-
इस रोग के प्रकोप से पौधा बौना रह जाता है, पत्तियां पीली हो जाती हैं तथा अंत में पौधा मुरझा के गिर जाता है।
-
निचली पत्तियां मुरझाने से पहले ही गिर जाती हैं।
-
निचले तने के खंड को काटकर देखने पर जीवाणु रिसाव द्रव्य देखा जा सकता है।
-
तने से अस्थानिक जड़े विकसित हो जाती हैं।
-
इस रोग के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले ब्लीचिंग पाउडर 6 किलो प्रति एकड़ की दर से डालें।
-
स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आई.पी. 90% w/w + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड I.P. 10% w/w 30 ग्राम/एकड़ या कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
-
जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
-
क्रूसिफ़ेरी सब्जी, गेंदा और धान के साथ फसल चक्र अपनाने से भी टमाटर की फसल में इस रोग से बचाव होती है।
Shareअपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।