कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन के उपाय

👉🏻किसान भाइयों कपास में पहली बारिश के बाद खरपतवार निकलने लगते हैं।

👉🏻इसके नियंत्रण के लिए हाथ से निराई गुड़ाई करें।

👉🏻रासायनिक प्रबंधन में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए टरगा सुपर (क्विज़ालोफॉप एथिल 5% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

👉🏻पहली बारिश के 3-5 दिन बाद या 2-3 पत्ती अवस्था में हिटविड मैक्स (पाइरिथायोबैक सोडियम 10% + क्विजालीफॉप इथाइल 4% ईसी) @ 400 मिली/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते हैं। 

👉🏻जब फसल छोटी हो तो इस समस्या से बचने के लिए मिट्टी की सतह पर छिड़काव करें। खरपतवारनाशी का उपयोग नोजल के ऊपर हुड लगाकर उपयोग करें।

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कपास की फसल में खरपतवार से होता है नुकसान, ऐसे करें प्रबंधन

Weed Management in Cotton Crop
  • रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए अंकुरण से पहले (बुआई के 72 घंटों के भीतर) 700 मिली पेन्डीमेथालीन 38.7 CS या पेन्डीमेथालीन 30% EC को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में छिड़काव करें।
  • पहली निराई- गुड़ाई फसल अंकुरण के 25 से 30 दिन के अंदर कोल्पा या डोरा चला कर करें।
  • 2-3 पत्ती वाले खरपतवार होने पर पायरिथियोबेक सोडियम 6% EC + क्यूजालोफोप एथिल 4% 5 EC 350 मिली प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ के खेत में छिड़काव करें। खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए।
  • फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवार दिखाई देने पर क्यूजालोफोप एथिल 5% EC @ 400 मिली या प्रोपाकिजाफाप 10% EC @ 300 मिली प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ के खेत में छिड़काव करें।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु फसल के 1.5 फीट का होने पर हुड लगाकर फसल को बचाते हुए मिट्टी की सतह पर पैराक्वाट डाईक्लोराइड 24% SL @ 500 मिली प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर साफ पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह एक नॉन-सेलेक्टिव खरपतवार नाशी हैं।
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मूंग की फसल में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें?

मूंग में खरपतवार प्रबंधन एक महत्वपूर्ण क्रिया है जिसके ना करने से उपज में भारी कमी आती है। ये खरपतवार फसल के पोषक तत्व, नमी, प्रकाश, स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि, उपज एवं गुणों में कमी कर देते है। खरपतवारों से हुई हानि किसी अन्य कारणों से जैसे कीड़े, मकोड़े, रोग, व्याधि आदि से हुई हानि की अपेक्षा अधिक होती है। खरपतवार की रोकथाम में ध्यान देने योग्य बात यह है कि खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर करें। खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जाती है- 

निवारण विधि- इस विधि में वे सभी क्रियाएँ शामिल है जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी एवं बुआई के प्रयोग में किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से साफ़-सफाई इत्यादि।

यांत्रिक विधि- खरपतवारों पर नियंत्रण करने की यह एक सरल तथा प्रभावी विधि है। फसल की शुरूआती अवस्था में बुआई के 15 से 45 दिन के मध्य फ़सलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 15-20 व दूसरी 30-35 दिनों के भीतर करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से होता है। किंतु इसमें अधिक सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा पौधे की जड़ों को काफी हानि हो जाती है साथ ही साथ मजदुरी एवं समय भी अधिक लगता है।  

रासायनिक विधि- खरपतवारनाशी (चारामार) के माध्यम से भी खरपतवारों को सफलता पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। यह विधि समय बचत के साथ साथ प्रति हेक्टेयर लागत में भी कमी लाती है। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है। खरपतवारनाशी की उपयुक्त मात्रा, उसका समय, उसका प्रकार, फसल आदि तथ्यों को जानकर ही इन खरपतवारनाशियों का प्रयोग करना चाहिए। खरपतवारनाशी जैसे पेंडीमेथालिन (स्टोम्प एक्सट्रा) 700 मिली बुआई के 72 घंटों के भीतर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर साफ पानी में मिलाकर उपयोग करें। मूंग की खड़ी फसल में संकरी पत्ती वाले खरपतवार 2-4 पत्ती अवस्था में हो तब क्युजालोफोप ईथाइल 5 ईसी (टरगा सुपर) या प्रोपाक्युजालोफोप 10 ईसी (एजिल) 300 मिली प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर साफ पानी के साथ उपयोग करें।

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Weed Management in Gram

  • चने की फसल में अनेक प्रकार के खरपतवार जैसे बथुआ, खरतुआ, मोरवा, प्याजी, मोथा, दूब इत्यादि उगते हैं।

  • ये खरपतवार फसल के पौधों के साथ पोषक तत्वों, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके उपज को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवारों के द्वारा फसल में अनेक प्रकार की बीमारियों एवं कीटों का भी प्रकोप होता है जो बीज की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।

  • खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि को रोकने के लिए समय पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। चने की फसल में दो बार गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रथम गुड़ाई फसल बुवाई के 20-25 दिन पश्चात्‌ व दूसरी 50-55 दिनों बाद करनी चाहिये।

  • यदि मजदूरों की उपलब्धता न हो तो फसल बुवाई के तुरन्त पश्चात्‌ पैन्ड़ीमैथालीन 30 ई.सी. की 2.50 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्ट खेत में समान रूप से छिड़काव करना चाहिये। फिर बुवाई के 20-25 दिनों बाद एक गुड़ाई कर देनी चाहिये। इस प्रकार चने की फसल में खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि की रोकथाम की जा सकती है।

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Weed Management in Corn

  • एट्राजीन 50% डब्लू.पी. @500 ग्राम/एकड़ को 200 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं |
  • बुवाई के 20-25 दिन बाद या 4-5 पत्ती की अवस्था में 2,4-D डाइमेथाइल अमीन साल्ट 58% एस.एल.@ 600 मिली/एकड़ घोल बनाकर फ्लेट फेन नोज़ल से स्प्रे करें |
  • जब खरपतवार 4-6 पत्ती की अवस्था में हो तब टेम्बोट्रायोन 42% एससी @ 115 मिली/एकड़ की दर से स्प्रे करें |
  • जब खरपतवारनाशी का उपयोग किया जाए उस समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए |
  • खरपतवारनाशी के प्रयोग के बाद मिट्टी से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए |
  • यदि दलहन फसल साथ में लगी हैं तो एट्राजीन तथा 2,4-D का उपयोग नहीं करना चाहिए इसके जगह पेंडीमेथलीन @ 300 ग्राम/एकड़ का प्रयोग अंकुरण पूर्व बुवाई के 3-5 दिन में करना चाहिए |

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