जानिए, मिट्टी उपचार क्यों जरूरी है एवं उपचार कैसे करें?

मिट्टी उपचार :- जिस खेत या क्यारी में बुवाई की जानी है, उस खेत में बुवाई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है। मिट्टी जनित कीटो एवं कवक से पौध की रक्षा करने लिए मिट्टी उपचार किया जाता है। पुरानी फसलों के खेत में रह गए अवशेष हानिकारक कवक एवं कीटों के उत्पन्न होने का कारण बनते हैं। इन्हीं कवक एवं कीटों से फसलों को बचाने के लिए बुवाई के पूर्व मिट्टी उपचार करना जरूरी है।

मिट्टी उपचार के लिए आवश्यक उत्पाद :-

कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500-1000  ग्राम + कालीचक्र (मेटाराइज़ियम एनीसोपलीय 1.0% डब्ल्यूपी) @ 1-2 किग्रा  प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिला कर खेत में समान रूप से भुरकाव करें। कालीचक्र को किसी भी रासायनिक कवकनाशी के साथ मिश्रण न करें।

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मिर्च की नर्सरी में आवश्यक है मिट्टी का उपचार

👉🏻किसान भाइयों, नर्सरी में मिट्टी का उपचार करके मिर्च की बुवाई करने से मिर्च की रोप बहुत अच्छी एवं रोग मुक्त होती है। 

👉🏻10 किलो सड़ी हुई खाद के साथ DAP @ 1 किलो और मैक्सरूट @ 50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से नर्सरी बेड का मिट्टी उपचार करें। 

👉🏻बेड को चींटियों और दीमक से बचाने के लिए कार्बोफ्यूरान @ 15 ग्राम प्रति बेड के हिसाब से उपयोग करें इसके पश्चात बीज बुवाई करें। 

👉🏻बुवाई की प्रक्रिया पूरी करने के बाद आवश्यकतानुसार नर्सरी में सिंचाई करते रहें। 

👉🏻मिर्च की नर्सरी अवस्था में खरपतवार के निवारण के लिए आवश्यकता अनुसार निराई भी जरूर करें।

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रबी फसलों में बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार का महत्व

Importance of soil treatment before sowing of Rabi crops
  • किसी भी मौसम में फसल बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारक होते हैं। यह फसल की उपज के साथ साथ गुणवत्ता पर भी सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • खरीफ के मौसम के बाद रबी की बुआई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीट जनित रोगों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • इन रोगों के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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आपकी मूंग फसल के लिए अगली गतिविधि

बुवाई के 8 से 10 दिन पहले-मिट्टी की संरचना सुधारने के लिए

6000 किग्रा गोबर की खाद में कम्पोस्टिंग बैक्टीरिया (स्पीड कम्पोस्ट) 4 किग्रा + ट्राइकोडर्मा विरिडी (राइजोकेयर) 500 ग्राम मिलाएं। अच्छी तरह मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में मिट्टी में फैला दें।

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अगेती फूलगोभी की नर्सरी में मिट्टी उपचार कैसे करें?

How to do soil treatment in Cotton crop?
  • नर्सरी की क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिला दें। आद्रगलन रोग से बचाव हेतु 25 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहिये। या
  • आद्रगलन बीमारी द्वारा पौध को होने वाली हानि से बचाने के लिए मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP का 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 75 WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर ड्रेंचिंग करें।
  • पौधों को रसचूसक कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए थायोमेथोक्सम 25% WG का 0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से नर्सरी तैयारी के समय डालें।
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बिना रसायन उपयोग किये मिट्टी उपचार कैसे करें?

बिना रसायन उपयोग किये मुख्यतः दो प्रकार की विधियों से मिट्टी उपचार या मिट्टी शोधन किया जा सकता है जो इस प्रकार है-

मिट्टी सोर्यीकरण अथवा मिट्टी सोलेराइजेशन- गर्मी में जब तेज धूप और तापमान अधिक हो तब मिट्टी सोलेराइजेशन का उत्तम समय होता है। इसके लिए क्यारियों को प्लास्टिक के पारदर्शी शीट से ढक कर एक से दो माह तक रखा जाता है, प्लास्टिक शीट के किनारों को मिट्टी से ढंक देना चाहिए ताकि हवा अंदर प्रवेश ना कर सके। इस प्रक्रिया से प्लास्टिक फिल्म के अंदर का तापमान बढ़ जाता है जिससे क्यारी के मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट, रोगों के बीजाणु तथा कुछ खरपतवारों के बीज नष्ट हो जाते हैं। प्लास्टिक फिल्म के उपयोग करने से क्यारियों में मिट्टीजनित रोग एवं कीट कम हो जाते हैं। इस तरह से मिट्टी में बगैर रसायन रोग एवं कीट कम हो जाते हैं। इस तरह से मिट्टी में बिना कुछ डाले मिट्टी का उपचार किया जा सकता है।

जैविक विधि- जैविक विधि से मिट्टी शोधन करने के लिए ट्राईकोडर्मा विरिडी (संजीवनी/ कॉम्बेट) जो कि कवकनाशी है और ब्यूवेरिया बेसियाना (बेव कर्ब) जो कि कीटनाशी है,  से उपचार किया जाता है। इसके उपयोग के लिए 8 -10 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद लेते हैं तथा इसमें 2 किलो संजीवनी/ कॉम्बेट और बेव कर्ब को मिला देते हैं एवं मिश्रण में नमी बनाये रखते है। यह क्रिया में सीधी धूप नहीं लगनी चाहिए अतः  इसे छाव या पेड़ के नीचे करते है। नियमित हल्का पानी देकर नमी बनाये रखना होता है। 4-5 दिन पश्चात फफूंद का अंकुरण होने से खाद का रंग हल्का हरा हो जाता है तब खाद को पलट देते है ताकि फफूंद नीचे वाली परत में भी समा जाये। 7 से 10 दिन बाद प्रति एकड़ की दर से खेत में इसे बिखेर देना चाहिए। ऐसा करने से भी भूमि में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, प्युपा तथा कवकों के बीजाणुओं को नष्ट किया जा सकता है। ग्रामोफ़ोन द्वारा उपलब्ध मिट्टी समृद्धि किट में वे सभी जैविक उत्पाद है जो मिट्टी की संरचना सुधारने, लाभकारी जीवों की संख्या और पौधों के पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने, हानिकारक कवकों को नष्ट करने, जड़ों के विकास करने, जड़ों में राइजोबियम बढाकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते है।

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भूमि व बीज उपचार से बढ़ाएं जायद मूंग की पैदावार

भूमि उपचार: मूंग की फसल हेतु कृषि प्रक्रिया आरंभ करने से पहले भूमि उपचार अति आवश्यक है। इससे भूमि में उपस्थित हानिकारक कीट व कवकों को नष्ट किया जा सके। 

6-8 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 4 किलो कम्पोस्टिंग बैक्टीरिया और 1 किलो ट्राइकोडरमा विरिडी मिला कर एक एकड़ खेत में बिखेर दे।

बीज उपचार: मूंग की बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए बीज उपचार बहुत फ़ायदेमंद होता है। इससे हानिकारक कवकों व रस चूसक कीट से बचाव हो जाती है। 

मूंग के बीजो में (1) 2.5 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% DS  या 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी/स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस तथा 5 मिली इमिडाक्लोप्रिड 48 FS प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।

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Use of Trichoderma :- When, How and Why ?

ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार के पौधों और सब्जियों के लिए जरूरी है जैसे कि गोभीवर्गीय, कपास, सोयाबीन आदि।

  • बीजोपचार:  1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति क्विंटल बीज की दर से बुवाई से पहले बीजो में मिलाएं।
  • जड़ो के उपचार हेतु : 10  किलो गोबर की अच्छे से सड़ी हुई खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करे फिर इसमें 1 किलो  ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनो का मिश्रण तैयार कर ले अब इस मिश्रण में पौध की जड़ो को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं।
  • मृदा उपचार: 4  किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 50 किलो गोबर की खाद के साथ मिला कर बेसल डोज के रूप में खेत में मिलाईये |    
  • खड़ी फसल में : खड़ी फसल में उपयोग हेतु एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें |

सावधानियां

  • ट्राइकोडर्मा के प्रयोग के बाद 4-5 दिनों के तक कोई भी रासायनिक कवकनाशी का उपयोग न करें।
  • सूखी मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग न करें। इसकी वृद्धि और उत्तरजीविता के लिए नमी एक आवश्यक कारक है।
  • उपचारित बीज को सीधे सूर्य की किरणों में न रखे।
  • ट्राइकोडर्मा को FYM के साथ मिला कर अधिक समय तक न रखें।
  • ज्यादा जानकारी के लिए हमारे टोल फ्री न.( 1800-315-7566 ) पर मिस कॉल दे | 

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