- ग्रीष्मकालीन फसलों के रूप में कद्दू वर्गीय फसलें बहुत अधिक मात्रा में लगाई जाती हैं।
- बदलते मौसम एवं तापमान में परिवर्तन के कारण कद्दू वर्गीय फसलों में फूल आने के बाद फल के विकास के समय बहुत समस्या आती है।
- मधुमक्खियां कद्दू वर्गीय फसलों में प्राकृतिक रूप से परागण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- कद्दूवर्गीय फसल में मधुमक्खी के द्वारा परागण की क्रिया को 80% तक पूरा किया जाता है।
- मधुमक्खियों के शरीर में बाल अधिक संख्या में पाए जाते है, जो पराग कणों को उठा लेते हैं। इसके बाद वे पराग कण को एकत्रित कर मादा फूलों तक पहुँचाते हैं।
- मधुमक्खी इन फसलों को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुँचाती है।
- उपर्युक्त क्रिया के बाद निषेचन की क्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद पौधे में फूल से फल बनने की क्रिया शुरू हो जाती है।
मौसम में हो रहे बदलाव के दौरान बरतें कृषि संबंधित सावधानियां
- खेत में जल निकास का प्रबंधन करें ताकि खेत में पानी ज्यादा देर तक न रुक सके।
- फसल कटाई के दौरान उसे खुले खेत में न रखकर किसी छपरे, कमरे, गोदाम अथवा जहाँ बारिश का पानी न आये, ऐसी जगह पर रखें।
- आसमान के साफ़ होने पर चना मसूर गेहूं को तिरपाल या प्लास्टिक की चादरों पर खोलकर 2 से 3 दिन तक अच्छी तरह सुखा लें। दानों में नमी की मात्रा 12% से कम हो जाए तभी इसका भंडारण करें।
- बीज भंडारण के पहले फफूंदनाशक दवा से बीज उपचार करना जरूरी होता है जिससे बीज जनित रोग का सस्ता एवं कारगर नियंत्रण हो सकता है।
- बीज उपचार हेतु थाइरम या केप्टान दवा 3 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 2 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करना चाहिए।
करेले की फसल में विषाणुजनित रोगों का प्रबंधन
- करेले में विषाणुजनित रोग आम तौर पर सफेद मक्खी तथा एफिड से होता है।
- इस रोग में सामन्यतः पत्तियों पर अनियमित हल्की व गहरी हरी एवं पीली धारियां या धब्बे दिखाई देते हैं।
- पत्तियों में घुमाव, अवरुद्ध, सिकुड़न एवं पत्तियों की शिराएं गहरी हरी या पीली हल्की हो जाती हैं।
- पौधा छोटा रह जाता है और फल फूल कम लगते है या झड़ कर गिर जाते हैं।
- रोग से बचाव के लिए सफेद मक्खी और एफिड को नियंत्रित करना चाहिए।
- इस प्रकार के कीटों की रक्षा हेतु 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 40 ग्राम/एकड़ और स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या
- डाइफेनथूरोंन 100 ग्राम के साथ स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
करेले की फसल को रसचूसक कीटों से कैसे बचाएं
- रसचूसक कीटों में एफिड, हरा तेला, सफ़ेद मक्खी, मीलीबग जैसे कीट आते हैं जो करेले की फसल को नुकसान पहुँचाते हैं।
- रसचूसक कीटों से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी या
- थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
- कीटनाशकों का बदल बदल कर छिड़काव करना चाहिए ताकि कीट कीटनाशकों के विरुद्ध प्रतिरोध शक्ति उत्पन्न न कर पाये।
- जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 1 किलो प्रति एकड़ उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
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एन्थ्रेक्नोस रोग से करेले की फसल को कैसे बचाएं
- यह करेले में पाया जाने वाला एक भयानक रोग है।
- सबसे पहले इसके कारण पत्तियों पर अनियमित छोटे पीले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- आगे की अवस्था में ये धब्बे गहरे होकर पूरे पत्तियों पर फैल जाते हैं।
- फल पर छोटे काले गहरे धब्बे उत्पन्न होते है जो पूरे फल पर फ़ैल जाते हैं।
- नमी युक्त मौसम में इन धब्बों के बीच में गुलाबी बीजाणु बनते हैं।
- इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा आती है फलस्वरूप पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है।
- इस रोग से बचाव के लिए कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम 37.5 @ 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
- 10 दिनों के अंतराल से मेंकोजेब 75% डब्ल्यू पी 400 ग्राम प्रति एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75 डब्ल्यूपी ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
करेले में चूर्णिल आसिता/ भभूतिया रोग का प्रबंधन
- सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफ़ेद-धूसर धब्बे दिखाई देते है जो बाद में बढ़कर सफ़ेद रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।
- ये फफूंद पौधे से पोषक तत्वों को खींच लेती है और प्रकाश संश्लेषण में बाधा डालती है जिससे पौधे का विकास रूक जाता है
- रोग की वृद्धि के साथ संक्रमित भाग सूख जाता है और पत्तियां गिर जाती है।
- पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थियोफेनेट मिथाइल 70 डब्लू पी या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी का 200 मिली प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
आलू के छिलकों को फेंकने के बजाय सेवन करें, मिलेंगे आश्चर्यजनक फ़ायदे
- आलू की तरह ही इसके छिलके में भी भरपूर मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में बहुत मदद करता है।
- यह यूवी किरणों से बचाव तथा त्वचा की सुरक्षा करता है।
- मेटाबॉलिज्म के लिए भी यह फ़ायदेमंद होता है।
- शरीर को अच्छी मात्रा में आयरन दिलाता है, जिससे एनीमिया होने का खतरा कम हो जाता है।
सिंचाई के उचित प्रबंधन से बढ़ाये करेले की फसल की उत्पादकता
- करेले की फसल सूखे एवं अत्यधिक पानी वाले क्षेत्रों के प्रति सहनशील नहीं होती है।
- रोपण या बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये और फिर तीसरे दिन एवं उसके बाद सप्ताह में एक बार भूमि में नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
- भूमि की ऊपरी सतह (50 सेमी.तक) पर नमी बनाए रखनी चाहिए। इस क्षेत्र में जड़ें अधिक संख्या में होती हैं।