ग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई एंव गहाई

👉🏻मूंग की फसल 65-70 दिन में पक जाती है। अर्थात मार्च- अप्रैल माह में बोई गई फसल मई-जून माह में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

👉🏻फलियाँ पक कर, हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है।

👉🏻पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं, यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है। अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में कर लें और बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। 

👉🏻अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनों खराब हो जाते हैं। 

👉🏻हॅंसिए से फसल काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डंडे से पीट कर या थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।

👉🏻फसल अवशेष को रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दें ताकि यह हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ नाइट्रोजन की पूर्ति आगामी फसल के लिए हो जाती है।

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मूंग की फसल में खरपतवार प्रबंधन कैसे करें?

How to manage weed in moong crop?
  • मूंग प्रमुख दलहनी फसलों में शामिल है एवं कम समय में अच्छा उत्पादन देने वाली फसल है।
  • मध्य प्रदेश के कई जिले में मूंग की खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।
  • मूंग की बुआई के बाद लगभग 20 से 30 दिन तक किसान को खरपतवारों पर खास ध्यान देना चाहिए।
  • ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआती दौर में खरपतवार फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
  • मूंग की फसल में किसान पेन्डीमिथालीन 38.7 CS@ 700 मिली/एकड़ की दर से पूर्व उद्भव खरपतवारनाशी के रूप में उपयोग करें।
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मूंग की फसल में राइज़ोबियम कल्चर का महत्व

Importance of Rhizobium culture in Moong crop
  • मूंग की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की उपज बढ़ाता है।
  • राइज़ोबियम कल्चर के इस्तेमाल से दलहनी फ़सलों की जड़ों में तेजी से गांठे बनती है जिससे मूंग, चना, अरहर व उड़द की उपज में 20-30 फीसदी व सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
  • राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 30-40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ जाती है।
  • राइजोबियम कल्चर 5 से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार तथा मिट्टी के उपचार बुआई पूर्व के लिए 1 किलो/एकड़ प्रति 50 किलो गोबर खाद में मिलाकर किया जाता है।
  • दलहनी फ़सलों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है, जिससे अगली फसल में भी नत्रजन कम देने की आवश्यकता होती है।
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मूँग की फसल में क्यों जरूरी है बीज उपचार, जानें इसका महत्व

Why seed treatment is so crucial in mung crops
  • बीज उपचार करने से बीज जनित तथा मिट्टी जनित बीमारियों को आसानी से नियंत्रित कर फसल के अंकुरण को भी बढ़ाया जा सकता है।
  • बीज उपचार के तौर पर कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से मिट्टी में पायी जाने वाली हानिकारक कवकों के नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
  • इसके जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5-10 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें। या
  • जैविक उपचार के लिए सूडोमोनास फ्लोरोसेंस 5-10 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
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म.प्र में शुरू हुई एमएसपी पर उड़द और मूंग की खरीदी हेतु पंजीयन, ये है आखिरी तारीख

मूंग और उड़द की फसल की कटाई किसानों ने शुरू कर दी है, और मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से मूंग और उड़द की एमएसपी पर खरीदी के लिए पंजीयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। यह प्रक्रिया 4 जून से शुरू की गई है और इसकी आखिरी तारीख 15 जून रखी गई है।

मध्यप्रदेश कृषि विभाग के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर के इन तारीखों की घोषणा की गई है। प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मंगलवार को कृषि विभाग के इस ट्वीट को रीट्वीट किया था।

ग़ौरतलब है की प्रदेश में गेहूं खरीदी का काम खत्म कर लिया गया है और इसके बाद अन्य फ़सलों की खरीदी का काम भी धीरे धीरे शुरू किया जा रहा है ताकि किसान अपनी अन्य फ़सलों पर ध्यान दे पाएं।

स्रोत: मध्यप्रदेश कृषि विभाग

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मूंग की फसल में फली छेदक (इल्ली) नियंत्रण के साथ दानों का आकार कैसे बढ़ाएं?

मूंग की फसल को फली छेदक (इल्ली) के कारण नुकसान हो सकता है अतः इसका नियंत्रण करें। इसके नियंत्रण के साथ दानों का आकार बढ़ाने के लिए इन उपायों को अपनाएं?

  • यह इल्ली हरे-भूरे रंग की दिखाई देती है, और इसके शरीर पर गहरे भूरे रंग की धारियाँ होती है।
  • फली छेदक (इल्ली) का सिर फली में अंदर घुसा रहता जो फली में छेद कर नुकसान पहुँचाता है।
  • इल्ली नियंत्रण हेतु क्लोरट्रानिलीप्रोल 18.5 SC 60 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। या
  • कीट रोकथाम के लिए इमामेक्टीन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम + बिवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • दानों का आकार बढ़ाने के लिए 1 किलो सल्फर ऑफ पोटाश-0:0:50 उर्वरक इस छिड़काव के साथ मिलाकर उपयोग करें।
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मूंग की खेती: फसल वृद्धि तथा रस चूसक कीट एवं अन्य बीमारियों से बचाव के उपाय

Information of improved varieties of Moong bean
  • कवक जनित रोगों से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • रसचूसक कीट से बचाव हेतु 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • फसल की अच्छी बढ़वार हेतु 100 ग्राम वीम-95 (पोटैशियम ह्यूमेट 90% + फ्लूविक एसिड 10 %) या 400 मिली धनजाइम गोल्ड (समुंद्री शैवाल) या 400 मिली होशी अल्ट्रा (जिबरेलिक एसिड 0.001%) प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • ऊपर के तीनों उत्पाद (फफूंदनाशी, कीटनाशी और वृद्धि नियामक) तथा 1 किलो NPK 19:19:19 को प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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कैसे करें मूंग की फसल का पीले मोजेक रोग से बचाव?

Control of Yellow Vein Mosaic disease in Mung bean Crop
  • यह वायरस जनित रोग है जिसमें पत्तियां पीली पड़कर मुड़ जाती हैं।
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती है।
  • यह रोग रसचूसक कीट सफेद मक्खी से फैलता है।
  • इससे नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP 200 ग्राम या पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC 200 मिली या एसिटामिप्रिड 20% SP 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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मूंग और उड़द की फसल में जीवाणु अंगमारी से बचाव कैसे करें?

How to protect bacterial blight from Green gram and black gram
  • पत्तियों की सतह पर भूरे, सूखे और उभरे हुए धब्बे इस रोग की पहचान है।
  • पत्तियों की निचली सतह पर ये धब्बे लाल रंग जैसे पाये जाते हैं।
  • जब रोग का प्रकोप बढ़ता है तो धब्बे आपस में मिल जाते है और पत्तियां पीली पड़ जाती है अतः समय से पहले झड़ जाती है।
  • इससे नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% w/w @ 20 ग्राम प्रति एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। या
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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मूंग की उन्नत किस्मों की जानकारी

Information of improved varieties of Moong bean

शक्तिवर्धक विराट: मूंग की यह किस्म 70-80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसका पौधा सीधा, सख्त, कम बढ़ने वाला होता है और इसकी फली में 10-12 दाने होते हैं। यह उन्नत किस्म ग्रीष्म व खरीफ दोनों मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त होती है।

मूंग अवस्थी सम्राट: यह उन्नत किस्म ग्रीष्म व खरीफ दोनों मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त होती है। मूंग की यह किस्म 70-80 दिनों में अच्छी उपज देती है।

ईगल मूंग: यह किस्म पीडीएम-139 नाम से भी जानी जाती है जो 55-60 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 12-15 क़्वींटल प्रति हैक्टर होती है। यह किस्म पीले मौजेक वायरस के प्रति मध्यम प्रतिरोधक क्षमता रखती है। यह उन्नत किस्म ग्रीष्म मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त होती है।

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