यदि सोयबीन की फसल फल या फूल बनने की अवस्था में है और पानी की कमी एवं अधिक तापमान के कारण पौधा तनाव में आ जाता है तो इसके निवारण के लिए होमोब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
ग्रामोफ़ोन एप के उपयोग ने देवास के किसान को मूंग की फसल से दिलाया पहले से अधिक मुनाफ़ा
कोई भी किसान खेती इसलिए करता है ताकि उसे इससे अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त हो और खेती से मुनाफ़ा प्राप्त करने के लिए जो दो महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखने वाली होती हैं उनमें पहला ‘खेती की लागत को कम करना’ होता है और दूसरा ‘उत्पादन को बढ़ाना’ होता है। इन्हीं दो बिंदुओं पर कार्य करता है ग्रामोफ़ोन जिसका लाभ किसान भाई उठाते हैं। कुछ ऐसा ही लाभ देवास जिले के खातेगांव तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम नेमावर के किसान श्री किशन राठौर जी ने भी उठाया।
देवास जिले के युवा किसान किशन चंद्र जी दो साल पहले ग्रामोफ़ोन एप से जुड़े थे। शुरुआत में उन्होंने ग्रामोफ़ोन एप से थोड़ी बहुत सलाह ली लेकिन इस साल उन्होंने पांच एकड़ में की गई मूंग की खेती में पूरी तरह से ग्रामोफ़ोन के सुझावों को माना, जिसका असर उत्पादन वृद्धि में दिखा।
पहले जहाँ पांच एकड़ के खेत में किशन जी को 20 क्विंटल मूंग का उत्पादन होता था वहीं अब उत्पादन बढ़कर 25 क्विंटल हो गया। कमाई पहले के 110000 रूपये मुकाबले बढ़ कर 142500 रूपये हो गई और कृषि लागत भी पहले से काफी घट गई।
Shareफसलों में सल्फर की कमी के लक्षण
- सभी फसलों में सल्फर की कमी देखी जा सकती है।
- सल्फर फसलों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है।
- सल्फर की कमी के लक्षण नाइट्रोज़न की कमी के लक्षणों के सामान ही होते हैं।
- सल्फर की कमी के कारण पौधे का विकास पूरी तरह नहीं हो पाता है।
- अनाज वाली फसलों में सल्फर की कमी के कारण परिपक्वता बहुत देर से होती है।
- फसलों की प्रकृति के अनुसार किसी फसल पर इसके प्रकोप के लक्षण नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं और कुछ फसलों में पुरानी पत्तियों पर भी दिखाई देते हैं।
मिर्च की फसल में पत्ते मुड़ने (पत्ता कर्ल) की समस्या
- एफिड, जैसिड, मकड़ी, सफेद मक्खी आदि जैसे रस चूसक कीट मिर्च की फसल में पत्ते मुड़ने की समस्या के वाहक होते हैं।
- सफेद मक्खी वायरस फैलाने का कार्य करती है जिसे चुरा-मुरा (लीफ कर्ल वायरस) के नाम से जाना जाता है।
- इस वायरस के कारण पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
- परिपक्व पत्तियों पर इसकी वजह से उभरे हुऐ धब्बे बन जाते हैं एव पत्तियां छोटी और कटी – फटी नजर आती हैं।
- इसके कारण पत्तियाँ सूख सकती हैं या गिर सकती हैं, एवं मिर्च की फसल के विकास को भी अवरुद्ध कर सकती हैं।
- वायरस जनित इस समस्या के लिए प्रीवेंटल BV @ 100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- वायरस के वाहक कीटों के नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
सोयाबीन की फसल में पत्ती खाने वाली इल्ली का प्रबंधन
- सोयाबीन की फसल में पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाने वाली इल्लियों का बहुत प्रकोप होता है।
- यह इल्लियाँ सोयाबीन की फसल को बहुत प्रभावित करती हैं।
- नवजात इल्लियाँ झुंड में रहती हैं एवं ये सभी एक साथ मिलकर पत्तियों पर आक्रमण करती हैं।
- पत्तियों के हरे भाग को खुरच कर ये खा जाती है एवं बाद में पूरे पौधे पर फैल जाती हैं।
- यह पूरे पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। इल्लियों के द्वारा खायी गयी पत्तियों पर सिर्फ जाली ही रह जाती है।
- इन इल्लियों का नियंत्रण समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
- इनके नियंत्रण के लिए जैविक उपचार के रूप में गर्मियो के समय खाली खेत में गहरी जुताई करें।
- उचित समय पर यानि मानसून के शुरूआती समय पर ही बुआई करें।
- बवेरिया बेसियाना @500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
रासायनिक प्रबंधन:
- प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- फ्लूबेण्डामाइड 20% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मिर्च की फसल में सफेद मक्खी के प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण
- यह कीट अपने शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था में मिर्च की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- यह पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को बाधित कर देते हैं।
- यह कीट पौधे पर उत्पन्न होने वाली काली कवक नामक हानिकारक कवक के संक्रमण का कारण भी बनती है।
- इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में मिर्च की फसल पूर्णतः सक्रमित हो जाती है।
- फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है। इसके कारण से मिर्च के पौधे की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।
- प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डायफैनथीयुरॉन 50%WP @250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 मिली/एकड़ या एसिडामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कई राज्यों में भारी बारिश की संभावना, जारी किया गया ऑरेंज अलर्ट
पूरे देश में मौसम बदल रहा है, कई राज्यों में बारिश हो रही है तो कहीं कहीं बारिश का अभी भी इंतजार है। ऐसे में मौसम विभाग संभावना जता रहा है की अगले कुछ दिन देश के कई क्षेत्रों में भारी बारिश हो सकती है।
मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, सिक्किम, असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में अगले कुछ दिन मॉनसून सक्रिय रहेगा और हल्की बारिश होगी।
इसके अलावा मौसम विभाग के अनुसार पूर्वी राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना और आंतरिक कर्नाटक में भी हल्की बारिश हो सकती है वहीं, अंडमान, नीकोबार द्वीपसमूह और तमिलनाडु में भारी बारिश की संभावना है।
ग़ौरतलब है की पिछले 24 घंटों में केरल के कई क्षेत्रों में मूसलाधार वर्षा हुई है और साथ ही हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों पर हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ हिस्सों में भारी बारिश हुई।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareसोयाबीन मोज़ेक वायरस की ऐसे करें रोकथाम
- सोयाबीन मोज़ेक वायरस का वाहक है होता है रस चूसक कीट सफेद मक्खी।
- इस वायरस से संक्रमित पौधों में लक्षण पूरी तरह स्पष्ट नहीं होते हैं।
- इसके लक्षण सोयाबीन की फसल की किस्मों के अनुसार भिन्न – भिन्न हो सकते हैं।
- इसके प्रकोप के कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियों पर पीले- हरे रंग के धब्बे बन जाते है।
- पत्तियों के अपूर्ण विकास के कारण पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं एवं फल अच्छे से नहीं बन पाते हैं।
- इसके प्रकोप के कारण सोयाबीन के पौधे का विकास सही से नहीं हो पता है एवं उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
- इसके नियंत्रण लिए एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या बायफैनथ्रिन 10% EC @ 300 मिली/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
सोयाबीन की फसल में रस्ट के लक्षण एवं बचाव
- सोयाबीन की फसल में इस रोग के कारण बहुत अधिक नुकसान होता है।
- इसके प्रकोप के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी हिस्सों पर सबसे पहले दिखाई देते हैं।
- इसके बाद पत्तियों की ऊपरी सतह पर बड़ी संख्या में हल्के भूरे रंग या नारंगी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग या लाल भूरे रंग के धब्बों में बदल जाते हैं।
- प्रबंधन: थियोफिनेट मिथाइल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाजोल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ या प्रोपीकोनाज़ोल 25% EC@ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार हेतु ट्रायकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या सुडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मध्य प्रदेश के बीहड़ इलाके में तीन लाख हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन को खेती योग्य बनाया जायेगा, विश्व बैंक करेगी मदद
मध्य प्रदेश के चंबल की वीरान धरती को उपजाऊ और खेती योग्य बनाने की कोशिश की जा रही है। अगर सब कुछ सही रहा तो इस क्षेत्र में भी अब हरियाली आएगी और फसलें लहलहाएंगी। इस कार्य में सहयोग के लिए विश्व बैंक एक व्यापक योजना पर विचार कर रहा है।
ग़ौरतलब है की चबल का बीहड़ मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश तीनों क्षेत्रों में फैला है और इसी इलाके को खेती योग्य बनाने को लेकर विश्व बैंक कार्य करने वाला है। विश्व बैंक के अधिकारी आदर्श कुमार ने मध्यप्रदेश में बीहड़ क्षेत्र के विकास की परियोजना पर काम करने के लिए अपनी सहमति जताई है। इस क्षेत्र में तीन लाख हेक्टेयर से ज्यादा ज़मीन खेती योग्य नहीं है। अगर यह विशाल क्षेत्र खेती योग्य बनेगा तो इलाके के लोगों को आजीविका का साधन मिलेगा और पर्यावरण की दृष्टि से भी यह समुचित कदम होगा। बीहड़ की वीरान भूमि में हरियाली लाने के साथ-साथ इलाके के समग्र विकास के लिए ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कृषि बाजार, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज लगाने की योजना है।
स्रोत: टीवी 9 भारतवर्ष
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