- खरपतवारों का यदि उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो यह सब्जियों की उपज एवं गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
- खरपतवारों की वजह से 50-70 प्रतिशत तक हानि हो सकती है।
- खरपतवार मिर्ची के उत्पादन को कई तरह से प्रभावित करते हैं जैसे संक्रमण फैलाने वाले कीट एवं फफूंद को आश्रय देते हैं।
- मिर्च के बीजों की बुआई के 72 घंटों के भीतर 3 मिली पेंडीमेथालिन 38.7 CS प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़काव कर देना चाहिए।
- समय समय पर खरपतवार उग जाने पर हाथों से ही उखाड़ कर नर्सरी को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए।
नर्सरी में ऐसे करें मिर्च के बीजों की बुआई
नर्सरी में मिर्च के बीजों की बुआई के समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। इससे नर्सरी में अच्छी पौध तैयार होती है।
- मिर्च की पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों की बुआई 3 गुणा 1.25 मीटर आकार की क्यारियों में करनी चाहिए।
- ये क्यारियां ज़मीन से 8-10 सेमी ऊँची उठी होनी चाहिए ताकि पानी इक्कठा होने से बीज व पौध न सड़ जाये।
- 150 किलो सड़ी गोबर की खाद में 750 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम इंक्रील (समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड और माइकोराइजा) और 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलाएँ ताकि मिट्टी की संरचना के साथ पौधे का विकास अच्छा हो और हानिकारक मृदाजनित कवक रोगों से भी सुरक्षा हो जाए।
- एक एकड़ के खेत के लिए 60-80 ग्राम मिर्च के बीजों की आवश्यकता नर्सरी में होती है।
- क्यारियों में 5 सेमी की दूरी पर 0.5- 1 सेमी गहरी नालियां बनाकर बीजों की बुआई करें।
- बुआई के बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहे।
मिर्च की नर्सरी लगाने के लिए स्थान का चुनाव कैसे करें?
मिर्च की नर्सरी लगाने के लिए स्थान का चुनाव करते समय कुछ बातों का ध्यान रख कर हम इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
- ज़मीन उपजाऊ, दोमट, खरपतवार रहित व अच्छे जल निकास वाली हो।
- अम्लीय या क्षारीय ज़मीन का चयन न करें।
- नर्सरी के पास बहुत बड़े पेड़ न हों।
- नर्सरी में लंबे समय तक धूप रहती हो।
- पौधशाला के पास सिंचाई की सुविधा मौजूद हो।
- चुना हुआ क्षेत्र ऊंचा हो ताकि पानी न ठहरे।
- एक स्थान पर बार-बार नर्सरी का निर्माण न करें।
मिर्च की नर्सरी हेतु मिट्टी उपचार कैसे करें?
- 150 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद में 750 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम इंक्रील (समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड और माइकोराइजा) और 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलाएँ।
- इससे मिट्टी की संरचना में सुधार के साथ-साथ पौधे का विकास अच्छा होता है।
- हानिकारक मृदाजनित कवक व रोगों से भी सुरक्षा हो जाती है तथा जैविक उत्पाद होने के कारण पौध और मिट्टी में रसायनों का दुष्परिणाम भी नहीं होता है।