- फसल एवं मिट्टी में अधिक नमी एवं तापमान के परिवर्तन के कारण जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप का खतरा बहुत होता है।
- इन रोगों में कुछ मुख्य रोग जैसे ब्लैक रॉट, स्टेम रॉट, जीवाणु धब्बा रोग, पत्ती धब्बा रोग, उकठा रोग।
- इन रोगों में से कुछ रोग मिट्टी जनित होते हैं जो फसल के साथ – साथ मिट्टी को भी संक्रमित करके नुकसान पहुंचाते हैं।
- फसलों के उत्पादन पर रोगों के कारण बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है एवं मिट्टी का pH भी इन जीवाणु जनित रोगों के कारण असंतुलित हो जाता है।
- इन रोगों के निवारण के लिए बुआई पूर्व मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- बुआई के समय एवं बुआई के 15-25 दिनों के अंदर एक छिड़काव जीवाणु जनित रोगों के प्रबधन के लिए करना चाहिए।
फसलों में एस्कोचायटा ब्लाइट (फुट रॉट) या फल सड़ांध की रोकथाम कैसे करें?
- एस्कोचायटा ब्लाइट को एस्कोचायटा फुट रॉट के नाम से भी जाना जाता है।
- इस रोग के कारण फसलों पर छोटे और अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
- इसके कारण अक्सर पौधे के आधार पर बैंगनी/नीला-काला घाव हो जाता है।
- इसके गंभीर संक्रमण के कारण फलों पर सिकुड़न हो जाती है और फल सूखने लगते हैं जिससे बीज की सिकुड़न और गहरे भूरे रंग के विघटन के कारण बीज की गुणवत्ता में कमी हो सकती है।
- इस रोग का मुख्य कारक मिट्टी में अत्यधिक नमी का होना होता है। इससे ग्रसित पौधे के तने एवं टहनियाँ सक्रमण के कारण गीली दिखाई देती हैं।
- इन रोगों के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG@600 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG@ 100ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC@ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
फसलों की रक्षा के लिए फेरोमोन ट्रैप का करें उपयोग
- फेरोमोन ट्रैप एक जैविक प्रपंच है जिसका फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े के वयस्क रूप को पकड़ने के लिए उपयोग किया जाता है।
- इस फेरोमोन ट्रैप में एक रसायन युक्त कैप्सूल लगा होता है। कीट इस रासायन की खुशबू से आकर्षित होकर ट्रैप में आते हैं और कैद हो जाते हैं।
- इस कैप्सूल में एक प्रकार की विशेष गंध होती है। यह गंध नर पतंगों को आकर्षित करती है।
- विभिन्न कीटों को अलग अलग गंध पसंद होती है इसलिए अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाता है।
- इस प्रक्रिया से नर कीट ट्रैप हो जाता है और मादा कीट अंडा देने से वंचित रह जाते हैं।
मंडी भाव: मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों में क्या है सब्जियों के भाव?
इंदौर डिवीज़न के अंतर्गत आने वाले बड़वानी जिले के सेंधवा मंडी में टमाटर, पत्ता गोभी, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, लौकी आदि सब्जियों का भाव क्रमशः 700, 825, 1025, 850 और 900 रुपये प्रति क्विंटल है।
इसके अलावा उज्जैन डिवीज़न के अंतर्गत आने वाले शाजापुर जिले के मोमनबडोदिया मंडी में मिल क्वालिटी की गेहूं का मंडी भाव 1934 रुपये प्रति क्विंटल है और इसी मंडी में सोयाबीन का भाव 3765 रुपये प्रति क्विंटल है।
बात करें ग्वालियर डिवीज़न के अंतर्गत आने वाले अशोक नगर जिले के पिपरई मंडी में चना, मसूर और सोयाबीन का मंडी भाव क्रमशः 4775, 5200 और 3665 रुपये प्रति क्विंटल है। ग्वालियर के ही भिंड मंडी में बाजरा 1290 रूपये प्रति क्विंटल और खनियाधाना मंडी में मिल क्वालिटी की गेहूं का मंडी भाव 1925 रुपये प्रति क्विंटल है।
स्रोत: किसान समाधान
Shareअधिक नमी के कारण मिट्टी एवं फसल को होने वाले नुकसान
- कभी कभी मौसम परिवर्तन के कारण जब अधिक बारिश होती है, तब खेत की मिट्टी में बहुत अधिक नमी हो जाती है।
- अधिक नमी के कारण मिट्टी में कवक जनित रोगों एवं जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप होने की बहुत अधिक संभावना रहती है।
- अधिक नमी के कारण मिट्टी में कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक होने लगता है।
- अधिक बारिश के कारण मिट्टी का कटाव होता है जिसके कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- फसलों में पीलापन, पत्ते मुड़ना, फसल का समय से पहले मुरझाना, फलों का अपरिपक्व अवस्था में ही गिरना, फलों पर अनियमित आकार के धब्बे हो जाना अदि सभी प्रभाव खेत में अधिक नमी के कारण होता है।
- खेत की मिट्टी में अत्यधिक नमी होने से फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण फसल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।
प्याज़/लहसुन की फसल से अच्छा उत्पादन पाने में मददगार होता है कैल्शियम
- कैल्शियम प्याज़/लहसुन की फसल के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। यह फसल की पैदावार और गुणवत्ता को बेहतर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- कैल्शियम बेहतर जड़ स्थापना में मदद करता है एवं कोशिकाओं के विस्तार को बढ़ता है जिससे पौधों की ऊँचाई बढ़ती है।
- चयापचय प्रक्रियाओं में भाग लेता है और कोशिका वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- एंजाइमेटिक और हार्मोनल प्रक्रियाओं में भाग लेता है। तापमान बढ़ने के कारण फसलों में उत्पन्न होने वाले तनाव से पौधों की रक्षा करता है। रोगों से पौधों का बचाव करने में मदद करता है।
- कई हानिकारक कवक और जीवाणु पौधे की कोशिका भित्ति को खराब कर देते हैं। कैल्शियम द्वारा निर्मित मजबूत कोशिका भित्ति इस प्रकार के आक्रमण से फसल का बचाव करती है।
- यह प्याज़/लहसुन के कंद की गुणवत्ता को सुधरता है।
- प्याज/लहसुन में कैल्शियम का मुख्य कार्य उपज, गुणवत्ता और भंडारण के समय फसल को रोग रहित रखना है।
- कैल्शियम के 4 किलोग्राम/एकड़ की मात्रा मिट्टी उपचार के रूप उपयोग करें।
पिछले साल की तुलना में इस साल एमएसपी पर ज्यादा कपास खरीदेगी सरकार
खरीफ फ़सलों की कटाई चल रही है और समर्थन मूल्य पर इसकी खरीदी की तैयारी भी सरकार ने शुरू कर दी है। इस साल कपास की खरीदी का लक्ष्य सरकार पिछले साल की तुलना में बढ़ा दिया है। इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास के 125 लाख गांठ की खरीदी का लक्ष्य रखा गया है।
ग़ौरतलब है की एक गाँठ में 170 किलो होता है और पिछले साल सरकार ने 105.24 लाख गांठ कपास की खरीद की थी। सरकार इस साल करीब 20 लाख गांठ ज्यादा खरीदने की तैयारी में है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार कपास की खरीद पर इस बार 35,000 करोड़ रुपये का खर्च आने का अनुमान है। वहीं पिछले खरीफ सीजन में यह खर्च 28,500 करोड़ रुपये का रहा था। मंत्रालय का अनुमान है की इस साल कपास का उत्पादन बढ़कर 360 लाख गांठ हो सकता है जो पिछले साल की तुलना में 357 लाख गांठ से ज्यादा है।
स्रोत: फ़सल क्रांति
Shareबेहतर उपज के लिए खेत की मिट्टी में सूक्ष्मजीवों का होना है जरूरी
- भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक सूक्ष्मजीवों की कमी पाई जाती है।
- सूक्ष्मजीवों को एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व माना जाता है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु बहुत से सूक्ष्मजीव मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहते हैं जिनको फसल आसानी से उपयोग नहीं कर पाती है।
- यह सूक्ष्मजीव फसल को जिंक, फॉस्फोरस, पोटाश जैसे पोषक तत्व उपलब्ध करवातें हैं। परिणामस्वरूप यह फसलों में रोग का नियंत्रण करते हैं, फसल की उपज और गुणवत्ता की वृद्धि में सहायक होते हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाते हैं और प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि को भी बढ़ाते हैं।
- सूक्ष्मजीव मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं जो अघुलनशील जिंक, अघुलनशील फास्फोरस, अघुलनशील पोटाश को पौधों के लिए उपलब्ध रूप में बदल देते हैं। इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन भी बनाए रखते हैं।
- सूक्ष्मजीव कई प्रकार के कवक एवं जीवाणु जनित बीमारियों से भी फसल की रक्षा करते हैं।
मटर की फसल में उकठा रोग का प्रबंधन
- मटर के विकसित कोपल एवं पत्तियों के किनारों का मुड़ जाना इस रोग का प्रथम एवं मुख्य लक्षण है।
- इसके कारण पौधों के ऊपर के हिस्से पीले हो जाते हैं, कलिका की वृद्धि रुक जाती है, तने एवं ऊपर की पत्तियां अधिक कठोर, जड़ें भंगुर व नीचे की पत्तियां पीली होकर झड़ जाती हैं।
- पूरा पौधा मुरझा जाता है व तना नीचे की और सिकुड़ जाता है। आखिर में गोल घेरे में फसल सूख जाती है।
- इसके रासायनिक उपचार हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इसके जैविक उपचार के लिए मिट्टी उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिड@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
मौसम की मार से परेशान किसानों को म.प्र. सरकार देगी 4000 करोड़ का मुआवजा
इस साल भारी बारिश की वजह से बाढ़ आने और कीट-रोग के प्रकोप के कारण फ़सलों को काफी नुकसान हुआ है। फसल को हुए नुकसान के आकलन हेतु केंद्र सरकार के ने एक टीम को भेजा था। मध्यप्रदेश में आकलन का काम पूर्ण हो चुका है अब सिर्फ किसानों को सहायता राशि मिलने का इंतजार है।
इस विषय पर सीएम शिवराज चौहान ने कहा है कि “प्रदेश में बाढ़ एवं कीट-व्याधि से प्रभावित हुए किसानों को हर हालत में पूरी सहायता राशि उपलब्ध कराई जाएगी।” ग़ौरतलब है की प्रदेश में बाढ़ एवं कीट व्याधि से लगभग 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फसलें प्रभावित हुई हैं, जिनके लिए लगभग 4,000 करोड़ रुपए का मुआवजा संभावित है। गत वर्ष प्रदेश में लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें खराब हुईं थी तथा किसानों को 2000 करोड़ रुपए का मुआवजा वितरित किया गया था।
स्रोत: किसान समाधान
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