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इस विधि में प्रति एकड़ मात्र 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है तथा इस विधि में नर्सरी को 12 -14 दिन की अवस्था में ही रोपाई कर सकते हैं ।
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इस विधि से रोपाई करने से क़तार से पौधे के बीच की दूरी निश्चित (25 x 25 सेमी) होती है, जिसमें निराई करने में भी आसानी होती है।
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किसान को कम खर्च में अधिक मुनाफ़ा होता है।
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कीटनाशक का कम प्रयोग।
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फसल शीघ्र पककर तैयार होती है, अर्थात कम अवधि में फसल तैयार होती है, एक फसली खेती पद्धति को वर्षा आश्रित दशा में दो फसलीय खेती पद्धति में बदलने में आसानी होती है।
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इस विधि में कार्बनिक खाद की प्रमुखता देने से मिट्टी के भौतिक दशा में सुधार, जल धारण क्षमता में वृद्धि, वायु का मिट्टी में संचार, मिट्टी तापक्रम का नियंत्रण इत्यादि संभव हो पाता है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत है।
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धान के जड़ों का विकास ज्यादा होता है कल्ले भी अधिक निकलते है।
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इस विधि में बाली की लम्बाई भी पूर्व प्रचलित विधि की तुलना में अधिक होती है तथा दानों की संख्या एवं दानों का वजन भी अधिक होता है।
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यह विधि पानी पर अधिक निर्भर नहीं होती है,अर्थात पूर्व प्रचलित विधि की तुलना में एक तिहाई पानी में धान की 15-20 प्रतिशत अधिक उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है। धान की प्रति इकाई उत्पादकता में डेढ़ गुणा तक वृद्धि लाई जा सकती है।
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