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- लाल मकड़ी का सबसे ज्यादा प्रकोप मानसून के पूर्व होता है पर कई बार ये बाकी समय में भी फसल को नुकसान पहुँचा सकता है। आने वाले दिनों में भी इसके प्रकोप की संभावना है।
- इस का प्रकोप पत्तियों की निचली सतह पर सबसे अधिक दिखाई देता है।
- यह कीट पत्तियों की शिराओ के पास अंडे देती है।
- इस कीट के अधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियां चमकीली पीली हो जाती हैं।
- इस कीट के नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% EC@ 400 ग्राम/एकड़ या स्पैरोमेसीफेंन 22.9% SC@ 200 मिली/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC@ 150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इसी के साथ जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- मेगट (लार्वा) फलों में छेद करने के बाद उनका रस चूसते हैं।
- इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते है।
- मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अंडे देती है।
- मक्खी अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेंद करके उन्हे हानि पहुँचाती है।
- इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है।
- अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।
- मेगट फलों में छेद कर गुदा एवं मुलायम बीजों को खाते हैं, जिसके कारण फल परिपक्व होने के पहले ही गिर जाते हैं।
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- मेगट (लार्वा) फलों में छेद करने के बाद उनका रस चूसते हैं।
- इनसे ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते है।
- मक्खी प्रायः कोमल फलों पर ही अंडे देती है।
- मक्खी अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेंद करके उन्हे हानि पहुँचाती है।
- इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है।
- अंततः छेद ग्रसित फल सड़ने लगते हैं।
- मेगट फलों में छेद कर गुदा एवं मुलायम बीजों को खाते हैं, जिसके कारण फल परिपक्व होने के पहले ही गिर जाते हैं।
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- लाल मकड़ी 1 मिमी लंबी होती है जिन्हे नग्न आँखों से आसानी से नहीं देखा जा सकता है।
- लाल मकड़ी पत्तियों की निचली सतह में समूह बनाकर रहती है।
- इसका लार्वा शिशु एवं वयस्क दोनों पत्तियों की निचली सतह को फाड़कर खाते हैं।
- शिशु एवं वयस्क दोनों पत्तियों व लताओं के कोशिका रस को चूसते हैं, जिसके पत्तियों व लताओं पर सफ़ेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं।
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- पुरानी फसल के अवशेष को नष्ट कर दें।
- यदि फसल की प्रारंभिक अवस्था में, कीट दिखाई दे तो उसे हाथ से पकड़कर नष्ट कर दें।
- साईपरमेथ्रिन 25% ईसी 150 मि.ली.प्रति एकड़ + डायमिथोएट 30% ईसी 300 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिडकाव करें। या
- कार्बारिल 50% डब्लू पी 450 ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। पहला छिडकाव रोपण के 15 दिन व दूसरा इसके 7 दिन बाद करें।
- डाइक्लोरवास (डीडीवीपी) 76% ईसी का 250-350 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव कर के इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है |
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- अंडे से निकले हुये ग्रब ‘जड़ों, भूमिगत भागों एवं जो फल भूमि के संपर्क में रहते हैं उनको खा जाते हैं।
- इन प्रभावित पौधे के खाये हुए जड़ों एवं भूमिगत भागों पर मृतजीवी फंगस का आक्रमण हो जाता है जिसके फलस्वरूप अपरिपक्व फल व लताएँ सुख जाती है।
- बीटल पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देते है।
- पौध अवस्था में बीटल का आक्रमण मुलायम पत्तियों को खाकर हानि पहुँचाते है जिसके कारण पौधे मर जाते हैं।
- संक्रमित फल मनुष्य के खाने योग्य नहीं रहते हैं।
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