- गर्मियों के मौसम में किसान अक्सर खेत में गोबर की खाद डालता है, परंतु इसका उपयोग करने से पहले यह जरूर ध्यान रखना चाहिए की गोबर खाद अच्छे से पकी हुई हो।
- कभी कभी किसान खेत में डालने के लिए जिस गोबर खाद का उपयोग करता है वह अधपकी एवं पूर्ण पोषित भी नहीं होती है। जिसका नुकसान फसल को उठाना पड़ता है।
- गोबर की खाद को खेत में डालने से पहले उसे पूरी तरह से डिकम्पोज़्ड कर लेना चाहिए।
- गोबर की खाद में नमी की मात्रा पर्याप्त रखने के लिए इसे खेत में डालने के बाद हल्की सिंचाई करना बहुत आवश्यक होता है।
- गोबर की खाद डालने के बाद खेत की जुताई भी अवश्य करें। ऐसा करने से गोबर खाद अच्छे से मिट्टी में मिल जाती है।
शिवराज सरकार का बड़ा फैसला, फसल क्षति पर किसानों को 5000 रूपये तो ज़रूर मिलेंगे
प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों की फसलों को कई बार नुकसान का सामना करना पड़ता है। अब इसी नुकसान की भरपाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है की प्राकृतिक आपदा से हुई फसल क्षति की भरपाई के लिए कम से कम 5 हजार रुपये की सहायता राशि तो जरूर मिलेगी।
यह निर्णय प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में लिया गया है। इस निर्णय में प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ वन्य प्राणियों द्वारा पहुंचाए जाने वाले नुकसान की भी भरपाई हेतु अनुदान देने की बात कही गई है।
स्रोत: कृषक जगत
Shareमध्य प्रदेश समेत इन क्षेत्रों में बारिश के साथ हो सकती है ओलावृष्टि
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के ऊपर विपरीत चक्रवातीय हवाओं का क्षेत्र सक्रिय है जिसके कारण मध्य प्रदेश समेत मध्य भारत के कई क्षेत्रों में बारिश के साथ साथ ओलावृष्टि होने की संभावना भी बन रही है। अगले दो-तीन दिनों के दौरान मध्य प्रदेश समेत महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र के कई शहरों में गरज के साथ वर्षा होने की संभावना है।
वीडियो स्रोत: स्काईमेट वेदर
Shareअफरा रोग से पशुओं में आ सकती है सांस लेने में परेशानी, जानें बचाव की विधि
- जुगाली करने वाले पशुओं में अफरा रोग होना एक आम समस्या है।
- इसके कारण पशुओं के पेट में बनी गैस मुँह के रास्ते से निकलती रहती है, परन्तु जब पशुओं में अपचन की समस्या के कारण गैस बहार नहीं निकलती है तो अफरा जैसी समस्या होती है।
- इसके कारण पशुओं को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
- साथ ही पशु द्वारा जुगाली करने की प्रक्रिया भी बंद हो जाती है।
- इसके कारण पशु का पेट बायीं ओर कुछ अधिक फूल जाता है।
- पशु खाना और पानी पीना बंद कर देता है साथ ही ज़मीन पर लेट कर पाँव पटकने लगता है।
- इसके निवारण के लिए पशु को 400 से 500 मिली सरसों तेल के साथ 30-60 मिली तारपीन का तेल मिलाकर पिलाने से इस रोग का निवारण किया जा सकता है।
दीमक जैसे जमीनी कीड़े से फसल का करें बचाव, अपनाएं जैविक नियंत्रण विधि
- दीमक जैसे जमीनी कीड़े सभी प्रकार की फसलों को बर्बाद कर सकते हैं। ये पौधों की जड़ों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- आलू, टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहूँ आदि फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
इन कीटों के नियंत्रण हेतु निम्र प्रबंधन उपायों का उपयोग करें
- बीजों को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।
- कीटनाशी मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए।
- कच्ची गोबर की खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि कच्चा गोबर इस कीट का मुख्य भोजन होता है।
- अतः गोबर का उपयोग करने से पहले उसे अच्छी तरह सड़ा कर ही उपयोग करें।
शुरू होंगे 10000 नए एफपीओ, सरकार ₹6850 करोड़ करेगी खर्च, पढ़ें पूरी जानकारी
केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक बार फिर 10 हजार नए एफपीओ खोलने की बात दोहराई है। उन्होंने कहा की “भारत में 86% छोटे तथा सीमांत किसान हैं और इनकी हर प्रकार की सहायता हेतु एफपीओ को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार देश में 10 हजार नए एफपीओ बनाने जा रही है, जिन पर आने वाले 5 वर्ष में 6850 करोड़ रूपए खर्च होंगे।”
बता दें की पिछले दिनों मधुमक्खी पालकों/शहद संग्राहकों के लिए 5 नए एफपीओ का शुभारंभ कुछ दिन पहले ही किया गया है। ये नए एफपीओ मध्य प्रदेश के मुरैना, पश्चिम बंगाल के सुंदरबन, बिहार के पूर्वी चंपारण, राजस्थान के भरतपुर और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में बनाये गए हैं।
एफपीओ कृषक उत्पादक संगठन को कहते हैं। ये वैसे किसानों का समूह होता है जो कृषि उत्पादन के काम में हो और आगे चल के खेती से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियां चलाने में सक्षम हो। आप भी एक समूह बना कर कंपनी एक्ट में रजिस्टर्ड हो सकते हैं।
कैसे करें आवेदन
इसके आवेदन हेतु आधिकारिक वेबसाइट http://sfacindia.com/FPOS.aspx पर जाएँ और आवेदन हेतु पूछी गई जानकारियों को सही सही भर दें। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक http://sfacindia.com/UploadFile/Statistics/Farmer%20Producer%20Organizations%20Scheme.pdf पर क्लिक करें।
कृषक उत्पादक संगठन से जुड़े हुए किसानों को अपने उत्पादन के लिए बाजार के साथ साथ खाद, बीज, दवा तथा खेती के उपकरण आदि भी आसानी से सस्ती दरों पर मिल पाएंगे। इससे छोटे-मझौले किसानों के जीवन में बदलाव आएगा और इनकी आय काफी बढ़ेगी।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareमध्य प्रदेश समेत इन क्षेत्रों में आने वाले कुछ दिनों में हो सकती है बारिश
दक्षिण पूर्वी एवं पूर्वी मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़, झारखंड, तटीय पश्चिम बंगाल, ओडिशा, विदर्भ, मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में कल से आने वाले कुछ दिनों तक बारिश की संभावना बन रही है। इसके साथ ही पहाड़ों पर हल्की बर्फबारी के भी आसार बन रहे हैं। उत्तर भारत में घना कोहरा छाये रहने की संभावना है। हालाँकि अब सर्दी के जल्द विदाई की संभावना बन गई है।
वीडियो स्रोत: स्काईमेट वेदर
Shareकरेले की फसल में फल मक्खी का प्रबंधन
- फल मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अण्डे देती है और अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेंद करके उन्हे हानि पहुंचाती है।
- मेगट (लार्वा) फलों में छेंद करने के बाद उनके भीतरी भाग को खाते है। इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते हैं।
- इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है। अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।
- इस समस्या से ग्रसित फलों को इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिये।
- इन मक्खीयों का नियंत्रण करने के लिये करेले के खेत में कतारों के बीच में मक्के के पौधों को उगाया जाना चाहिये, पौधे की उचाई ज्यादा होने के कारण मक्खी पत्तों के नीचे अंडे देती है।
- गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करके भूमि के अंदर की मक्खी की सुप्त अवस्था को नष्ट करना चाहिये।
- कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप और फेरामोन ट्रैप का उपयोग करें।
- इसके नियंत्रण के लिए फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
फसलों में पत्ती झुलसा रोग के लक्षण एवं बचाव के उपाय
- ब्लाइट एक कवक एवं जीवाणु जनित बीमारी है। इसके लक्षणों में पौधों में गंभीर पीलापन, भूरापन, स्पॉटिंग, मुरझाने की समस्या या फिर पत्तियों, फूलों, फलों, तने और कभी कभी पूरे पौधे का मरना शामिल होता है।
- आमतौर पर यह रोग पूरे पौधे और पौधे के तेजी से बढ़ते ऊतकों पर हमला करते हैं।
- फंगल और बैक्टीरियल ब्लाइट्स के प्रकोप में अधिक नमी सबसे बड़ा कारण होती है।
- जीवाणु जनित रोग के निवारण के लिए कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड@ 24 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या सूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ से छिड़काव करें।
- कवक जनित रोगों के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@500 ग्राम/एकड या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.30% W/W@ 250 मिली/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मूंग समृद्धि किट से कई किसानों को हुआ मूंग का बम्पर उत्पादन, जानें इसके फायदे
मूंग की फसल के लिए ग्रामोफ़ोन की ख़ास पेशकश ‘मूंग समृद्धि किट’ के उपयोग से पिछले वर्ष कई किसानों ने मूंग का बम्पर उत्पादन प्राप्त किया। इस साल भी किसान इस किट को इस्तेमाल करने वाले हैं। आप भी इसके इस्तेमाल से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। आइये जानते हैं इस किट की खासियत क्या है?
- मूंग समृद्धि किट दरअसल एक भूमि सुधारक की तरह कार्य करता है।
- इस किट में तीन आवश्यक बैक्टीरिया PK एवं राइजोबियम है, जो मिट्टी में PK (फॉस्फोरस + पोटाश) की पूर्ति करके फसल के स्वस्थ्य बढ़वार में सहायता करते हैं।
- इसके साथ ही राइजोबियम का जीवाणु वातावरण से प्राप्त नाइट्रोज़न को सरल रूप में परिवर्तित करके फसल को प्रदान करने का कार्य करता है।
- इस किट में एक जैविक कवकनाशी ट्रायकोडर्मा विरिडी को शामिल किया गया है जो मूंग की फसल को कवकजनित रोगों से सुरक्षित रखता है।
- इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का भी संयोजन है। ये मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार करता है, साथ ही मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करता है। ह्यूमिक एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके मूंग की फसल के बेहतर वनस्पति विकास में भी मदद करता है।