कद्दू, तरबूज एवं खरबूजे की फसल में गम्मी तना झुलसा रोग का प्रबंधन

  • रोपाई का निरीक्षण करें एवं संक्रमित पौधों को उखाड़ कर खेत से बाहर फेंक दें।
  • क्लोरोथालोनि
  • स्वस्थ बीजों का चयन करें।
  • ल 75% WP @ 350 ग्राम/एकड़ का घोल बना कर छिड़काव करें। या
  •  टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ का घोल बना कर छिड़काव करें।
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कद्दू, तरबूज और खरबूज में बदलते मौसम के प्रभाव से होने वाली गम्मी तना झुलसा रोग की पहचान कैसे करें?

  • इस बीमारी के कारण पौधे की जड़ को छोड़कर अन्य सभी भाग संक्रमित हो जाते हैं।
  • पौधे की पत्ती के किनारों पर पीलापन और सतह पर जल भरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
  • इस रोग से ग्रसित पौधे के तने पर घाव बन जाते हैं जिससे लाल-भूरे, काले रंग का चिपचिपा पदार्थ (गम) निकलता है।
  • तने पर भूरे-काले रंग के धब्बे बन जाते जो बाद में आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं।
  • प्रभावित पौधे के बीजों पर मध्यम-भूरे, काले धब्बे पड़ जाते हैं।
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मटर में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग का नियंत्रण

  • स्वस्थ बीजों का उपयोग करें एवं बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम  + मेंकोजेब @ 250 ग्राम/ क्विन्टल बीज से बीजोपचार करें।
  • रोग ग्रस्त पौधों पर फूलों के आने पर मैनकोजेब 75% @ 400 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें एवं 10-15 दिन के अंतराल से पुनः  छिड़काव करें ।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें| या 
  • क्लोरोथ्रोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़  छिड़काव करें।
  • रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट करें ।  
  • जल निकास की उचित व्यवस्था  करें ।
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मटर में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग की पहचान

  • पत्तियों पर गहरे भूरे किनारे वाले गोल कत्थई से लेकर भूरे रंग के धब्बे पाये जाते है ।  
  • तनों पर बने विक्षत धब्बे लंबे, दबे हुये एवं बैगनी-काले रंग के होते है ।  
  • ये विक्षत बाद में आपस में मिल जाते है और पूरे तने को चारों और से  घेर लेते है । 
  • फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते है ।
  • रोग की गंभीर अवस्था में  पौधे का तना कमजोर होने लगता है | 
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How to Take care of insect pests & diseases at bud initiation stage of mungbean

    • मूंग की फसल का अधिक उत्पादन लेने के लिए कीट एवं बीमारियों का प्रबंधन करना अति आवश्यक हैं |
    • कीट और बीमारियों से मूंग की फसल में लगभग 70 % तक उत्पादन में नुकसान हो सकता हैं |
    • गर्मियों के मौसम में, फुल व फली बनते समय, फल की इल्ली, तम्बाकू की इल्ली आदि  नुकसान पहुँचाते हैं |
    • मूंग भी बाक़ी फलियों वाली फसल की तरह, फफूंद,जीवाणु और वायरस द्वारा होने वाले रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं।पत्तियों,तने एवं जड़ पर झुलसा रोग, पीलापन और जड़ सडन के लक्षण फसल की बढती हुई अवस्था पर देखे जा सकते हैं |
    • कीटो के प्रभावी नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफोस 36% एसएल @ 300 मिली/एकड़,  इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम/एकड़ (फली की इल्ली के लिए) तथा फ्लुबेंडामाइड  20% डब्लू जी 100 ml/एकड़ या इंडोक्साकारब 14.5 % एस सी @ 160-200 ml/एकड़ (तंबाकू की इल्ली के लिए ) के लिए कर सकते हैं |
    • रोग नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम/ एकड़ (झुलसा रोग के लिए) और थायोफनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू पी @ 250-300 ग्राम प्रति एकड़ ( मिटटी जनित रोगो के लिए ) का उपयोग करें।

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Control of Blight in Maize

मक्का का यह रोग फफूंद जनित रोग है जो की फसल की विभिन्न अवस्थाओ पर लगता है इसके लक्षण पत्तियो पर तथा मक्का के भुट्टों पर देखने को मिलते है शुरुआती लक्षण के रूप में पनीले धब्बे पत्तियों पर बनते है, जो बाद में बड़े होते जाते है जिनका रंग धूसर भूरा होता है|

  • फसल चक्र अपनाने से फसल अवशेषों में उपस्थित रोग को कम किया जा सकता है|
  • खेत की अच्छे  से जुताई करने से भी फसल अवशेषों को ख़त्म कर देती है |
  • उपज में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए फफूंदीनाशक का स्प्रे करे |
  • मेंकोजेब 75% WP 400 ग्राम या मेटालेक्ज़ील 35% WS 150 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें|

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Control of Blight and Foot Rot in Pea Crop

मटर में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग का नियंत्रण:-

लक्षण:-

  • पत्तियों पर गहरे भूरे किनारे वाले गोल कत्थई से लेकर भूरे रंग के धब्बे पाये जाते है ।  
  • तनों पर बने विक्षत धब्बे लंबे, दबे हुये एवं बैगनी-काले रंग के होते है ।  
  • ये विक्षत बाद में आपस में मिल जाते है और पूरे तने को चारों और से  घेर लेते है । इस प्रकार यह तना कमजोर हो जाता है ।
  • फलियों पर धब्बे लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे होते है ।

नियंत्रण:-

  • स्वस्थ बीजों का उपयोग करें एवं बुवाई से पहले कार्बनडेजिम+मेंकोजेब@ 250 ग्राम/ क्विन्टल बीज से बीजोपचार करें ।
  • रोग ग्रस्त पौधों पर फूलों के आने पर मैनकोजेब 75% @ 400 ग्राम/ एकड़ का छिड़काव करें एवं 10-15 दिन के अंतराल से पुनः  छिड़काव करें ।
  • रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट करें ।  
  • जल निकास की उचित व्यवस्था  करें ।

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