मंडी |
फसल |
न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में) |
अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में) |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
34 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
34 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
42 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
27 |
33 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
34 |
38 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
38 |
42 |
कानपुर |
प्याज़ |
6 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
8 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
10 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
11 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
5 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
23 |
25 |
कानपुर |
लहसुन |
30 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
35 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
10 |
12 |
जयपुर |
प्याज़ |
14 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
15 |
16 |
जयपुर |
प्याज़ |
4 |
5 |
जयपुर |
प्याज़ |
6 |
7 |
जयपुर |
प्याज़ |
8 |
9 |
जयपुर |
प्याज़ |
10 |
– |
जयपुर |
लहसुन |
12 |
15 |
जयपुर |
लहसुन |
18 |
22 |
जयपुर |
लहसुन |
25 |
28 |
जयपुर |
लहसुन |
35 |
42 |
जयपुर |
लहसुन |
10 |
12 |
जयपुर |
लहसुन |
15 |
18 |
जयपुर |
लहसुन |
22 |
25 |
जयपुर |
लहसुन |
30 |
35 |
रतलाम |
प्याज़ |
3 |
4 |
रतलाम |
प्याज़ |
4 |
6 |
रतलाम |
प्याज़ |
7 |
9 |
रतलाम |
प्याज़ |
10 |
11 |
रतलाम |
लहसुन |
3 |
6 |
रतलाम |
लहसुन |
7 |
18 |
रतलाम |
लहसुन |
18 |
30 |
रतलाम |
लहसुन |
35 |
– |
जयपुर |
अनन्नास |
58 |
62 |
जयपुर |
कटहल |
18 |
– |
जयपुर |
नींबू |
45 |
– |
जयपुर |
आम |
42 |
55 |
जयपुर |
आम |
35 |
– |
जयपुर |
नींबू |
45 |
– |
जयपुर |
नारियल हरा |
36 |
38 |
जयपुर |
अदरक |
30 |
32 |
जयपुर |
आलू |
12 |
15 |
जयपुर |
तरबूज |
6 |
– |
जयपुर |
कच्चा आम |
25 |
– |
जयपुर |
लीची |
60 |
– |
कोचीन |
अनन्नास |
51 |
– |
कोचीन |
अनन्नास |
50 |
– |
कोचीन |
अनन्नास |
43 |
– |
सिलीगुड़ी |
आलू |
10 |
– |
सिलीगुड़ी |
अदरक |
22 |
– |
सिलीगुड़ी |
लहसुन |
22 |
25 |
सिलीगुड़ी |
लहसुन |
28 |
– |
सिलीगुड़ी |
लहसुन |
33 |
35 |
सिलीगुड़ी |
अनन्नास |
50 |
– |
सिलीगुड़ी |
सेब |
110 |
– |
वाराणसी |
आलू |
14 |
15 |
वाराणसी |
अदरक |
31 |
32 |
वाराणसी |
आम |
35 |
40 |
वाराणसी |
अनन्नास |
22 |
25 |
वाराणसी |
लीची |
50 |
60 |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
17 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
18 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
20 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
55 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
58 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
65 |
– |
कोलकाता |
आलू |
20 |
– |
कोलकाता |
अदरक |
34 |
– |
कोलकाता |
तरबूज |
16 |
– |
कोलकाता |
अनन्नास |
45 |
50 |
कोलकाता |
सेब |
127 |
140 |
कोलकाता |
आम |
54 |
68 |
कोलकाता |
लीची |
45 |
55 |
कोलकाता |
नींबू |
50 |
55 |
वाराणसी |
प्याज़ |
8 |
10 |
वाराणसी |
प्याज़ |
10 |
12 |
वाराणसी |
प्याज़ |
12 |
13 |
वाराणसी |
प्याज़ |
8 |
9 |
वाराणसी |
प्याज़ |
10 |
12 |
वाराणसी |
लहसुन |
12 |
13 |
वाराणसी |
लहसुन |
7 |
12 |
वाराणसी |
लहसुन |
15 |
20 |
वाराणसी |
लहसुन |
20 |
25 |
वाराणसी |
लहसुन |
25 |
35 |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
10 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
13 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
18 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
10 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
33 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
37 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
42 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
30 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
45 |
आगरा |
नींबू |
50 |
– |
आगरा |
कटहल |
12 |
13 |
आगरा |
अदरक |
19 |
– |
आगरा |
अनन्नास |
27 |
– |
आगरा |
तरबूज |
4 |
5 |
आगरा |
आम |
35 |
50 |
आगरा |
लीची |
65 |
68 |
नासिक |
प्याज़ |
5 |
6 |
नासिक |
प्याज़ |
5 |
7 |
नासिक |
प्याज़ |
8 |
11 |
नासिक |
प्याज़ |
14 |
– |
आगरा |
आलू |
23 |
– |
आगरा |
बैंगन |
20 |
– |
आगरा |
हरी मिर्च |
25 |
– |
आगरा |
भिन्डी |
15 |
– |
आगरा |
शिमला मिर्च |
10 |
15 |
आगरा |
लहसुन |
23 |
– |
आगरा |
लहसुन |
40 |
– |
आगरा |
लहसुन |
53 |
– |
टमाटर के बाद हरा धनिया हुआ महंगा, कीमतों में भारी उछाल
बढ़ती मंहगाई का असर मंडी भाव पर भी देखने को भी मिल रहा है। नींबू, टमाटर के बाद अब हरे धनिया का भाव रफ्तार पकड़ रहा है। धनिया की कीमत का हाल यह है कि जितने रूपए में आप धनिया का एक बंडल खरीदेंगे, उतने रूपए में आप कई किलो प्याज खरीद सकते हैं।
कीमत बढ़ने की वजह
इस बार भीषण गर्मी के चलते धनिया की उपज पर काफी असर पड़ा है। ओवरहीटिंग की वजह से इसकी वृद्धि सही से नहीं हो पाई। उपज में आई कमी और बाजार में बढ़ती भारी मांग के चलते इसकी कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली है। जिस कारण 5 रूपए में मिलने वाला हरे धनिया का छोटा बंडल अब 20 रूपए में मिल रहा है।
बहरहाल बाजार में धनिया के बढ़ते दाम से किसान भाईयों को बढ़िया मुनाफा प्राप्त हो रहा है। हालांकि पिछले कुछ सालों से खराब मौसम के चलते खेती में होते नुकसान होने की वजह से किसान भाईयों ने हरे धनिया की खेती कम कर दी है। जिस वजह से गर्मी पड़ते ही बाजार में इसके भाव आसमान छूने लगते हैं।
स्रोत: टीवी9 भारतवर्ष
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देश के प्रमुख मंडियों में 3 जून को क्या रहे लहसुन के भाव?
लहसुन भाव में कितनी तेजी या मंदी देखने को मिल रही है? वीडियो के माध्यम से देखें अलग अलग मंडियों में क्या चल रहा है लहसुन का भाव !
स्रोत: ऑल इनफार्मेशन
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गेहूँ भाव में तेजी जारी, देखें 3 जून को देश के प्रमुख मंडियों के भाव
गेहूँ भाव में कितनी तेजी या मंदी देखने को मिल रही है? वीडियो के माध्यम से देखें अलग अलग मंडियों में क्या चल रहा है गेहूँ का भाव !
स्रोत: आज का सोयाबीन भाव
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कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन के उपाय
👉🏻किसान भाइयों कपास में पहली बारिश के बाद खरपतवार निकलने लगते हैं।
👉🏻इसके नियंत्रण के लिए हाथ से निराई गुड़ाई करें।
👉🏻रासायनिक प्रबंधन में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए टरगा सुपर (क्विज़ालोफॉप एथिल 5% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
👉🏻पहली बारिश के 3-5 दिन बाद या 2-3 पत्ती अवस्था में हिटविड मैक्स (पाइरिथायोबैक सोडियम 10% + क्विजालीफॉप इथाइल 4% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं।
👉🏻जब फसल छोटी हो तो इस समस्या से बचने के लिए मिट्टी की सतह पर छिड़काव करें। खरपतवारनाशी का उपयोग नोजल के ऊपर हुड लगाकर उपयोग करें।
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कई राज्यों में भारी बारिश की संभावना, देखें मौसम पूर्वानुमान
मानसून के और आगे बढ़ने की संभावना प्रबल होती जा रही है। यह कर्नाटक के कुछ और भागों सहित दक्षिणी आंध्र प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्यों पर अगले कुछ समय में पहुंच सकता है। दक्षिणी प्रायद्वीप में बारिश की गतिविधियां जारी रहेगी परंतु अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भारी बारिश संभव है। उत्तर पूर्वी राज्यों में भी भारी बारिश की गतिविधियां शुरू हो जाएंगी। पूर्वी भारत में छिटपुट वर्षा तथा उत्तर पश्चिम भारत गर्म और शुष्क रहेगा।
स्रोत: स्काइमेट वेदर
Shareमौसम सम्बंधित पूर्वानुमानों की जानकारियों के लिए रोजाना ग्रामोफ़ोन एप पर जरूर आएं। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर जरूर करें।
देश के विभिन्न मंडियों में 2 जून को क्या रहे फलों और फसलों के भाव?
मंडी |
फसल |
न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में) |
अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में) |
जयपुर |
अनन्नास |
58 |
62 |
जयपुर |
कटहल |
18 |
– |
जयपुर |
नींबू |
45 |
– |
जयपुर |
आम |
42 |
55 |
जयपुर |
आम |
35 |
– |
जयपुर |
नींबू |
45 |
– |
जयपुर |
हरा नारियल |
36 |
38 |
जयपुर |
अदरक |
30 |
32 |
जयपुर |
आलू |
12 |
15 |
जयपुर |
तरबूज |
6 |
– |
जयपुर |
कच्चा आम |
25 |
– |
जयपुर |
लीची |
60 |
– |
रतलाम |
प्याज़ |
3 |
4 |
रतलाम |
प्याज़ |
4 |
6 |
रतलाम |
प्याज़ |
6 |
9 |
रतलाम |
प्याज़ |
9 |
11 |
रतलाम |
लहसुन |
6 |
10 |
रतलाम |
लहसुन |
11 |
20 |
रतलाम |
लहसुन |
22 |
35 |
कोचीन |
अनन्नास |
49 |
– |
कोचीन |
अनन्नास |
48 |
– |
कोचीन |
अनन्नास |
43 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
14 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
17 |
– |
आगरा |
आलू |
21 |
– |
आगरा |
बैंगन |
20 |
– |
आगरा |
हरी मिर्च |
25 |
– |
आगरा |
भिन्डी |
15 |
– |
आगरा |
शिमला मिर्च |
10 |
15 |
आगरा |
लहसुन |
23 |
– |
आगरा |
लहसुन |
40 |
– |
आगरा |
लहसुन |
53 |
– |
आगरा |
नींबू |
20 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
6 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
8 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
10 |
– |
कानपुर |
प्याज़ |
11 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
5 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
23 |
25 |
कानपुर |
लहसुन |
30 |
– |
कानपुर |
लहसुन |
33 |
– |
विजयवाड़ा |
तरबूज |
7 |
– |
विजयवाड़ा |
खरबूजा |
40 |
45 |
विजयवाड़ा |
मोसंबी |
25 |
– |
विजयवाड़ा |
पपीता |
12 |
– |
विजयवाड़ा |
अनन्नास |
60 |
70 |
वाराणसी |
अदरक |
24 |
25 |
वाराणसी |
आलू |
14 |
15 |
वाराणसी |
नींबू |
35 |
40 |
वाराणसी |
सेब |
90 |
105 |
वाराणसी |
आम |
40 |
45 |
वाराणसी |
लीची |
65 |
70 |
जयपुर |
प्याज़ |
10 |
12 |
जयपुर |
प्याज़ |
14 |
– |
जयपुर |
प्याज़ |
15 |
16 |
जयपुर |
प्याज़ |
4 |
5 |
जयपुर |
प्याज़ |
6 |
7 |
जयपुर |
प्याज़ |
8 |
9 |
जयपुर |
प्याज़ |
10 |
– |
जयपुर |
लहसुन |
12 |
15 |
जयपुर |
लहसुन |
18 |
22 |
जयपुर |
लहसुन |
25 |
28 |
जयपुर |
लहसुन |
35 |
42 |
जयपुर |
लहसुन |
10 |
12 |
जयपुर |
लहसुन |
15 |
18 |
जयपुर |
लहसुन |
22 |
25 |
जयपुर |
लहसुन |
30 |
35 |
रतलाम |
प्याज़ |
3 |
4 |
रतलाम |
प्याज़ |
4 |
6 |
रतलाम |
प्याज़ |
7 |
10 |
रतलाम |
प्याज़ |
10 |
11 |
रतलाम |
लहसुन |
6 |
10 |
रतलाम |
लहसुन |
11 |
20 |
रतलाम |
लहसुन |
22 |
35 |
पटना |
टमाटर |
50 |
55 |
पटना |
आलू |
10 |
12 |
पटना |
प्याज़ |
9 |
11 |
पटना |
प्याज़ |
12 |
13 |
पटना |
प्याज़ |
9 |
11 |
पटना |
प्याज़ |
12 |
13 |
पटना |
लहसुन |
20 |
25 |
पटना |
लहसुन |
30 |
33 |
पटना |
लहसुन |
35 |
36 |
पटना |
तरबूज |
18 |
– |
पटना |
कटहल |
20 |
– |
पटना |
अंगूर |
55 |
– |
पटना |
खरबूजा |
16 |
– |
पटना |
सेब |
95 |
– |
पटना |
अनार |
100 |
– |
पटना |
हरी मिर्च |
25 |
– |
पटना |
करेला |
30 |
– |
पटना |
खीरा |
7 |
– |
पटना |
कद्दू |
8 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
17 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
18 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
प्याज़ |
20 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
55 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
58 |
– |
तिरुवनंतपुरम |
लहसुन |
65 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
10 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
13 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
18 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
10 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
33 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
37 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
42 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
30 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
45 |
वाराणसी |
प्याज़ |
7 |
9 |
वाराणसी |
प्याज़ |
10 |
12 |
वाराणसी |
प्याज़ |
12 |
13 |
वाराणसी |
प्याज़ |
8 |
9 |
वाराणसी |
प्याज़ |
12 |
|
वाराणसी |
लहसुन |
13 |
14 |
वाराणसी |
लहसुन |
7 |
12 |
वाराणसी |
लहसुन |
15 |
20 |
वाराणसी |
लहसुन |
20 |
25 |
वाराणसी |
लहसुन |
25 |
35 |
आगरा |
प्याज़ |
7 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
8 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
9 |
10 |
आगरा |
प्याज़ |
11 |
13 |
आगरा |
प्याज़ |
7 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
8 |
– |
आगरा |
प्याज़ |
9 |
10 |
आगरा |
प्याज़ |
11 |
13 |
आगरा |
प्याज़ |
6 |
7 |
आगरा |
प्याज़ |
8 |
9 |
आगरा |
प्याज़ |
10 |
12 |
आगरा |
प्याज़ |
14 |
– |
आगरा |
लहसुन |
12 |
15 |
आगरा |
लहसुन |
18 |
20 |
आगरा |
लहसुन |
21 |
22 |
आगरा |
लहसुन |
25 |
28 |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
12 |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
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गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
17 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
34 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
34 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
45 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
20 |
25 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
27 |
33 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
34 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
45 |
आगरा |
नींबू |
40 |
– |
आगरा |
कटहल |
13 |
14 |
आगरा |
अदरक |
19 |
– |
आगरा |
अनन्नास |
27 |
– |
आगरा |
तरबूज |
4 |
6 |
आगरा |
आम |
35 |
50 |
आगरा |
लीची |
65 |
68 |
आगरा |
आलू |
17 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
9 |
10 |
लखनऊ |
प्याज़ |
11 |
12 |
लखनऊ |
प्याज़ |
11 |
12 |
लखनऊ |
प्याज़ |
13 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
14 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
10 |
15 |
लखनऊ |
लहसुन |
20 |
25 |
लखनऊ |
लहसुन |
30 |
35 |
लखनऊ |
लहसुन |
40 |
45 |
खेत तालाब के लिए पाएं 63 हजार का अनुदान, यहां करें आवेदन
देश के कई राज्य गिरते भूजल स्तर के कारण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। पानी की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकारें कई तरह की योजनाएं चला रही है। इसी क्रम में राजस्थान सरकार ने अपने राज्य के किसानों के लिए एक खास योजना का ऐलान किया है।
सिंचाई के लिए मिलेगी आर्थिक मदद
दरअसल खरीफ फसल की बुवाई नजदीक आ चुकी है। हालांकि गिरते भूस्तर की वजह से किसान भाईयों को खेत में सिंचाई के लिए पानी की कमी हो सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने ‘राजस्थान किसान फार्म पोंड योजना’ शुरू की है। योजना के तहत खेत में तालाब बनवाने के लिए सरकार की ओर से 60% यानी अधितकम 63 हजार रूपए की आर्थिक मदद की जाएगी।
इन किसानों को मिलेगा लाभ
हालांकि योजना का लाभ उन्हीं किसान भाईयों को मिल पाएगा, जिनके पास कम से कम 0.3 हेक्टेयर की खेती योग्य भूमि होगी। योजना का लाभ उठाने के लिए लाभार्थी ऑनलाइन या फिर ऑफलाइन आवेदन कर सकते हैं।
योजना के लिए यहां करें आवेदन
ऑफलाइन आवेदन के लिए लाभार्थी को अपने क्षेत्रीय सहायक कृषि अधिकारी या फिर कृषि पर्यवेक्षक से संपर्क करना होगा। वहीं ऑनलाइन के लिए सराकारी पोर्टल rajkisan.rajsthan.gov.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। जहां जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद लाभार्थी के बैंक खाते में सीधे 63 हजार रूपए की राशि ट्रांसफर कर दी जाएगी।
स्रोत: आज तक
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प्राकृतिक खेती से बढ़ाएं खेत की उर्वरता और पाएं जबरदस्त उपज
प्राकृतिक खेती कृषि की प्राचीन पद्धति है, जिसे रसायन मुक्त खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह खेती भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है, जिससे कार्यात्मक जैव विविधता के सर्वश्रेष्ठ उपयोग की अनुमति मिलती है।
प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।
साधारण भाषा में प्राकृतिक खेती को जीरो बजट खेती भी कहा जाता है। यह खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर निर्भर होती है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक, रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर किसान गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। एक देसी गाय से प्राप्त खाद 30 एकड़ जमीन की खेती के लिए पर्याप्त होती है l
इस खेती से तात्पर्य है कि, किसी भी फसल या बागवानी खेती करने के लिए जिन जिन संसाधनों की आवश्यकता रहती है, उनकी पूर्ति घर से ही करना, बाजार या मंडी से खरीदकर नहीं लाना अर्थात गांव का पैसा गांव में, गांव का पैसा शहरो को नहीं, बल्कि शहर का पैसा गांव में लाना है l यह गांव का जीरो बजट है और साथ-साथ देश का पैसा देश में, देश का पैसा विदेश को नहीं, विदेश का पैसा देश में l यह देश का जीरो बजट हैl
प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक तथ्य –
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प्राकृतिक खेती के लिए केवल देशी गाय चाहिए, देशी गाय के साथ-साथ में सम समान मिलावट के लिए देशी बेल या भैंस चलेगी लेकिन किसी भी स्थिति में जर्सी होलस्टिन जैसे संकर या विदेशी गाय नहीं चलेगी l क्योंकि वह गाय नहीं है l
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काले रंग की कपिला (देशी) गाय सर्वोत्तम है l
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गोबर जितना ताजा उतना ही अच्छा एवं प्रभावी होता है और गोमूत्र जितना पुराना उतना ही प्रभावी एवं असरदार होता है l
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एक देशी गाय 30 एकड़ (180 कच्चा बीघा भूमि ) की खेती के लिए पर्याप्त है l
प्राकृतिक खेती के फायदे –
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कृषकों की दृष्टि से प्राकृतिक खेती के फायदे की बात की जाये तो, जैसे – भूमि की उपजाऊ क्षमता, सिंचाई अंतराल एवं फसलों की उत्पादकता में वृद्धि l
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रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है, साथ ही बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है l
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मिट्टी की दृष्टि से देखा जाए तो जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है, भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है एवं भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
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मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
प्राकृतिक खेती के सिद्धांत –
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खेतों में न तो जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना।
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किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करना।
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निंदाई-गुड़ाई न करें, न तो हलों से न ही शाकनाशियों के प्रयोग द्वारा।
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रसायनों का उपयोग बिल्कुल ना करें।
प्राकृतिक खेती की आवश्यकता क्यों –
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किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है। यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है तो, उसे प्राकृतिक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए।
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भूमि के प्राकृतिक स्वरूप में भी बदलाव हो रहे हैं, जो काफी नुकसान भरे हो सकते हैं। रासायनिक खेती से प्रकृति और मनुष्य के स्वास्थ्य में काफी गिरावट आई है।
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रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से ये खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो देते हैं। जिससे हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है।
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रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई। जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है। इस घटती मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए जैविक खाद उपयोग जरूरी हो गया है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के प्रमुख अवयव –
जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत, मल्चिंग, वाफसा l
जीवामृत –
जीवामृत मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देकर उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है और प्रासंगिक पोषक तत्व भी प्रदान करता है। यह जैविक कार्बन और अन्य पोषक तत्वों का भी स्रोत हैं, किंतु इनकी मात्रा कम ही होती है। यह सूक्ष्मजीवों की गतिविधि के लिए एक प्राइमर की तरह काम करता है, और देसी केंचुओं की संख्या को भी बढ़ाता है।
आवश्यक सामग्री :- 10 किलो ताजा गोबर, 5-10 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, 2 किलो गुड़, 2 किलो दाल का आटा, 1 किलो बांध मिट्टी और 200 लीटर पानी l
जीवामृत तैयार करने की विधि : सामग्री को 200 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह से हिलाना चाहिए । इसके बाद इस मिश्रण को छायादार स्थान पर 48 घंटे के लिए किण्वन के लिए रख दें। इसे दिन में दो बार यानी एक बार सुबह और एक बार शाम के समय लकड़ी की छड़ से चलाना चाहिए। तैयार मिश्रण का अनुप्रयोग सिंचाई के पानी के माध्यम से या सीधे फसलों पर करें। इसे वेंचुरी (फर्टिगेशन डिवाइस) का उपयोग करके ड्रिप सिंचाई के माध्यम से भी अनुप्रयुक्त किया जा सकता है।
जीवामृत के अनुप्रयोग :- इस मिश्रण का अनुप्रयोग प्रत्येक पखवाड़े में किया जाना चाहिए। इसका प्रयोग सीधे फसलों पर छिड़काव के जरिए या सिंचाई जल के साथ फसलों पर अनुप्रयोग किया जाना चाहिए। फल वाले पौधों के मामले में, इसका अनुप्रयोग एक-एक पेड़ पर किया जाना चाहिए। इस मिश्रण को 15 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है।
घन जीवामृत –
घन जीवामृत, जीवाणु युक्त सूखी खाद है, जिसे बुवाई के समय या पानी के तीन दिन बाद भी दे सकते हैं।
आवश्यक सामग्री :- 100 किलोग्राम गाय का गोबर, 1 किलोग्राम गुड, 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, अरहर, मूंग), 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी, 1 लीटर गौमूत्र l
घन जीवामृत तैयार करने की विधि :- सर्वप्रथम 100 किलोग्राम गाय के गोबर को किसी पक्के फर्श व पोलीथीन पर फैलाएं, फिर इसके बाद 1 किलोग्राम गुड या फलों के गूदे की चटनी व 1 किलोग्राम बेसन को डालें, इसके बाद 50 ग्राम मेड़ या जंगल की मिट्टी में 1 लीटर गौमूत्र डालकर सभी सामग्री को फॉवड़ा से मिलाएं फिर, 48 घंटे तक छायादार स्थान पर एकत्र कर या थापीया बनाकर जूट के बोरे से ढक दें। 48 घंटे बाद उसको छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर भंडारण करें। इस मिश्रण के लड्डू बनाकर भी उपयोग किये जा सकते हैं l
अवधि प्रयोग :- इस घन जीवामृत का प्रयोग छः माह तक कर सकते हैं।
सावधानियां :- सात दिन का छाए में रखा हुआ गोबर का प्रयोग करें। गोमूत्र किसी धातु के बर्तन में न ले या रखें।
छिड़काव :- एक बार खेत जुताई के बाद घन जीवामृत का छिड़काव कर खेत तैयार करें।
घन जीवामृत लड्डू सीधे पेड़ पौधों के पास रखकर या ड्रिप के साथ भी उपयोग कर सकते हैंl
बीजामृत –
बीजामृत एक प्राचीन, टिकाऊ कृषि तकनीक है। इसका उपयोग बीज, पौध या किसी रोपण सामग्री के लिए किया जाता है। यह नई जड़ों को कवक से बचाने में कारगर है। बीजामृत एक किण्वित माइक्रोबियल समाधान है, जिसमें पौधों के लिए बहुत से लाभकारी माइक्रोब्स होते हैं, और इसे बीज उपचार के रूप में अनुप्रयोग किया जाता है। यह उम्मीद की जाती है कि लाभकारी माइक्रोब्स अंकुरित बीजों की जड़ों और पत्तियों को पोषित करेंगे और पौधों के स्वस्थ विकास में मदद करेंगे।
आवश्यक सामग्री :- 5 किग्रा गाय का गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम चूना, 1 किग्रा बांध मिट्टी, 20 लीटर पानी (100 किलो बीज के लिए)
बीजामृत तैयार करने की विधि :- 5 किग्रा गाय के गोबर को एक कपड़े में लें और टेप का उपयोग कर इसे बांध दें। कपड़े को 20 लीटर पानी में 12 घंटे के लिए लटका दें ।
साथ ही एक लीटर पानी लें और उसमें 50 ग्राम चूना मिलाकर रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह, बंडल को पानी में तीन बार लगातार निचोड़ें, ताकि गाय के गोबर के महत्वपूर्ण तत्व पानी में मिल जाएं। एक मुट्ठी मृदा को लगभग 1 किग्रा जल मिश्रण में मिलाकर अच्छी तरह से चलाएं। मिश्रण में देसी गाय का 5 लीटर मूत्र और चूना पानी मिलाएं और अच्छी तरह से चलाएं।
बीज उपचार के रूप में अनुप्रयोग :- किसी भी फसल के बीज में बीजामृत मिलाएं, उन्हें हाथ से मंढे, इन्हें अच्छी तरह सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल करें। ध्यान रखें सोयाबीन एवं मूंगफली के बीजों को हाथ से ना मले अन्यथा बीज का छिलका निकल जाएगा l अनाज वर्गीय फसलों को अच्छे से मिलाया जा सकता है l
आच्छादन –
मल्चिंग (आच्छादन) को जीवित फसलों और पुआल (मृत पौधा बायोमास) दोनों का उपयोग करके मिट्टी की सतह को कवर करने के रूप में परिभाषित किया जाता है, ताकि नमी को संरक्षित किया जा सके। पौधों की जड़ों के आसपास मिट्टी का तापमान कम हो, मिट्टी का कटाव रोका जा सके और खरपतवार की वृद्धि को कम किया जा सके। मिट्टी में वायु परिसंचरण को बढ़ाने, वर्षा जल के सतही प्रवाह को कम करने और खरपतवारों के विकास को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग की जाती है।
मल्च दो प्रकार के होते हैं :-
1.स्ट्रॉ मल्च :- इसमें कोई भी सूखी वनस्पति, खेत की पराली, जैसे-सूखे बायोमास के अपशिष्ट आदि शामिल हैं। इसका उपयोग मिट्टी को तेज धूप, ठंड, बारिश आदि से ढकने के लिए किया जाता है। कार्बनिक पदार्थों का अपघटन मिट्टी में ह्यूमस बनाता है और इसे संरक्षित करता है। ह्यूमस में 56% जैविक कार्बन और 6% जैविक नाइट्रोजन होता है। यह मृदा बायोटा की गतिविधि के माध्यम से बनता है, जो माइक्रोबियल संस्कृतियों द्वारा सक्रिय होता है। स्ट्रॉ मल्च पक्षियों, कीड़ों, और पशुओं से बीज का बचाव करती है।
2.लाइव मल्च :- मुख्य फसल की पंक्तियों में छोटी अवधि की फसलों की बहु- फसल पद्धति विकसित करके लाइव मल्चिंग का कार्य किया जाता है। यह सुझाव दिया है कि, सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए, पद्धति मोनोकोटाइलेडोंस और डिक्टोटाइलेडोंस प्रकार की होनी चाहिए। मोनोकॉट , जैसे गेहूं और चावल – पोटाश, फॉस्फेट और सल्फर जैसे पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं, जबकि डायकोट जैसे दालें – नाइट्रोजन का पोषण करने वाले पौधे हैं। इस तरह के अभ्यास एक विशेष प्रकार के पौधा-पोषक-तत्व की मांग को कम करते हैं।
वाफसा –
वाफसा का अर्थ है मिट्टी के दो कणों के बीच की गुहा में 50% वायु और 50% जलवाष्प का मिश्रण। यह मिट्टी का माइक्रॉक्लाइमेट है, जिस पर मिट्टी के जीव और जड़ें अपनी अधिकांश नमी और अपने कुछ पोषक तत्वों के लिए निर्भर करती हैं। यह पानी की उपलब्धता के साथ ही पानी के उपयोग की दक्षता को बढ़ाता है और सूखे के विरूद्ध प्रतिरोधी बनाता है।
फसल एवं फल वृक्षों पर छिड़काव के लिए घर में ही जीरो बजट दवा बनाने की विधि –
नीमास्त्र –
नीमास्त्र का उपयोग रोगों की रोकथाम या निवारण के साथ ही पौधों को खाने और चूसने वाले कीड़ों या लार्वा को मारने के लिए किया जाता है। यह हानिकारक कीड़ों के प्रजनन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। नीमास्त्र तैयार करना बहुत आसान है और प्राकृतिक खेती के लिए यह सबसे अच्छा कीटनाशक भी है।
आवश्यक सामग्री :- 200 लीटर पानी, 2 किलो गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो नीम के पत्तों का बारीक पेस्ट।
नीमास्त्र तैयार करने की विधि :-
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एक ड्रम में 200 लीटर पानी लें और उसमें 10 लीटर गोमूत्र डालें। फिर देशी गाय का 2 किलो गोबर डालें। अब, 10 किलो नीम के पत्ते का बारीक पेस्ट या 10 किलो नीम के बीजों का गूदा मिलाएं।
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फिर इसे एक लंबी छड़ी के साथ दायीं ओर चलाएं और इसे एक बोरी से ढक दें। इसे घोल को छाया में रखें ताकि यह धूप या बारिश के संपर्क में नहीं आ सके। घोल को हर सुबह और शाम को दायीं दिशा में चलाएं।
-
48 घंटे के बाद, यह उपयोग के लिए तैयार हो जाता है। इसे 6 महीने तक उपयोग के लिए भंडारित किया जा सकता है । इस घोल को पानी से पतला नहीं करना चाहिए।
-
तैयार घोल को मलमल के कपड़े में छान लें और फोलर स्प्रे के ज़रिए सीधे फसल पर छिड़काव करें।
नियंत्रण:- सभी शोषक कीट, जैसिड्स, एफिड्स, सफेद मक्खी और छोटे कीड़े नीमास्त्र द्वारा नियंत्रित होते हैं।
ब्रह्मास्त्र –
यह पत्तियों से तैयार किया जाने वाला एक प्राकृतिक कीटनाशक है जिसमें कीटों को हटाने के लिए विशिष्ट एल्कालॉएड्स होते हैं। यह फली और फलों में मौजूद सभी शोषक कीटों और छिपे हुए कीड़ों को नियंत्रित करता है।
आवश्यक सामग्री:- 20 लीटर गौमूत्र, नीम के 2 किलो पत्ते, करंज के 2 किलो पत्ते, शरीफे के 2 किलो पत्ते और धतुरे के 2 किलो पत्ते।
ब्रह्मास्त्र तैयार करने की विधि :-
एक बर्तन में 20 लीटर गौमूत्र लें और इसमें नीम की पत्तियों का 2 किलो बारीक पेस्ट, करंज की पत्तियों से तैयार 2 किलो पेस्ट, शरीफे की पत्तियों का 2 किलो पेस्ट, अंरडी के पत्तों का 2 किलो पेस्ट, और धतुरे के पत्तों का 2 किलो पेस्ट सबको एकसाथ मिलाएं। इसे धीमी आंच पर एक या दो उबाल (ओवरफ्लो लेवल) आने तक उबालें। घड़ी की दिशा में चलाएं, इसके बाद बर्तन को एक ढक्कन से ढंक दें और उबलने दें। दूसरा उबाल आने पर बर्तन को नीचे उतार दें और इसे 48 घंटे के लिए ठंडा होने के लिए रख दें ताकि पत्तियों में मौजूद एल्कालॉएड मूत्र में मिल जाएं। 48 घंटे के बाद, एक मलमल के कपड़े का उपयोग कर मिश्रण का छान लें और इसे भंडारित करें। इसे छाया के नीचे बर्तनों (मिट्टी के बर्तन) या प्लास्टिक के ड्रमों में भंडारित करना बेहतर होता है। मिश्रण को 6 महीने तक उपयोग के लिए भंडारित किया जा सकता है।
अनुप्रयोग : 6-8 लीटर ब्रह्मास्त्र को 200 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर पर्णीय छिड़काव के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कीटों के आक्रमण की गंभीरता के आधार पर इस अनुपात को निम्नानुसार परिवर्तित किया जा सकता है-
100 लीटर पानी + 3 लीटर ब्रह्मास्त्र
15 लीटर पानी + 500 मिली ब्रह्मास्त्र
10 लीटर पानी + 300 मिली ब्रह्मास्त्र
अग्निअस्त्र –
इसका उपयोग सभी शोषक कीटों और कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है ।
आवश्यक सामग्री:- 20 लीटर गोमूत्र, 2 किलो नीम के पत्तों का गूदा, 500 ग्राम तंबाकू पाउडर, 500 ग्राम हरी मिर्च का पेस्ट, 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट और 200 ग्राम हल्दी पाउडर l
अग्निअस्त्र तैयार करने की विधि :-
एक कंटेनर में 200 लीटर गोमूत्र डालें, फिर 2 किलो नीम की पत्तियों का पेस्ट, 500 ग्राम तंबाकू पाउडर, 500 ग्राम हरी मिर्च का पेस्ट, 250 ग्राम लहसुन का पेस्ट और 200 ग्राम हल्दी पाउडर डालें। घोल को दायीं ओर चलाएं और इसे ढक्कन से ढककर झाग आने तक उबलने दें। आग से हटाकर बर्तन को 48 घंटों के लिए ठंडा करने के लिए सीधी धूप से दूर किसी छायादार स्थान पर रख दें। इस किण्वन अवधि के दौरान अवयव को दिन में दो बार चलाएं। 48 घंटे के बाद एक पतले मलमल के कपड़े से छान लें और भंडारित कर लें। इसे 3 महीने तक भंडारित किया जा सकता है ।
आवेदन :- छिड़काव के लिए 6-8 लीटर अग्नेयास्त्र को 200 लीटर पानी में मिलाया जाना चाहिए। कीटों के पर्याक्रमण की गंभीरता के आधार पर निम्नलिखित अनुपात का प्रयोग किया जाना है ।
100 लीटर पानी + 3 लीटर अग्निअस्त्र
15 लीटर पानी + 500 लीटर अग्निअस्त्र
10 लीटरपानी + 300 लीटर अग्निअस्त्र
दशपर्णी अर्क या कषायम –
दशपर्णी अर्क, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र और अग्नेयास्त्र के विकल्प के रूप में कार्य करता है। इसका उपयोग सभी प्रकार के कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है और पर्याक्रमण के स्तर के आधार पर उपयोग किया जाता है।
आवश्यक सामग्री :- 200 लीटर पानी, 20 लीटर गाय मूत्र, 2 किलो गाय का गोबर, 500 ग्राम हल्दी पाउडर, 10 ग्राम हींग, 1 किग्रा तंबाकू पाउडर, 1 किग्रा मिर्च का गूदा, 500 ग्राम लहसुन पेस्ट, 200 ग्राम अदरक का पेस्ट एवं कोई भी 10 पत्तियां l
दशपर्णी अर्क तैयार करने की विधि :-
एक ड्रम में 200 लीटर पानी लें, उसमें 20 लीटर गोमूत्र और 2 किग्रा गाय का गोबर मिलाएं। इसे अच्छी तरह मिला लें और बोरी से ढ़ककर 2 घंटे के लिए अलग रख दें। मिश्रण में 500 ग्राम हल्दी पाउडर, 200 ग्राम अदरक का पेस्ट, 10 ग्राम हींग मिलाएं । इसे मिश्रण को दायीं ओर अच्छी तरह से चलाएं, बोरे से ढककर रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह, 1 किग्रा तंबाकू पाउडर, 2 किग्रा गर्म हरी मिर्च का पेस्ट और 500 ग्राम लहसुन का पेस्ट डालें और इसे लकड़ी की छड़ी से दायीं ओर अच्छी तरह से चलाएं, बोरी से ढक दें और 24 घंटे के लिए छायादार स्थान पर छोड़ दें। अगली सुबह, मिश्रण में किसी भी प्रकार की 10 पत्तियों का पेस्ट डालें। अच्छी तरह से चलाएं और चटाई बैग के साथ ढक दें। इसे 30-40 दिनों के लिए किण्वन के लिए रख दें ताकि पत्तियों में मौजूद एल्कलॉइड मिश्रण में घुल जाए। इसके बाद इसे दिन में दो बार चलाएं। 40 दिन बाद इसे मलमल के कपड़े से छान लें और इस्तेमाल करें।
अनुप्रयोग :- 6-8 लीटर तैयार कषायम को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए ।
कवकनाशी / फफूंदनाशी दवा –
गाय के दूध और दही से तैयार किया गया कवकनाशी, कवक को नियंत्रित करने में बहुत प्रभावी पाया गया है।
तैयार करने की विधि :- 3 लीटर दूध से दही तैयार कर लें। क्रीम की सतह को हटा दें और फंगस की सिलेटी सतह बनने तक 3 से 5 दिनों के लिए छोड़ दें। इसे अच्छे से मथ लें, पानी में मिलाकर छानकर प्रभावित फसलों पर छिड़काव करें।
सोंठास्त्र –
इस कवकनाशी के लिए 200 ग्राम सुखी सोंठ ले, इनको पीसकर चूर्ण बनाएं l 2 लीटर पानी में यह चूर्ण डालें और ऊपर ढक्कन से ढक कर बर्तन को आग पर रख कर उबालें l सोंठ के घोल को आधे होने तक उबालें, बाद में इसे नीचे उतार कर ठंडा करें l
दूसरे एक बर्तन में 2-5 लीटर देशी गाय का दूध लें और उसे उबालेंl एक उबाल आने के बाद बर्तन को ठंडा होने देंl ठंडे दूध से ऊपर की मलाई हटा दें और इसमें 200 लीटर पानी और सोंठ मिला देंl इसके बाद लकड़ी की सहायता से अच्छे से मिलायें और कपड़े से छान लें। अब यह मिश्रण फसल एवं पेड़ पौधों पर छिड़काव के लिए तैयार है l
Shareदेश के प्रमुख मंडियों में 2 जून को क्या रहे लहसुन के भाव?
लहसुन भाव में कितनी तेजी या मंदी देखने को मिल रही है? वीडियो के माध्यम से देखें अलग अलग मंडियों में क्या चल रहा है लहसुन का भाव !
स्रोत: ऑल इनफार्मेशन
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