लहसुन की फसल में खरपतवार का नियंत्रण

Weed control in garlic
  • लहसुन की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खरपतवार प्रबधन समय -समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
  • लहसुन की फसल में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से बुआई के 3 दिनों के बाद उपयोग करना चाहिए।
  • ऑक्साडायर्जिल 80% WP @ 50 ग्राम/एकड़ की दर से बुआई के 10-15 दिनों के बाद लहसुन में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
  • प्रोपेक़्युज़ाफॉप 5% + ऑक्सीफ़्लोर्फिन 12% EC @ 250-350 मिली/एकड़ फसल में लगाने के 25-30 दिनों के बाद और 40-45 दिन बाद उपयोग करें।
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लहसुन की फसल में मकड़ी का नियंत्रण कैसे करें?

How to control mite in garlic crop
  • मकड़ी आकार में छोटे एवं लाल रंग के होते हैं जो फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।
  • जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उन पौधे पर जाले दिखाई देते हैं। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं जिसके कारण अंत में पौधा मर जाता है।
  • लहसुन की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रोपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @200 मिली/एकड़ या ऐबामेक्टिन 1.8% EC @150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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इस योजना के माध्यम से ग्रामीणों को आसानी से मिल सकेगा बैंक लोन

Villagers will be able to get bank loan easily through this scheme

पीएम मोदी ने 6 राज्यों के 763 गांवों में स्वामित्व योजना के तहत 1 लाख लोगों को उनके घरों का प्रॉपर्टी कार्ड वितरण किया है। इसके अंतर्गत आने वाले सभी लाभार्थियों को मैसेज द्वारा लिंक भेजा गया जिससे लाभार्थियों ने अपना स्वामित्व कार्ड ऑनलाइन डाउनलोड किया।

इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा, ‘स्वामित्व योजना, गांव में रहने वाले हमारे भाई-बहनों को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत मदद करने वाली है।’ पीएम मोदी ने आगे कहा की, “पूरी दुनिया के बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स इस बात पर जोर देते रहे हैं कि जमीन और घर के मालिकाना हक की, देश के विकास में बड़ी भूमिका होती है। जब संपत्ति का रिकॉर्ड होता है, जब संपत्ति पर अधिकार मिलता है तो नागरिकों में आत्मविश्वास बढ़ता है।”

गौरतलब हो की नए तकनीक के माध्यम से पहली बार इतना बड़ा कदम उठाया जा रहा है। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ ग्रामीणों को बैंक लोन लेने में होगा। ऐसा कहा जा रहा है सरकार के इस कदम से ग्रामीणों द्वारा ऋण लेने और अन्य वित्तीय लाभ के लिए संपत्ति को वित्तीय संपत्ति के रूप में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

स्रोत: कृषि जागरण

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गाजर मक्खी के प्रकोप से कैसे बचाएं गाजर की फसल?

How to protect the carrot crop from carrot fly outbreaks
  • गाजर की मक्खी गाजर की फसल के आसपास और किनारों के चारो तरफ अण्डे देती है।
  • लगभग 10 मिमी लम्बाई वाली यह इल्ली गाजर की जड़ों के बाहरी भाग को मुख्यतः अक्टूबर-नवम्बर महीने के दौरान नुकसान पहुँचाती है।
  • यह धीरे-धीरे जड़ों में प्रवेश कर जड़ों के आंतरिक भागों को नुकसान पहुंचाने लगती है।
  • इसके कारण गाजर के पत्ते सूखने लग जाते हैं। पत्तियां कुछ पीले रंग के साथ लाल रंग की हो जाती है। परिपक्व जड़ों की बाहरी त्वचा के नीचे भूरे रंग की सुरंगें दिखाई देने लगती हैं।
  • इस इल्ली के प्रबंधन के लिए कारबोफुरान 3% GR@ 10 किलो/एकड़ या फिप्रोनिल 0.3% GR@ 10 किलो/एकड़ का उपयोग करें।
  • इसके जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से मृदा उपचार करें।
  • इन सभी उत्पादों का उपयोग मृदा उपचार के रूप में किया जाता है।
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प्याज की फसल में स्टेमफाईलम झुलसा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms of Stemphylium Blight in Onion
  • इस रोग के कारण प्याज़ के पत्तों पर छोटे पीले से नारंगी रंग के धब्बे या धारियां बन जाती है जो बाद में अंडाकार हो जाती हैं।
  • इन धब्बे के चारो ओर गुलाबी किनारे नजर आते हैं जो इस समस्या के मुख्य लक्षण हैं।
  • धब्बे पत्तियों के किनारे से नीचे की और बढ़ते हैं और आपस में मिलकर बढ़ते हैं जिसके कारण पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती हैं।
  • रोपाई के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर फफूंदनाशियों जैसे थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 250 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • हेक्सकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली, प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • क्लोरोथालोनिल 75% WP@ या 250 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।
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भिन्डी की फसल में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक) का प्रबंधन

Yellow Mosaic Disease in Okra/Bhindi
  • भिन्डी की फसल में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक) का प्रबंधन
  • यह रोग सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है और यह भिंडी की फसल को सभी अवस्था में प्रभावित करता है।
  • इस रोग में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती है और पीली होने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं।
  • इस रोग से प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।
  • इस वायरस से ग्रसित पौधों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए।
  • ग्रसित पौधे को खेत में न छोड़ें, इन्हें एकत्रित कर के जला दें या फिर खाद के गड्ढे में डाल दें।
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेरामोन ट्रैप का उपयोग कर सकते हैं। 
  • इसके अलावा एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP@ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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खीरे की फसल को माहू के प्रकोप से कैसे बचाएं?

How to protect the cucumber crop from the outbreak of Aphid
  • माहु कीट के शिशु व वयस्क रूप कोमल नाशपाती के आकार के तथा काले रंग के होते हैं।
  • इसके शिशु एवं वयस्क रूप समूह में पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं।
  • इस कीट से ग्रसित भाग पीला होकर सिकुड़ जाता है और मुड़ जाता है। 
  • इसके अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती हैं व धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।
  • इसके कारण फलों का आकार एवं गुणवत्ता कम हो जाती है।
  • माहू के द्वारा पत्तियों की सतह पर मधुरस का स्त्राव किया जाता है जिससे फंगस का विकास हो जाता है, जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, और अंततः पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
  • इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्राइड 20% SP @ 200  ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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इस योजना के अंतर्गत खरीदें सिंचाई उपकरण, मिलेगी 80 से 90% की सब्सिडी

Buy irrigation equipment under this scheme, will get 80 to 90% subsidy

कृषि कार्यों में फसल की सिंचाई का एक अहम स्थान होता है और इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत किसानों को सिंचाई उपकरणों की खरीदी पर सब्सिडी मिलती है।

इस योजना के अंतर्गत जहाँ सामान्य किसानों को 80% तक की सब्सिडी प्रदान की जाती दी है, तो वहीं लघु और सूक्ष्म किसानों को 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। इस योजना के लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

किसानों को पंजीकृत फर्म से सिंचाई उपकरण खरीदने के बाद आवेदन के साथ बिल दफ्तर में जमा करना होता है। जब आवेदन स्वीकृत हो जाता है, तो किसानों को लागत पर 80 से 90% सब्सिडी दी जाती है। इस योजना के लिए केंद्र द्वारा 75% अनुदान दिया जाता है तो वहीं 25% खर्च राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

स्रोत: कृषि जागरण

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लहसुन की फसल में फ्यूजेरियम बेसल रॉट रोग का प्रकोप

Prevention of Fusarium basal rot disease in garlic crop
  • इस रोग की वजह से पौधे की बढ़वार रुक जाती है तथा पत्तियों पर पीलापन आ जाता है और पौधा ऊपर से नीचे की ओर सूखता चला जाता हैं।

  • संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, पौधों की जड़ें गुलाबी हो जाती हैं और सड़ने लगती हैं।

  • बल्ब के निचले सिरे सड़ने लगते हैं और अंततः पूरा पौधा मर जाता है।

  • नम मिट्टी और 27 डिग्री सेल्सियस तापमान इस रोग के विकास के लिए अनुकूल होता है।

  • इस रोग के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ या 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से पौधों के पास जमीन के माध्यम से दें।

अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। इस लेख को नीचे दिए गए शेयर बटन से अपने मित्रों संग साझा करें।

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जीवाणु जनित रोगों से फसल एवं मिट्टी की रक्षा कैसे करें?

How to protect crops and soil from bacterial diseases
  • फसल एवं मिट्टी में अधिक नमी एवं तापमान के परिवर्तन के कारण जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप का खतरा बहुत होता है।
  • इन रोगों में कुछ मुख्य रोग जैसे ब्लैक रॉट, स्टेम रॉट, जीवाणु धब्बा रोग, पत्ती धब्बा रोग, उकठा रोग।
  • इन रोगों में से कुछ रोग मिट्टी जनित होते हैं जो फसल के साथ – साथ मिट्टी को भी संक्रमित करके नुकसान पहुंचाते हैं।
  • फसलों के उत्पादन पर रोगों के कारण बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है एवं मिट्टी का pH भी इन जीवाणु जनित रोगों के कारण असंतुलित हो जाता है।
  • इन रोगों के निवारण के लिए बुआई पूर्व मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
  • बुआई के समय एवं बुआई के 15-25 दिनों के अंदर एक छिड़काव जीवाणु जनित रोगों के प्रबधन के लिए करना चाहिए।
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