भारतीय कृषि की आधारभूत संरचना के विकास पर खर्च होंगे एक लाख करोड़ रुपये

One lakh crores will be spent on the development of Indian agricultural infrastructure

भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और आज भी भारत कई फ़सलों के उत्पादन में पूरी दुनिया में नंबर एक का स्थान रखता है। ऐसा तब है जब भारतीय कृषि क्षेत्र का इंफ्रास्ट्रक्चर यानी आधारभूत ढ़ांचा अन्य विकसित देशों की तरह आधुनिक नहीं है। बहरहाल सरकार अब इसी कृषि के आधारभूत ढांचे को और ज्यादा आधुनिक और विकसित बनाने के लिए अग्रसर होने वाली है।

कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए पीएम मोदी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि‍ के आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये के पैकेज का पिछले शुक्रवार को ऐलान किया है।

एक लाख करोड़ रुपये के इस बड़े पैकेज से देश भर में कृषि क्षेत्र का विकास किया जाएगा। इसके अंतर्गत कोल्ड चेन, वैल्यू चेन विकसित करने में मदद मिलेगी। इसका लाभ किसान उत्पादन संघ, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप आदि को फार्मगेट पर मिल सकेगा।

वित्‍त मंत्री सीतारमण ने पिछले कुछ दिनों में कृषि को लेकर कई बड़ी घोषणाएँ की हैं जो किसानों के मन में नया विश्वास जगा रही हैं। यह घोषणाएँ अगर घरातल पर साकार होती हैं तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अच्छी रफ़्तार मिल जायेगी।

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कपास की फसल के साथ अंतर फसलों की खेती होगी फायदेमंद

Cotton intercropping

कपास की फसल अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छी मानी जाती हैं क्योंकि कपास की फ़सल शुरुआत में धीरे-धीरे बढ़ती हैं एवं खेत में लम्बे समय तक रहती हैं जो अन्य अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छा माना जाता हैं।  अन्तरसस्य का मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त फसल के साथ कपास की फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करना होता है।

सिंचित क्षेत्रों के लिए अन्तरसस्य फसलें:

  • कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + सोयाबीन (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + सनई (हरी खाद के रूप में) (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)

अन्तरसस्य फसलें को वर्षा आधारित क्षेत्रों में लगाने के लिए:

  • कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + मूंगफली (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + मूंग (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + सोयाबीन (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
  • कपास + अरहर (1:1 पंक्ति के अनुपात में)
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बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का क्या है महत्व

Importance of Refugia in BT Cotton
  • भारत सरकार की अनुवांशिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बी.टी. क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नॉन बी.टी. वाला बीज (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवश्यक है।
  • प्रत्येक बी.टी. किस्म के साथ उसका नान बी.टी. (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता है।
  • बी.टी. किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं। इस कारण इनमें डेन्डू छेदक (बॉल वर्म) कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं।
  • रिफ्यूजिया कतार लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं।
  • यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जाएगी।
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म.प्र. में मंडी अधिनियम बदला, किसानों के लिए खुले नए विकल्प, बिचौलियों से मिला छुटकारा

Private mandis will now open in Madhya Pradesh, farmers will benefit from this

किसानों के पास अपनी उपज को बेचने के लिए बहुत अधिक विकल्प नहीं होते हैं और उन्हें सरकारी मंडियों में ही अपना उत्पादन बेचने को मजबूर होना पड़ता है। इस कारण कई बार उन्हें अपनी उपज के लिए अच्छा दाम भी नहीं मिल पाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों की इन्हीं परेशानियों को समझ कर अब निजी क्षेत्र में मंडियां और नए खरीदी केंद्र आरंभ करने की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ साथ अब प्रदेश में मंडी अधिनियम भी बदल गया है।

मंत्रालय में मंडी नियमों में संशोधन पर चर्चा के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘किसान भाइयों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलाना सरकार का कर्तव्य है। ऐसा करने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। इससे दलालों और बिचौलियों से किसानों को छुटकारा भी मिलेगा। किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए कई विकल्प मिलेंगे। किसान जहां चाहेगा वहां अपनी सुविधानुसार फसल बेच सकेगा।’

स्रोत: मध्यप्रदेश कृषि मंत्रालय

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शाकनाशी (चारामार) रसायनों का प्रयोग करते समय रखें ये सावधानियाँ

These precautions to be taken while using herbicide
  • उचित नोजल फ्लड जेट या फ्लैट फैन का ही उपयोग करना चाहिए।
  • शाकनाशी रसायनों की उचित मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए। यदि संस्तुति दर से अधिक शाकनाशी का प्रयोग किया जाता है तो खरपतवारों के अतिरिक्त फसल को भी क्षति पहुँच सकती है।
  • शाकनाशी रसायनों को उचित समय पर छिड़कना चाहिए। अगर छिड़काव समय से पहले या बाद में किया जाता है तो लाभ की अपेक्षा हानि की संभावना रहती है।
  • शाकनाशी रसायनों का घोल तैयार करने के लिए रसायन व पानी की सही मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
  • एक ही रसायन का बार-बार फसलों पर छिड़काव न करें बल्कि बदल-बदल कर करें अन्यथा खरपतवारों में लगातार उपयोग में लाने वाले शाकनाशी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो सकती है।
  • छिड़काव के समय मृदा में पर्याप्त नमी होना चाहिए तथा पूरे खेत में छिड़काव एक समान होना चाहिए।
  • छिड़काव के समय मौसम साफ़ होना चाहिए।
  • यदि दवा इस्तेमाल से ज्यादा ख़रीद ली गई है तो उसे ठंडे, शुष्क एवं अंधेरे स्थान पर रखें तथा ध्यान रखें कि बच्चे एवं पशु इसके सम्पर्क में न आये।
  • प्रयोग करते समय ध्यान रखिए कि रसायन शरीर पर न पड़े। इसके लिए विशेष पोशाक दस्ताने, चश्में का प्रयोग करें अथवा उपलब्ध न होने पर हाथ में पॉलीथीन लपेट लें तथा चेहरे पर गमछा (तौलिया) बांध लें।
  • प्रयोग के पश्चात खाली डिब्बों को नष्ट कर मिट्टी में दबा दें। इसे साफ़ कर इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों को रखने के लिए कतई न करें।
  • छिड़काव समाप्त होने के बाद दवा छिड़कने वाले व्यक्ति साबुन से अच्छी तरह हाथ व मुँह अवश्य धो लें।
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अगेती फूलगोभी की उन्नत किस्में, बीज दर, बुआई समय आदि की जानकारी

Know about Early Cauliflower improved varieties, seed rate, sowing time
  • फूलगोभी की अगेती किस्में जैसे-पूसा कार्तिक संकर, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी, पूसा अश्वनी, पूसा मेघना आदि प्रमुख है।
  • संकर फूलगोभी किस्मों के लिए 150 ग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से पर्याप्त होता है।
    फूलगोभी की अगेती बुआई का समय मध्य मई से जून के मध्य तक होता है जिसकी रोपाई 5-6 सप्ताह बाद की जाती है।
  • बुआई के पूर्व बीजों को 2 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5% WP प्रति कि.ग्राम की दर या ट्राईकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • बीजो की बुआई क्यारियों में की जाती है। क्यारियों का आकार 3 x 6 मीटर होना चाहिए, जो ज़मीन से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी हुई हो।
  • दो क्यारियों के बीच की दूरी 70 सेंटीमीटर होनी चाहिये। जिससे अन्तरसस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके।
  • नर्सरी की क्यारियों की सतह भुरभुरी एवं समतल होनी चाहिये।
  • भारी भूमि में ऊँची क्यारियों का निर्माण करके जल भराव की समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • नर्सरी के लिए क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिला दें।
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अब कृषि क्रांति की तरफ बढ़ेगा भारत, वित्तमंत्री ने किये बड़े कृषि सुधारों के ऐलान

Aatm Nirbhar Bharat Package 2 lakh crore gift to farmers, Finance Minister announced

पीएम मोदी ने कोरोना त्रासदी से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रूपये की घोषणा की थी। पिछले तीन दिनों से केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा इस पैकेज से जुड़ा हर ब्योरा दिया जा रहा है। इसी कड़ी में पिछले दो दिनों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो घोषणाएँ की हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है की देश एक नए कृषि क्रांति की तरफ बढ़ने वाला है।

पिछले दो दिनों में वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र को लेकर कई सकारात्मक घोषणाएँ की हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार को उन्होंने देश में कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए एक लाख करोड़ रूपये की घोषणा की है। कृषि क्षेत्र के लिए 2 लाख करोड़ रुपये के रियायती कर्ज से जुड़ा ऐलान उन्होंने गुरुवार को ही कर दिया था।

आइये समझते हैं कल की घोषणाओं में क्या था ख़ास?

  • सब्जी आपूर्ति के लिए सरकार ऑपरेशन ग्रीन के अंतर्गत किसानों को लाभ प्रदान करेगी। इसमें कृषि उत्पादों के भंडारण, पैकेजिंग, ब्रांडिंग का काम किया जाएगा।
  • हर्बल खेती पर होगा जोर, इसके लिए सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपए की योजना का ऐलान किया है।
  • किसानों को अतिरिक्त आय दिलाने के लिए सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपए की योजना पेश की है। इससे 2 लाख मधुमक्खी पालकों को लाभ होगा।
  • पशुपालन इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए करीब 15 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी सरकार।
  • सरकार डेयरी सेक्टर के अंतर्गत लिए गए ऋण के ब्याज पर 2% की छूट देगी जिससे लाखों- करोड़ों किसानों को फायदा होगा।
  • मछली पालन के क्षेत्र में सरकार 20 हजार करोड़ रुपए की बड़ी आर्थिक मदद देगी।
  • सरकार ने फसल बीमा के लिए भी 64 हजार करोड़ रुपए का ऐलान किया है।
  • फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में भी सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया है।
  • बहरहाल वित्त मंत्री ने यह भी कहा है की अभी कृषि क्षेत्र से जुड़े और भी ऐलान होने बाकी हैं।
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मिर्च की नर्सरी में खरपतवार का प्रबंधन

How to choose a location for planting chili nursery
  • खरपतवारों का यदि उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो यह सब्जियों की उपज एवं गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
  • खरपतवारों की वजह से 50-70 प्रतिशत तक हानि हो सकती है।
  • खरपतवार मिर्ची के उत्पादन को कई तरह से प्रभावित करते हैं जैसे संक्रमण फैलाने वाले कीट एवं फफूंद को आश्रय देते हैं।
  • मिर्च के बीजों की बुआई के 72 घंटों के भीतर 3 मिली पेंडीमेथालिन 38.7 CS प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़काव कर देना चाहिए।
  • समय समय पर खरपतवार उग जाने पर हाथों से ही उखाड़ कर नर्सरी को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।
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क्या है मिट्टी सौर्यीकरण (सोलेराइजेशन) की प्रक्रिया, जानें इसका महत्व

Soil Solarization Process and Importance
  • गर्मी में जब तेज धूप और तापमान अधिक हो (25 अप्रैल से 15 मई) तब मिट्टी सोलेराइजेशन का उत्तम समय होता है।
  • सर्वप्रथम मिट्टी को पानी से गीला करें, या पानी से संतृप्त करें।
  • इन क्यारियों को पारदर्शी 200 गेज (50 माइक्रोन) पॉलीथीन शीट से ढक कर गर्मियों में 5-6 सप्ताह के लिए फैला कर उसके चारों तरफ के किनारों को मिट्टी से अच्छी तरह से दबा दिया जाता है ताकि हवा अंदर प्रवेश ना कर सके।
  • इस प्रक्रिया में सूर्य की गर्मी से पॉलीथिन शीट के नीचे मिट्टी का तापमान सामान्य की अपेक्षा 8-10 डिग्री सेन्टीग्रेट बढ़ जाता है। जिससे क्यारी में मौजूद हानिकारक कीट, रोगों के बीजाणु तथा कुछ खरपतवारों के बीज नष्ट हो जाते हैं।
  • 5-6 सप्ताह बाद पॉलीथीन शीट को हटा देना चाहिए।
  • यह विधि नर्सरी के लिए बहुत ही लाभदायक एवं कम खर्चीली होती है और इससे विभिन्न प्रकार के खरपतवार के बीज/प्रकन्द (कुछ को छोड़कर जैसे मोथा एवं हिरनखुरी इत्यादि) नष्ट हो जाते हैं।
  • परजीवी खरपतवार ओरोबंकी, सूत्रकृमि एवं मिट्टी से होने वाली बीमारियों के जीवाणु इत्यादि भी नष्ट हो जाते हैं। यह विधि काफी व्यवहारिक एवं सफल है।
  • इस तरह से मिट्टी में बिना कुछ डाले मिट्टी का उपचार किया जा सकता है।
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मिला ग्रामोफ़ोन का साथ तो बड़वानी के कपास किसान कालू जी ने पाया दोगुना मुनाफ़ा

कभी कभी जिंदगी में किसी का साथ मिल जाने से जिंदगी जीने का लुत्फ़ दोगुना हो जाता है। कुछ ऐसा ही लुत्फ़ बड़वानी जिले के टिकरी तहसील में स्थित गांव हवोला के रहने वाले किसान श्री कालू जी हम्मड़ को किसानों के सच्चे साथी ग्रामोफ़ोन का साथ मिलने से मिला। दरअसल कालू जी कपास की खेती करते थे और ठीक ठाक कमाई भी करते थे। इसी दौरान वे ग्रामोफ़ोन के सम्पर्क में आये और एक साल ग्रामोफ़ोन की सलाह पर कपास की खेती की।

कपास की खेती के दौरान कालू जी ने कई बार ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली और साथ ही बीज, उर्वरक और दवाइयाँ भी मंगाई। आखिर में जब उन्होंने उत्पादन देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उनका उत्पादन दोगुना हो चुका था और उपज की क्वालिटी भी बेहतर थी।

जहाँ पहले उन्हें 2 लाख का मुनाफ़ा होता था वहीं ग्रामोफ़ोन का साथ मिलने के बाद यह मुनाफ़ा दोगुना से भी ज्यादा बढ़कर साढ़े चार लाख हो गया। यही नहीं, कालू जी की लागत भी पहले से बहुत कम रही। जहाँ पहले कपास की खेती में लागत 40 हजार आती थी वहीं ग्रामोफ़ोन के संपर्क में आने के बाद लागत भी घटकर महज 25 हजार हो गई।

आज कालू जी ग्रामोफ़ोन को धन्यवाद करते हुए सभी किसानों को ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए कहते हैं ताकि वे किसान भी उनकी ही तरह लाभ उठा पाएं।

कालू जी की ही तरह अगर अन्य किसान भाई भी कृषि सम्बन्धी किसी भी समस्या से परेशान हैं या अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो इस बाबत ग्रामोफ़ोन के टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्ड कॉल कर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं।

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