जिंक एक अनिवार्य सुक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक हैं। परन्तु यह मिट्टी में अनुपलब्ध रूप में रहता हैं जिसे पौधे आसानी से उपयोग नहीं कर पाते।
भारत की कृषि योग्य भूमि में 50% तक ज़िंक की कमी पाई जाती है। धान में ‘खैरा रोग’ और मक्के की फसल में सफेद कली (चित्ती) रोग के नियंत्रण में यह सूक्ष्म तत्व सहायक है।
जिंक घुलनशील जीवाणु को मिट्टी में मिलाने से अनेक फायदे होते है जैसे- उपलब्ध जस्ता की सतत आपूर्ति, उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार, फसल की उपज, उपज की गुणवत्ता, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और हार्मोन की सक्रियता को बढ़ाने का कार्य करता है।
जिंक घुलनशील जीवाणु मिट्टी में कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं जिससे अनुपलब्ध अवस्था में पड़े जिंक के तत्व पौधों को उपलब्ध रूप में बदल देते है इसके अलावा ये मिट्टी के pH का संतुलन बनाए रखते हैं।
अंतिम जुताई के समय या बुआई के समय 4 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 2-4 किलो जिंक घुलनशील जीवाणु की फ़सलों में निर्धारित मात्रा मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेरकर उपयोग किया जाना चाहिए।