Fertilizer Requirments for Watermelon

तरबूज़ की खेती के लिए उचित उर्वरक की मात्रा:- 

  • तरबूज की खेती में अच्छी उपज के लिए अच्छी तरह सड़ी हुई खाद 15-25 टन/हेक्टेयर मृदा की तैयारी के समय उपयोग करें|
  • इसकी खेती में कुल 135 क़ि.ग्रा. यूरिया, 100 क़ि.ग्रा डी.ए.पी. एवं 70 किलोग्राम एम.ओ.पी. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है|
  • इसमें फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के पूर्व उपयोग किया जाता है|
  • बची हुई नाइट्रोजन को बुवाई के 10-15 दिनों बाद उपयोग किया जाता है|
  • सामान्यतः नाइट्रोजन की अधिक मात्रा उच्च तापक्रम पर तरबूज मे फूलों की संख्या को कम कर देता है और साथ में उपज को भी प्रभावित करता है|

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Harvest and Post Harvest Management of Onion

प्याज की तुड़ाई एवं तुड़ाई उपरान्त तकनीक

तुड़ाई:-

  • किस्मों के आधार पर प्याज, रोपण के 3 से 5 माह में तैयार हो जाती है।
  • जब पौधों के ऊपरी शिराये झुक जाती है व निचला भाग हल्का पीले-हरे रंग के हो जाते है तब कन्दों को निकालने का उपयुक्त समय होता है।
  • गर्मी के दिनों में भूमि कडी हो जाती है तब कंदों को भूमि से बाहर निकालने के लिए खुरपी का इस्तेमाल किया जाता है।
  • रबी मौसम की तुलना में खरीफ मौसम की फसल मे कम उपज होती है।

पैकिंग:-

  • लम्बी दूरी के बाजारों में ट्रक, रेल या वायुयान के द्वारा परिवहन के लिए जूट एवं नेट के बोरो का उपयोग पैकिग के लिए किया जाता है।
  • सामान्यतः 40 कि.ग्राम क्षमता के जूट एवं नेट बैग का उपयोग देश में एवं निर्यात के लिए 6-25 कि.ग्राम क्षमता वाले बोरो का उपयोग किया जाता है।
  • निर्यात के उद्देश्य से प्याज को 14-15 कि.ग्राम क्षमता की टोकरियों में भी पैक किया जाता है।

छटाई:-

  • कंदों को उपचारित करने के बाद हाथों एवं मशीनों के द्वारा आकार के आधार पर विभिऩ्न श्रेणी में श्रेणीकरण किया जाता है।
  • श्रेणीकृत प्याज को भंडारण के पूर्व उसमे से सड़े, कटे एवं अवाँछित लक्षण वाले कंदों को अलग कर देना चाहिये।
  • श्रेणी गत करने से पहले कंदों के ऊपर के सूखे छिलको को अलग कर देना चाहिये जिससे कंद आकर्षक दिखायी देते है।
  • उपचारित प्याजों को उनके आकार एवं घरेलू बाजार की उपलब्धता एवं निर्यात आधार पर श्रेणीकृत किया जाता है।

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Gramophone organised its ‘Field Day’

ग्रामोफ़ोन के फील्ड डे पर उमड़ी किसानो की भीड़ – 08 दिसंबर, 2018 को, ग्रामोफोन ने अपना ‘फील्ड डे’ आयोजित किया जहां सामान्य तौर उपयोग की जाने वाली कृषि पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई आधुनिक कृषि पद्धतियों से किया गया। ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों ने किसान को हर कदम पर निर्देशित किया और फसल चक्र की समीक्षा की जिस वजह से फसल की गुणवत्ता बहुत अच्छी है और परिणाम काफी उत्साहजनक हैं। बैंकपुरा गांव (धामनोद) के किसान मनीष अग्रवाल ग्रामोफ़ोन के बारे में कहते है की, “मैं इस सीजन में ग्रामोफोन के विशेषज्ञों से मदद ले रहा हूं और अन्य क्षेत्रों की तुलना में, मेरी फसल स्वस्थ है और मुझे उम्मीद है कि इस बार 30-40% ज़्यादा उत्पादन होगा”।

आइये देखते है सामान्य किसान द्वारा की खेती की फसल की गुणवत्ता का ग्रामोफ़ोन द्वारा आधुनिक पद्धतियों से उगाई गई फसल का तुलनात्मक अध्ययन

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Suitable climate and soil for watermelon

तरबुज के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी:-

  • गर्म एवं शुष्क जलवायु इसकी खेती के लिए उत्तम होती है।
  • बीज के जमाव व पौधों की बढ़वार के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापक्रम अच्छा होता है। यह ग्रीष्म ॠतु की फसल है, इसलिए पाला सहन नही कर सकती |
  • हवा में अधिक नमी होने पर फल देरी से पकते हैं।
  • फल पकते समय मौसम शुष्क तथा पछुआ हवा बहने से फलों में मिठास बढ़ जाती है। उचित जल निकास और जीवांश युक्त बलुई मिट्टी या दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम पायी गयी है।
  • इसकी फसल के लिए सर्वोत्तम मृदा पी एच मान 5-7 होता है। उचित जल निकास ना होने पर कई प्रकार की बीमारियों का प्रकोप होने लगता है| नदी के किनारे भूमि में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।

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Control Of Jassid in Okra

भिन्डी में जेसिड (फुदका) का नियंत्रण:-

पहचान:-

  • शिशु एवं वयस्क दोनों समान आकार के होते है, किन्तु शिशु में पंखों का निर्माण नही होता है।
  • खेत के अन्दर फसल में प्रवेश करने पर शिशु एवं वयस्क दोनों उड़ते हुये दिखाई देते है।  
  • वयस्क पत्तियों एवं शाखाओं की निचली सतह पर अण्डे देते है।  
  • इनका जीवन चक्र 2 सप्ताह में पूरा होता है।

हानि:-

  • शिशु एवं वयस्क कीट दोनों हरे रंग के एवं छोटे आकार के होते है।
  • शिशु एवं वयस्क, पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं ।
  • ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती है जो बाद में पीली हो जाती है एवं उन पर जले हुये धब्बे बन जाते है। इनके द्वारा माइकोप्लाज्मा रोग जैसे लघु पर्ण एवं विषाणु रोग जैसे चितकबरापन स्थानांतरित होता है।  
  • इस कीट के अत्यधिक प्रभाव देखे जाने पर पौधे में फल लगना कम हो जाता है।

नियंत्रण:-

  • बुआई के समय कार्बोफुरोन 3 जी @ 10 किलो प्रति एकड़ जमीन में मिलाये|
  • जेसिड की रोकथाम हेतु जेसिड दिखाई देने पर हर 15 दिन में प्रोफेनोफॉस 50 % ईसी @ 400 मिली या एसीटामाप्रीड 20% @ 80 ग्राम का स्प्रे करें |
  • जैसिड से बचाव के लिए नीम- लहसुन का सत जैसिड आने से पहले हर 15 दिन में करें|

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Post Calving Challenges In Milk Cattles

दुधारू पशुओं में प्रसव उपरांत सुरक्षा:-

  • प्रसव के बाद पशु की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है इसके साथ-साथ कैल्शियम की कमी भी सामान्यता देखने को मिलती है जिसकी वजह से पशुओं में दूध का उत्पादन तो कम होता ही है, पशु को मिल्क फीवर होने की भी सम्भावना बढ़ जाती है, कुछ पशुओं को जेर गिराने में भी समस्या होती है| इस समय पशुओं का अच्छे से ख्याल रखना तथा सही मात्रा में और सही पशु आहार का देना चाहिये| साथ ही इसे शक्ति वर्धक पेय देना भी जरूरी होता है|

उपाय:-

  • ट्रान्समिक्स मिल्क फीवर और केटोसिस जैसे चयापचय विकारों की संभावनाओं को कम करने में मदद करता है|
  • ट्रान्समिक्स ब्याने से होने वाले तनाव को कम करता है |
  • ट्रान्समिक्स प्लेसेंटा और मेट्रिसिस की संभावनाओं को रोकता है|
  • ट्रान्समिक्स पशु की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है|
  • ट्रान्समिक्स दूध उत्पादन को बढ़ाता है|

मात्रा:-

  • प्रसव के बाद पशुओं को 500 मिली ट्रान्समिक्स बोतल से पिलाइए तथा दूसरी खुराक 48 से 72 घंटे बाद बोतल से ही पिलाइए|

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Management of Powdery mildew in Peas

मटर में चूर्णिल आसिता रोग का प्रबंधन:-

लक्षण:-

  • पहले पुरानी पत्तियों पर आते है इसके बाद पोधे के अन्य भाग पर|
  • पत्तियों की दोनी सतहों पर चूर्ण बनता है|
  • इसके बाद कोमल तनों, फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बनते है |
  • पौधे की सतह पर सफ़ेद चूर्ण दिखाई देता है| फल या तो लगते नहीं है या छोटे रह जाते है|
  • अंतिम अवस्था में चूर्णिल वृद्धि फलियों को ढक लेती है जिससे वह बाज़ार में बिकने के लायक नहीं रहते है|

प्रबन्धन:-

  • देर से बुआई ना करे|
  • प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करे जैसे अर्का अजीत, PSM-5, जवाहर मटर-4, जेपी-83, जेआरएस-14 |
  • घुलनशील सल्फर 50% WP 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या डायनोकेप 48% ईसी 2 मिली प्रति ली पानी का स्प्रे दो से तीन बार 10 दिन के अंतराल में करे |

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Control of Fruit Rot in Brinjal

बैगन में फल सड़न रोग का नियंत्रण:-

लक्षण:

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है |
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे धीरे दूसरे फलो में फैल  जाते है |
  • प्रभावित फलो की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है जिस पर सफ़ेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है |

रोकथाम :

  • इस रोग से ग्रसित पौधे के पतियों  एवं अन्य भागो के तोड़कर नष्ट कर दे |
  • फसल पर मेंकोजेब @ 400 ग्राम/एकड़ या जिनेब @ 400 ग्राम या केप्टॉन+ हेक्साकोनाज़ोल @ 250 ग्राम/ एकड़ की दर से 10 दिनों के अन्तराल से छिडकाव करें|

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Management of pod borer in Gram(Chickpea)

चने में फली छेदक का प्रबंधन:- फली छेदक चने की एक कुख्यात कीट है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। फली छेदक के कारण पैदावार का नुकसान 21% है। कीट के बारे में बताया जाता है कि चने को लगभग 50 से 60% नुकसान होता है| चना के अलावा कीट अरहर, मटर, सूरजमुखी, कपास, कुसुम, मिर्च, ज्वार, मूंगफली, टमाटर और अन्य कृषि और बागवानी फसलों पर भी हमला करता है। यह दालों और तिलहनों का एक विनाशकारी कीट है।

संक्रमण:- कीट की शुरूआत आमतौर पर अंकुरण के एक पखवाड़े के बाद होती है| और यह कली निकलने के शुरुआत के साथ बादल और उमस वाले मौसम में गंभीर हो जाती है। मादा अकेले कई छोटे सफेद अंडे रखती है 3-4 दिनों में अंडे से इल्लियाँ निकलती है, कोमला पत्तियों पर थोड़े समय के लिए खाती हैं और बाद में फली पर आक्रमण करते हैं। एक पूर्ण विकसित इल्ली लगभग 34 मिमी लंबे, हरी से भूरे रंग की हो जाती है मिट्टी में चली जाती है मिट्टी में यह प्यूपा बनजाती है| जीवन चक्र लगभग 30-45 दिनों में पूरा हो गया है। कीट एक साल में आठ पीढ़ियों को पूरा करता है।

प्रबंधन:- गर्मियों में गहरी जुताई करे जिससे जमीन में छिपे कीड़े को प्राकृतिक शिकारी खा सके| 0.5%  जिगरी और 0.1% बोरिक एसीड के साथ HaNVP 100 LE प्रति एकड़ की दर से अंडा सेने की अवस्था पर छिडकाव करे और 15-20 दिनों में दोहराएं। रसायनों के उपयोग में 2.00 मिलीलीटर प्रोफेनोफोस 50 ईसी प्रति लीटर पानी अंडानाशक के रूप में लेना चाहिए। फेरोमेन ट्रेप का उपयोग करे 4-5 ट्रेप प्रति हेक्टयर | शुरुआती अवस्था में नीम सीड करनाल सत 5% का स्प्रे करे | यदि संक्रमण अधिक होतो इंडोक्साकार्ब 14.5% SC 0.5 मिली या स्पिनोसेड 45% SC 0.1 मिली या 2.5 मिली क्लोरोपाईरीफास 20 EC प्रति ली. पानी के अनुसार छिडकाव करे | 4-5 पक्षी के बैठने का स्थान बनाये और फसल के चारो और भिन्डी और गेंदा सुरक्षा फसल के रूप में लगाए|

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Management of Late blight in Potato

आलू में पिछेती झुलसा का प्रबंधन

  • पिछेती झुलसा आलू की मुख्य बीमारी है |
  • यह रोग फायटोप्थोरा इन्फेसटेन्स नामक एक कवक के कारण होता है यह रोग पत्तियों, तनो और कंदों को नुकसान पहुंचाता है।
  • बीमारी पहले पनीले, पत्ती के किनारों पर हल्के भूरे रंग के घावों के रूप में प्रकट होती है।
  • संक्रमित पत्ती के ऊतकों के मरने के बाद घाव गहरे भूरे, सूखे और भंगुर हो जाते हैं।
  • आर्द्र वातावरण में, फफूंद की वृद्धि को धब्बो के निचे की तरफ कपासी वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है|
  • धब्बे काले हो जाते हैं क्योंकि प्रभावित पत्ते सड़ने लगते हैं। गंभीर संक्रमण के कारण सभी पत्ते सड़ जाते है सुख जाते है ओर जमीन पर गिर जाते है तना सुख जाता है एवं पौधा मर जाता है| जमीन के नीचे कंद भी फसल से पहले क्षय हो जाते हैं कंदों पर, हरापन को देखा जा सकता है।
  • आलू की पिछेती झुलसा के नियंत्रण के लिए, मैन्कोज़ेब 75% WP @ 50 ग्रा. / 15 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP @ 50 ग्रा. / 15 लीटर पानी या मेटालेक्सिल + मैन्कोज़ेब @ 50 ग्रा / 15 लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

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