इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनो हीं रूप पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं। ये कीट आकार में बहुत छोटे होते हैं, और कपास की पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पाए जाते हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियों का आकार बिगड़ जाता है और पौधा कमजोर हो जाता है। ये कीट पत्तों पर मधुरस भी उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधों की पत्तियों पर एक काली परत बन जाती हैं, जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती है और इसी वजह से पौधे सूखने लगते हैं।
रोकथाम: इस कीट के निवारण के लिए, बुवाई से पहले बीज का उपचार जरूर करना चाहिए। फसल में कीट दिखाई दें तो, नीमगोल्ड (नीमआयल 3000 PPM 1 लीटर/एकड़ या बवेकर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ या पेजर (डायफेंथियुरॉन 50% WP) 240 ग्राम/एकड़ या उलाला (फ्लोनिकैमिड 50% WG) 60 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
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