मूंग और उड़द की फसल में जीवाणु अंगमारी से बचाव कैसे करें?

How to protect bacterial blight from Green gram and black gram
  • पत्तियों की सतह पर भूरे, सूखे और उभरे हुए धब्बे इस रोग की पहचान है।
  • पत्तियों की निचली सतह पर ये धब्बे लाल रंग जैसे पाये जाते हैं।
  • जब रोग का प्रकोप बढ़ता है तो धब्बे आपस में मिल जाते है और पत्तियां पीली पड़ जाती है अतः समय से पहले झड़ जाती है।
  • इससे नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% w/w @ 20 ग्राम प्रति एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। या
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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उड़द में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग से बचाव

Prevention of Cercospora leaf spot disease in Black gram
  • पत्तियों पर लाल भूरे किनारों से घिरे हुए कई छोटे छोटे हल्के पीले -भूरे रंग के गोल धब्बे हो जाते हैं।
  • इसी तरह के धब्बे शाखाओं और हरी फलियों पर भी होते हैं।
  • पत्तियों पर गंभीर रूप से धब्बे होने पर फलियों के बनने के समय भारी मात्रा में पत्ते झड़ने लगते है।
  • रोग के शुरुआती अवस्था में कार्बेन्डाजिम 12 + मैनकोजेब 63 WP 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें और 10 दिन बाद छिड़काव दोहराये।
  • इससे उपचार हेतु क्लोरोथालोनिल 33.1 + मेफेनोक्साम 3.3 SC 400 मिली या एजॉक्सीस्टॉबिन 11 + टेबुकोनाजोल 18.3 SC 250 मिली/एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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Yellow Mosaic Virus in Legumes crops

पीला मौजेक वायरस :- पीला मौजेक वायरस मुख्य रूप से खरीफ मौसम में सोयाबीन, उड़द, मूग व कुछ अन्य फसलो में भी होता हैं |  सोयाबीन, उड़द आदि फसलो में रोग के प्रकोप से काफी नुकसान होता हैं | इससे पैदावार पर बुरा प्रभाव होता हैं, यह रोग 4-5 दिनों में पुरे खेत में फ़ैल जाता हैं और फसल पीली पड़ने लगती हैं रोग फैलाने मे मुख्य भूमिका सफ़ेद मक्खी की होती हैं |       

रोग फेलने  के मुख्य कारण :-

  • यह विषाणु जनित रोग रस चूसक कीट व सफ़ेद मक्खी से फैलता हैं |
  • बीजो का उचित उपचार नहीं किया जाना | साथ ही जानकारी का अभाव होना व लम्बे समय तक सुखा पड़ना भी वायरस को फैलाने में सहयोगी रहता हैं |
  • कीटनाशको का अन्धाधुंध प्रयोग करना बिना उचित जानकारी के दवाइयों का मिश्रण कर उनका छिडकाव करना |
  • किसानो द्वारा उचित फसल चक्र नहीं अपनाये जाना इसका मुख्य कारण होता हैं |
  • खेतो के चारो और मेड़ो की सफाई नहीं होने के कारण भी फैलता हैं |
  • सफ़ेद मक्खी पौधो के पत्ते पर बैठ कर रस चूसती है ओर लार वही छोड़ने से बीमारी का प्रकोप बढता हैं |

 रोग के  लक्षण :-

  • प्रारंभिक अवस्था में गहरे पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं|
  • रोग ग्रस्त पोधे की पत्तिया पीली पड़ जाती हैं |
  • रोगग्रस्त पोधे की पतियों की नसे साफ़ दिखाई देने लगती है |
  • पोधे की पत्तिया खुरदुरी हो जाती हैं |
  • ग्रसित पोधा छोटा रह जाता हैं|

रोकथाम के उपाय :-

यांत्रिक विधि :-

  • प्रारंभिक अवस्था मे रोग ग्रसित पौधो को खेत से उखाड़ कर जला दे |
  • खेत मे सफ़ेद मक्खी को आकर्षित करने के लिए  प्रति हक्टेयर 5-6 पीले प्रपंच लगाये |
  • फसल के चारो और जाल के रूप मे गेंदे की फसल लगाये |

जैविक विधि :-

  • प्रारंभिक अवस्था मे पौधो मे नीम तेल छिडकाव 1-1.5 ली. प्रति एकड़ चिपकने वाले पदार्थ मे मिलाकर 200-250 ली. पानी का घोल बना कर करे
  • 2 किलो सहजन की पत्तियों को बारीक़ पीसकर 5 ली. गोमूत्र और 5 ली. पानी मिलकर गला दे| 5 दिन बाद पानी छान ले| 500 मिलीलीटर घोल को 15 लीटर पानी मे मिलाकर फसल पर छिडकाव करे | यह फसल मे टॉनिक का काम करेगा |

रासायनिक विधि :-

  • डाइमिथिएट  250-300 मिलीलीटर  या थायोमेथाक्सोम 25WP 40 ग्राम  या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL 40 मिलीलीटर  या एसिटामाप्रीड 40 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200-250 लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करे |  

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