बैंगन की फसल में छोटी पत्ती समस्या एवं नियंत्रण के उपाय

यह माइकोप्लाजमा जनित रोग है। इस रोग का प्रसार लीफ हॉपर के माध्यम से होता है। इस रोग को बांझी रोग भी कहते हैं। इस रोग से बैंगन की उपज में 40% तक कमी आ सकती है।

इस रोग से ग्रसित पौधों का आकार बौना रह जाता है एवं रोग के अन्य लक्षण भी है जैसे पत्तियों पर चितकबरापन व अल्पविकसित होना, या पत्तियों का विकृत होकर छोटी एवं मोटी आकार का हो जाना। साथ ही इस रोग से नई पत्तियाँ सिकुड़कर व मुड़कर छोटी हो जाती हैं, जिस कारण पत्तियाँ तने से चिपकी हुई लगती हैं और पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। इस वजह से बैंगन के पौधों पर फल नहीं आते हैं। अगर फल आ भी जाये तो वो अत्यंत कठोर होते हैं। 

प्रबंधन:- 

  • तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के आधार पर संक्रमित पौधों को हटाकर नष्ट कर दें। 

  • रोपाई से पहले पौध को 0.2% कार्बोफ्यूरान 50 एसटीडी घोल में डुबाये (नियंत्रण कीट वेक्टर) डाइमेथोएट 0.3% का छिड़काव करें। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए, ब्रिगेड बी (बवेरिया बेसियाना 1.15% डब्ल्यूबी) @ 1 किग्रा/एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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बैंगन में फोमोप्सिस ब्लाइट रोग के लक्षण एवं प्रबंधन के उपाय

👉🏻किसान भाइयों, बैंगन की फसल में रोग का कारक फोमोप्सिस वेक्संस नामक फफूंद है, जो की आम तौर पर बैंगन की फसल को निशाना बनाता है।

👉🏻रोग के लक्षण पत्ती, तना और फल पर दिखाई देते हैं। 

👉🏻पत्तियों पर छोटे धूसर से भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो धीरे धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। अधिक संक्रमण की स्थिति में पत्तियाँ झुलस जाती हैं। 

👉🏻इसके साथ ही रोग के लक्षण फल और तने पर भी दिखाई देते हैं। फलों पर धंसे हुए भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। जो आपस में जुड़कर पूरे फल को प्रभावित करते हैं। 

👉🏻जिसके परिणामस्वरूप फल सड़कर गिरने लगते हैं। 

रोकथाम के उपाय:-

👉🏻जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) @ 400 ग्राम या कोनिका (कासुगामायसिन 5% +  कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम + सिलिको मैक्स (स्टीकर) @ 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।

👉🏻जैविक उपचार – मोनास-कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस) @ 250 -500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में सूत्रकृमि (निमाटोड) का प्रकोप

Outbreak of nematode in Brinjal crop
  • मिट्टी में रहने वाले सूत्रकृमि के कारण बैंगन के पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है। 
  • इसका प्रकोप होने पर पौधें की जड़ पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाती है। इस कारण फूल और फलों की संख्या में कमी आती है।
  • पत्तियां पीली पड़कर सुकड़ने लगती है और पूरा पौधा बौना रह जाता है। 
  • अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है।
  • जिस खेत में यह समस्या होती है वहाँ 2-3 साल तक बैंगन, मिर्च और टमाटर की फसल न लगाए। 
  • रोगग्रस्त खेत में गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करें। 
  • बैंगन की फसल की 1-2 कतार के बीच गेंदा लगा दें।
  • कार्बोफ्यूरान 3% दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिला दें। 
  • निमाटोड के जैविक नियंत्रण के लिए 200 किलो नीम खली या 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से भूमि में मिला दें।
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वर्षाकालीन बैंगन में उर्वरक प्रबंधन कैसे करें?

How to manage fertilizer in rainy season Brinjal
  • वर्षाकालीन बैंगन के लिए नर्सरी की बुआई फरवरी-मार्च में की जाती है।
  • बैंगन की पौध 30-40 दिनों बाद मुख्य खेत में रोपाई हेतु तैयार हो जाती है।
  • खेत में उर्वरक की मात्रा मिट्टी जाँच रिपोर्ट के अनुसार ही डालें या
  • पौध रोपाई से पहले खेत में गोबर की खाद के साथ 90 किलो यूरिया, 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) और 100 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) डालें।
  • 90 किलो यूरिया की मात्रा तीन भागों में बांट दें और यूरिया का पहला भाग पौध रोपाई के 30-40 दिनों बाद, दूसरा भाग अगले 30 दिन बाद तथा तीसरा भाग फूल आते समय टोप ड्रेसिंग के रूप में दें।
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बैंगन में जैसिड कीट का प्रबंधन

  • एसीटामिप्रिड 20% WP @ 80 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। 
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% @ 80 मिली/एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • एविडेंट (थाइमिथोक्सम) @ 100 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें या
  • एबासिन (एबामेक्टिन 1.8% ईसी) @ 150 एमएल/एकड़ का छिड़काव करें।
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बैगन की फसल में जैसिड नामक कीट की पहचान

  • शिशु एवं वयस्क कीट दोनों हरे रंग के एवं छोटे आकार के होते है।
  • शिशु एवं वयस्क, पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं।
  • ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती है जो बाद में पीली हो जाती है एवं उन पर जले हुये धब्बे बन जाते हैं।
  • इनके द्वारा माइकोप्लाज्मा रोग जैसे लघु पर्ण एवं विषाणु रोग जैसे चितकबरापन स्थानांतरित हो जाता है।
  • इस कीट के अत्यधिक प्रभाव देखे जाने पर पौधे में फल लगना कम हो जाता है।
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