कपास की फसल में सफेद मक्खी की पहचान

👉🏻किसान भाइयों, कपास की फसल में सफेद मक्खी फसल सुरक्षा की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक बन गई हैं। सफेद मक्खी आमतौर पर पत्तियों के नीचे अंडे देती हैं।

👉🏻सफेद मक्खी कपास की फसल में पौधों को दो तरह से नुकसान पहुँचाती हैं। 

👉🏻पहला रस चूसकर और वायरल रोग को प्रसारित करके। 

👉🏻दूसरा पत्तियों पर हनीड्यू (मधुस्राव) करके जिसके कारण फफूंदी जनित रोग के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जाती है।

कपास की फसल में सफ़ेद मक्खी की निम्न अवस्थायें नुकसान पहुंचाती हैं:- 

👉🏻शिशु – यह शुरुआत में अंडे से निकल कर पत्तियों का रस चूसना प्रारंभ कर देते हैं और सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। 

👉🏻प्रौढ़ – सफेद मोम की सतह लिए पीले शरीर वाले छोटे मच्छर होते हैं, यह फसल को शिशु की अपेछा कम नुकसान पहुंचाते हैं।

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तरबूज़ की फसल में सफ़ेद मक्खी का प्रकोप एवं नियंत्रण की विधि

Control of white fly in watermelon
  • सफ़ेद मक्खी के शिशु एवं वयस्क रूप तरबूज के पौधों की पत्तियों के निचले सतह से रस चूसते हैं एवं मधु-श्राव का उत्सर्जन करते हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं ।
  • इसके कारण पत्तियाँ रोगग्रस्त दिखती हैं और सूटी मोल्ड से ढक जाती हैं।
  • यह कीट पत्ती मोड़क विषाणु रोग का वाहक होकर इसे फैलाता है।
  • इसके नियंत्रण हेतु डायमेथोएट 30% ईसी @ 300 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% ईसी @ 400 मिली/एकड़ का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करें।
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कपास की फसल का सफेद मक्खी से कैसे करें बचाव?

Protection of whitefly in cotton
  • इसके शिशु एवं वयस्क रूप पत्तियों पर चिपक कर रस चूसते हैं जिससे हल्के पीले रंग के घब्बे पत्तों पर पड़ जाते हैं। बाद में इसके कारण पत्तियाँ पूरी तरह से पीली पड़कर विकृत हो जाती हैं। 
  • यह कीट विषाणु जनित रोग को फैलाने में मदद करते हैं। 
  • इससे नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP 250 ग्राम या पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC 250 मिली या
  • फ्लॉनिकामिड़ 50% WG 60 ग्राम या एसिटामिप्रिड 20% SP 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 
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मूंग और उड़द की फसल को सफेद मक्खी से बचा कर फूलों की संख्या बढ़ाएं

Increase the number of flowers by protecting the crop of moong and urad from white fly
  • सफेद मक्खी पत्तियों के निचली सतह पर रहकर रस चूसती हुई पाई जाती है।
  • इसके शिशु एवं वयस्क रूप दोनों रस चूसकर पौधे की बढ़वार को रोक देता है, जिससे पत्तिया पीली पड़कर गिर जाती है अतः उपज में कमी आती है।
  • विषाणुजनित मोजैक रोग फैलाने के लिए आम तौर पर सफेद मक्खी जिम्मेदार होती है।
  • इसके नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP 200 ग्राम या पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC 200 मिली या एसिटामिप्रिड 20% SP 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • मूंग और उड़द में फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए होमोब्रेसिनीलॉइड 0.04 % @ 100 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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सफ़ेद मक्खी से नुक्सान के लक्षण एवं नियंत्रण

सफ़ेद मक्खी से नुक्सान के लक्षण एवं नियंत्रण:-

  • सफेद मक्खी एक रस चूसने वाली कीट होती है जो पत्तियों के निचले हिस्से पर बहुत संख्या में होती है| जब ग्रसित पौधे प्रभावित होते हैं, पंख वाले वयस्कों के बड़े झुण्ड हवा में उड़ते हैं।
  • शिशु और वयस्कों दोनों पोधे के नई वृद्धि से रस को चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचा है, जिससे वृद्धि रुक जाती, पत्तियाँ पीली हो जाती है और पैदावार कम होती है। पौधे कमजोर और बीमारी के लिए अतिसंवेदनशील हो जाते हैं।
  • माहू की तरह, सफ़ेद मक्खी भी मधुस्त्राव छोड़ती है जिससे पत्तियाँ चिपचिपी हो जाती है और काली फफूद से घिर जाती है|
  • यह कई पौधे के वायरस रोग फ़ैलाने करने के लिए भी ज़िम्मेदार हैं।
  • 250 से अधिक फसलो को यह प्रभावित करता है जैसे निम्बू, कद्दू, आलू, खीरा, अंगूर, टमाटर, मिर्च और गुड़हल आदि|
  • ट्रायज़ोफ़ॉस 40% ईसी 45 एमएल / 15 लीटर पानी या डायफेनथीओरोन 50% WP 20 ग्राम / 15 लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 20 एसपी 10 ग्रा। / 15 लीटर पानी सफ़ेद मक्खी के खिलाफ प्रभावी हैं|

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भिन्डी में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) का प्रबंधन

भिन्डी का पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) :-

  • यह बीमारी सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है|
  • यह बीमारी भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है|
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं|
  • पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं|
  • इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है|

प्रबंधन:-

  • वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए|
  • कुछ किस्मे जैसे परभणी क्रांति, जनार्धन, हरिता, अर्का अनामिका और अर्का अभय इत्यादि वायरस के प्रति सहनशील होती है|
  • पौधों की वृद्धि की अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें|
  • जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें|
  • फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए|
  • जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें|
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 4-5 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ उपयोग कर सकते है|
  • डाइमिथोएट 30% ई.सी. 250  मिली /एकड़ पानी मे घोल बना कर स्प्रे करें|
  • इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली /एकड़ की दर से स्प्रे करें|

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Control of White fly in Green Gram

मुंग में सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण:-

  • शिशु एवं वयस्क पत्तियों के निचले सतह से रस चूसते है एवं मधु स्त्राव के उत्सर्जन से प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है|
  • पत्तियाँ रोगग्रस्त दिखती है सुटी मोल्ड से ढक जाती है | यह कीट पत्ति मोड़क विषाणु रोग व पीला शिरा विषाणु रोग का वाहक होकर इसे फैलाता है|
  • नियंत्रण:- पीले रंग वाले चिपचिपे प्रपंच खेत में कई जगह लगाए|
  • डायमिथोएट 30 मिली./पम्प या थायमेथोक्जोम 5 ग्राम/पम्प या एसीटामीप्रिड 15 ग्राम/ पम्प का स्प्रे 4-5 बार 10 दिन के अंतराल पर करे|

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Control of White fly in Okra

भिन्डी में सफ़ेद मक्खी का नियंत्रण:-

  • शिशु एवं वयस्क पत्तियों के निचले सतह से रस चूसते है एवं मधु स्त्राव के उत्सर्जन से प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है|
  • पत्तियाँ रोगग्रस्त दिखती है सुटी मोल्ड से ढक जाती है | यह कीट पत्ति मोड़क विषाणु रोग व पीला शिरा विषाणु रोग का वाहक होकर इसे फैलाता है|
  • नियंत्रण:- पीले रंग वाले चिपचिपे प्रपंच खेत में कई जगह लगाए|
  • डायमिथोएट 30 मिली./पम्प या थायमेथोक्जोम 5 ग्राम/पम्प या एसीटामीप्रिड 15 ग्राम/ पम्प का स्प्रे 4-5 बार 10 दिन के अंतराल पर करे|

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