करेले की फसल में विषाणुजनित रोगों का प्रबंधन 

 

  • करेले में विषाणुजनित रोग आम तौर पर सफेद मक्खी तथा एफिड से होता है। 
  • इस रोग में सामन्यतः पत्तियों पर अनियमित हल्की व गहरी हरी एवं पीली धारियां या धब्बे दिखाई देते हैं।
  • पत्तियों में घुमाव, अवरुद्ध, सिकुड़न एवं पत्तियों की शिराएं गहरी हरी या पीली हल्की हो जाती हैं।
  • पौधा छोटा रह जाता है और फल फूल कम लगते है या झड़ कर गिर जाते हैं।  
  • रोग से बचाव के लिए सफेद मक्खी और एफिड को नियंत्रित करना चाहिए। 
  • इस प्रकार के कीटों की रक्षा हेतु 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 40 ग्राम/एकड़ और स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम  200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या
  • डाइफेनथूरोंन 100 ग्राम के साथ स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम  200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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करेले की फसल को रसचूसक कीटों से कैसे बचाएं

 

  • रसचूसक कीटों में एफिड, हरा तेला, सफ़ेद मक्खी, मीलीबग जैसे कीट आते हैं जो करेले की फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • रसचूसक कीटों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी या
  • थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। 
  • कीटनाशकों का बदल बदल कर छिड़काव करना चाहिए ताकि कीट कीटनाशकों के विरुद्ध प्रतिरोध शक्ति उत्पन्न न कर पाये। 
  • जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 1 किलो प्रति एकड़ उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं। 

 

 

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एन्थ्रेक्नोस रोग से करेले की फसल को कैसे बचाएं

  • यह करेले में पाया जाने वाला एक भयानक रोग है।
  • सबसे पहले इसके कारण पत्तियों पर अनियमित छोटे पीले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
  • आगे की अवस्था में ये धब्बे गहरे होकर पूरे पत्तियों पर फैल जाते हैं।
  • फल पर छोटे काले गहरे धब्बे उत्पन्न होते है जो पूरे फल पर फ़ैल जाते हैं।
  • नमी युक्त मौसम में इन धब्बों के बीच में गुलाबी बीजाणु बनते हैं।
  • इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा आती है फलस्वरूप पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है।
  • इस रोग से बचाव के लिए कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम 37.5 @ 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • 10 दिनों के अंतराल से मेंकोजेब 75% डब्ल्यू पी 400 ग्राम प्रति एकड़ या  क्लोरोथालोनिल 75 डब्ल्यूपी ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
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करेले में चूर्णिल आसिता/ भभूतिया रोग का प्रबंधन

  • सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफ़ेद-धूसर धब्बे दिखाई देते है जो बाद में बढ़कर सफ़ेद रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।
  • ये फफूंद पौधे से पोषक तत्वों को खींच लेती है और प्रकाश संश्लेषण में बाधा डालती है जिससे पौधे का विकास रूक जाता है
  • रोग की वृद्धि के साथ संक्रमित भाग सूख जाता है और पत्तियां गिर जाती है।
  • पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थियोफेनेट मिथाइल 70 डब्लू पी या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन  23 एस सी का 200 मिली प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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सिंचाई के उचित प्रबंधन से बढ़ाये करेले की फसल की उत्पादकता  

  • करेले की फसल सूखे एवं अत्यधिक पानी वाले क्षेत्रों के प्रति सहनशील नहीं होती है।
  • रोपण या बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये और फिर तीसरे दिन एवं उसके बाद सप्ताह में एक बार भूमि में नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
  • भूमि की ऊपरी सतह (50 सेमी.तक) पर नमी बनाए रखनी चाहिए। इस क्षेत्र में जड़ें अधिक संख्या में होती हैं।
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