मिर्च की बाढ़ सिंचाई वाली फसल में 20-30 दिनों में जरूर करें उर्वरक प्रबधन

  • मिर्च की फसल के अच्छे उत्पादन के लिए समय समय पर पोषक तत्वों का प्रबंधन भी बहुत आवश्यक होता है क्योंकि पोषक तत्वों की कमी मिर्च की फसल में पीलापन एवं पत्तियों के आकार में परिवर्तन का कारण बनती है। इन पोषक तत्वों की कमी के कारण मिर्च की फसल का विकास रुक जाता है।

  • मिर्च की रोपाई के 20-30 दिनों बाद उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। इस समय मिर्च के पौधों की जड़ें मिट्टी में फैलती हैं और पौधा वृद्धि करने लगता है। पौधे एवं जड़ों की अच्छी बढ़वार के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक है।

  • इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़, DAP @ 50 किलो/एकड़, मैग्नेशियम सल्फेट @ 10 किलो/एकड़, सल्फर @ 5 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें। उर्वरकों के उपयोग के समय खेत में नमी होना बहुत आवश्यक है।

  • यूरिया: मिर्च की फसल में यूरिया, नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है।

  • DAP (डाय अमोनियम फॉस्फेट): डाय अमोनियम फॉस्फेट का उपयोग फास्फोरस की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके उपयोग से जड़ की वृद्धि अच्छी होती है और पौधे की बढ़वार में सहायता मिलती है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: मिर्च में मेग्नेशियम सल्फेट के अनुप्रयोग से फसल में हरियाली बढ़ती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है और अंततः उच्च पैदावार व उपज की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

  • ज़िंक सल्फेट: पौधों की सामान्य बढ़वार के लिए जिंक प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व हैं। इसके उपयोग से, मिर्च के पौधे में वृद्धि अच्छी होती है और फसल की उपज भी बढ़ती है।

  • सल्फर: यह पौधों की जड़ों की बढ़वार के लिए मुख्य रूप से सहायक होता है। विभिन्न कोशिकाओं के विभाजन में भी इस तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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