जानिए, सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्व

👉🏻किसान भाइयों, सोयाबीन एक दलहनी फसल है, जिसकी जडों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है। राइजोबियम वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावार बढ़ाने में सहायक है। राइजोबियम दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाला एक जैव उर्वरक है। 

सोयाबीन की फसल में राइज़ोबियम के प्रयोग से होने वाले लाभ:-

👉🏻राइजोबियम जीवाणु वातावरण मे व्याप्त नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों की जड़ों तक पहुंचाते हैं। अतः दलहनी फसलों में रसायनिक खाद की आवश्यकता को कम करता है। 

👉🏻राइजोबियम के प्रयोग से सोयाबीन की उपज में कई प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। 

👉🏻राइजोबियम के प्रयोग से भूमि में नाइट्रोज़न की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे उर्वरता बनी रहती है।

👉🏻सोयाबीन की जड़ों में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा संचित नाइट्रोज़न अगली फसल द्वारा ग्रहण किया जाता है। 

👉🏻राइजोबियम द्वारा संचित नाइट्रोज़न कार्बनिक रूप में होने के कारण पूर्ण रूप से पौधों को प्राप्त  होता है।

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सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्व

Importance of Rhizobium culture in soybean crop
  • सोयाबीन की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की उपज बढ़ाता है। परन्तु आज के दौर मिट्टी में अवांछनीय तत्वों की मात्रा इतनी बढ़ गयी है कि सोयाबीन की फसल में प्राकृतिक रूप से राइज़ोबियम का जीवाणु अपने क्षमता के अनुसार कार्य नही कर पाते है।  
  • इसलिए राइज़ोबियम कल्चर का उपयोग करने से सोयाबीन की पौधों की जड़ों में तेजी से गांठे बनती है तथा सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
  • राइजोबियम कल्चर के उपयोग से मिट्टी में लगभग 12-16 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ तक बढ़ जाती है। 
  • बीज उपचार के लिए राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज तथा मिट्टी के उपचार के लिए बुआई से पहले 1 किलो कल्चर प्रति 50 किलो सड़ी हुई गोबर खाद में मिलाकर किया जाता है। 
  • दलहनी फ़सलों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है, जिससे अगली फसल में भी नत्रजन कम देने की आवश्यकता होती है।
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