- खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, कीट की प्युपा अवस्था तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद हैरों या देशी हल से 3-4 जुताई करके, पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये।
- अंतिम जुताई के बाद ग्रामोफ़ोन की पेशकश ‘मिर्च समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 6.3 किलो है, को 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिलाकर अंतिम जुताई या बुआई के समय साथ में मिला दे। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दे।
- बुआई के 30 से 40 दिनों बाद मिर्च की पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। वर्षाकालीन मिर्च के पौध की रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है।
- रोपाई के पूर्व नर्सरी में और खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ नहीं टूटती, वृद्धि अच्छी होती है और पौध आसानी से लग जाती है।
- पौध को जमीन से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिये।
- जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से एक लीटर पानी में घोल बना लें। इसके बाद मिर्च के पौध की जड़ों को इस के घोल में 10 मिनट के लिए डूबा के रखना चाहिए। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध रोपण करें ताकि मिर्च की पौध खेत में भी स्वस्थ रहे।
- मिर्च के पौध की रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी० चाहिये। रोपाई के तुरन्त बाद खेत में हल्का पानी देना चाहिए।
- मिर्च की पौध के रोपाई के समय 45 किलो यूरिया, 200 किलो एस.एस.पी और 50 किलो एम.ओ.पी. उर्वरक को बेसल डोज के रूप में प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर देना चाहिए।
मिर्च की फसल में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण
- पहले लक्षण नए पत्तों पर छोटे पीले- हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है तथा ये पत्तियां विकृत और मुड़ी हुई होती है।
- बाद में पत्तियों पर छोटे गोलाकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले चिकने धब्बे दिखाती देते हैं। जैसे ही ये धब्बे आकार में बड़े होते है, इनमें बीच का भाग हल्का और बाहरी भाग गहरा हो जाता है।
- अंत में ये धब्बे छेदों में बदल जाते है क्योंकि पत्तों के बीच का हिस्सा सूख कर फट जाता है।
- गंभीर संक्रमण होने पर प्रभावित पत्तियां समय से पहले झड़ जाती हैं।
- फलों पर गोल, उभरे हुए, पीले किनारों के साथ जलमग्न धब्बे बन जाते है।
मिर्च की नर्सरी लगाने के लिए स्थान का चुनाव कैसे करें?
मिर्च की नर्सरी लगाने के लिए स्थान का चुनाव करते समय कुछ बातों का ध्यान रख कर हम इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
- ज़मीन उपजाऊ, दोमट, खरपतवार रहित व अच्छे जल निकास वाली हो।
- अम्लीय या क्षारीय ज़मीन का चयन न करें।
- नर्सरी के पास बहुत बड़े पेड़ न हों।
- नर्सरी में लंबे समय तक धूप रहती हो।
- पौधशाला के पास सिंचाई की सुविधा मौजूद हो।
- चुना हुआ क्षेत्र ऊंचा हो ताकि पानी न ठहरे।
- एक स्थान पर बार-बार नर्सरी का निर्माण न करें।
मिर्च की उन्नत किस्मों की जानकारी
हायवेग सानिया
- मिर्च की यह किस्म जीवाणु उकठा एवं मोज़ेक वायरस के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
- यह किस्म अधिक तीखा होने के साथ साथ चमकीला हरा तथा पीलापन लिए हुए होता है। इसके फल 13-15 सेमी लम्बाई, 1.7 सेमी मोटाई व लगभग 14 ग्राम वजन के होते हैं।
- इस किस्म की प्रथम तुड़ाई 50- 55 दिनों में होती है।
मायको नवतेज (एम एच सी पी-319)
- यह पाउडरी मिल्डू/भभूतिया और सूखे के प्रति सहनशील किस्म है।
- यह हाइब्रिड किस्म मध्यम से उच्च तीखापन लिए होती है जो लंबी संग्रहण क्षमता रखती है।
मिर्च की अन्य उच्च उपज वाली किस्मों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें-
Shareमिर्च में मोजेक वायरस का प्रबंधन
- मोजेक वायरस से ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें।
- प्रतिरोधक किस्मों जैसे पूसा ज्वाला, पन्त सी-1, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल इत्यादि को लगाएँ।
- वैक्टर को कम करने के लिए एसिटामिप्रीड 20% एसपी @ 130 ग्राम/एकड़ का नियमित अंतराल पर छिड़काव करें या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 40 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
मिर्च में मोजेक वायरस की पहचान
- इस वायरस के संपर्क में आने से पत्तियों पर गहरे हरे और पीले रंग के धब्बे निकलते हैं।
- इसके कारण हलके गड्ढे और फफोले भी दिखाई पड़ते हैं।
- कभी-कभी पत्ती का आकार अति सुक्ष्म सूत्रकार हो जाता है।
- यह सफ़ेद मक्खी के माध्यम से फैलता है।
- इस वायरस से ग्रषित पौधों में फूल और फल कम लगते हैं।
- इसके कारण फल भी विकृत और खुरदुरे हो जाते हैं।