- मिश्रित खेती की प्रक्रिया को कृषि की तकनीकी भाषा में अंतरसस्य (इंटरक्रॉपिंग) कहते हैं।
- इस प्रकार की खेती खेतों की विविधता और स्थिरता को बनाए रखने में मददगार होती है।
- इस प्रक्रिया का इस्तेमाल करने पर रासायनिक/उर्वरक के अनुप्रयोग में कमी आती है ।
- मिश्रित फसल में खरपतवार, कीड़े और बीमारी की समस्या कम होती है।
- अंतरसस्य (इंटरक्रोपिंग) में सब्जियों की फसलें कम अवधि में उच्च उत्पादन देती है।
जानें कपास की फसल में अंतर-फसल (इंटर क्रॉपिंग) पद्धति के क्या हैं फायदे?
- एक ही खेत में दो या दो से अधिक फ़सलों की अलग-अलग कतारों में एक साथ एक ही समय में खेती करना इंटर क्रॉपिंग या अंतर-फसल पद्धति कहलाती है।
- कपास की पंक्तियों के बीच जो खाली जगह रहती है उनके बीच उथली जड़ वाली और कम समय में तैयार होने वाली मूंग या उड़द जैसी फसल उगाई जा सकती है।
- अंतर-फसल करने से अतिरिक्त मुनाफ़ा भी बढ़ेगा और खाली जगह पर खरपतवार भी नहीं लगेंगे।
इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है। - इस पद्धति द्वारा फ़सलों में विविधता से रोग व कीट प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है।
- यह पद्धति अधिक या कम बारिश में फ़सलों की विफलता के खिलाफ एक बीमा के रूप में कार्य करती है। जिससे किसान जोखिम से बच जाते हैं, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है।
मिश्रित खेती के अंतर्गत लगायी जाने वाली फसलें
क्र. | मुख्य फसल | अंतरसस्य फसले | |
1. | सोयाबीन | मक्का, अरहर |
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2. | भिड़ी | धनियाँ, पालक | |
3. | कपास | मूँगफली, उड़द, हरी मूंग, मक्का | |
4. | मिर्ची | मूली, गाजर | |
5. | आम | हल्दी, प्याज |
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