कपास में ऊकसुक/उतसुक (विल्ट) रोग का प्रबंधन

  • यह रोग सभी चरणों में फसल को प्रभावित करता है। इसके सबसे शुरुआती लक्षण अंकुरों में बीजपत्रों पर दिखाई देते हैं जो पीले और फिर भूरे रंग के हो जाते हैं।  
  • यह एक मृदाजनित रोग है। अन्य बीमारियों एवं ऊकसुक रोग में अंतर करना मुश्किल हो सकता है।
  • युवा और बड़े हो चुके पौधों में, इसका पहला लक्षण पत्तियों के किनारों का पीला पड़ना और नसों के आसपास के क्षेत्र का मलिनकिरण मार्जिन से शुरू होता है, इसके बाद यह जड़ों, तनों और मिडरिब की ओर फैलता है। पत्तियां अपनी मरोड़ को ढीला करती हैं, धीरे-धीरे भूरे रंग की हो जाती हैं, सूख जाती हैं और अंत में गिर जाती हैं। इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार करना, एवं बीज उपचार बहुत आवश्यक होता है। 
  • यह रोग प्रारंभिक वनस्पति विकास के दौरान ठंडे तापमान और गीली मिट्टी के द्वारा होता है। प्रारंभिक प्रजनन चरणों के दौरान पौधे संक्रमित होते हैं, लेकिन लक्षण बाद में   दिखाई देते हैं। 
  • इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP 2.5 ग्राम/किलो बीज  या कार्बोक्सिन 37.8% + थायरम 37.8%  2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें। 
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़  या थियोफिनेट मिथाइल 70% WP 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 
  • जैविक उपचार में बेसिलस सबटिलुस/ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। इन कवकनाशियो  का उपयोग मिट्टी उपचार एवं बीज उपचार में करें।  
  • अधिक समस्या होने पर डीकंपोजर का भी उपयोग कर सकते हैं। इसका उपयोग खाली खेत में फसल बुआई से पहले करें।
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