Use of Makkhan grass

  • मक्खन घास उच्च पोषण वाली फसल हैं और इसकी कई बार कटाई की जा सकती हैं।
  • दुधारू पशुओ को मक्खन घास खिलाने से दूध उत्पादन में वृद्धि होती हैं। साथ ही वसा की मात्रा और घुलनशील ठोस की मात्रा भी बढ़ती हैं|
  • मक्खन घास बहुत रसीली और अधिक स्वादिष्ट घास होती हैं।

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Post Calving Challenges In Milk Cattles

दुधारू पशुओं में प्रसव उपरांत सुरक्षा:-

  • प्रसव के बाद पशु की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है इसके साथ-साथ कैल्शियम की कमी भी सामान्यता देखने को मिलती है जिसकी वजह से पशुओं में दूध का उत्पादन तो कम होता ही है, पशु को मिल्क फीवर होने की भी सम्भावना बढ़ जाती है, कुछ पशुओं को जेर गिराने में भी समस्या होती है| इस समय पशुओं का अच्छे से ख्याल रखना तथा सही मात्रा में और सही पशु आहार का देना चाहिये| साथ ही इसे शक्ति वर्धक पेय देना भी जरूरी होता है|

उपाय:-

  • ट्रान्समिक्स मिल्क फीवर और केटोसिस जैसे चयापचय विकारों की संभावनाओं को कम करने में मदद करता है|
  • ट्रान्समिक्स ब्याने से होने वाले तनाव को कम करता है |
  • ट्रान्समिक्स प्लेसेंटा और मेट्रिसिस की संभावनाओं को रोकता है|
  • ट्रान्समिक्स पशु की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है|
  • ट्रान्समिक्स दूध उत्पादन को बढ़ाता है|

मात्रा:-

  • प्रसव के बाद पशुओं को 500 मिली ट्रान्समिक्स बोतल से पिलाइए तथा दूसरी खुराक 48 से 72 घंटे बाद बोतल से ही पिलाइए|

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Vaccination For Dairy Animals

दुधारू पशुओ के लिए टीकाकरण:-

टीकाकरण  पशुओं के रोग के प्रति, प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है साथ ही उन्हे विभिन्न रोगकारक जैसे जीवाणु, विषाणु, परजीवी, प्रोटोजोआ तथा कवक के संक्रमण से लडऩे के लिए शरीर को तैयार करता है ।

क्र. रोग का नाम पहली खुराक पर आयु अनुवर्धक खुराक बाद की खुराक
1 खुरपका  मुहपका (एफएमडी) 4 महीने या उसके  ऊपर पहली खुराक के बाद 1 महीने छह माह
2 रक्तस्रावी
सेप्टिसिमीया (एचएस)
6 महीने  या उसके ऊपर सालाना या प्रकोप होने की सम्भावना पर
3 ब्लैक क्वार्टर (बी क्यू) 6 महीने  या उसके ऊपर सालाना या प्रकोप होने की सम्भावना पर
4 ब्रूसीलोसिस 4-8 महीने की आयु
(केवल मादा बछड़े)
जीवन में एक बार
5 थेइलेरिओसिस (Theileriosis) 3 महीने या उससे ऊपर जीवन में एक बार। केवल क्रॉसब्रीड और विदेशी मवेशियों के लिए आवश्यक है।
6 एंथ्रेक्स 4 महीने या ऊपर सालाना या प्रकोप होने की सम्भावना पर
7 आई .बी आर (IBR) 3 महीने  या उसके ऊपर -पहली खुराक के बाद 1 महीने छह मासिक (वर्तमान में भारत में टीका नहीं बनाई गई)
8 रेबीज (केवल काटने के बाद  ) काटने के तुरंत बाद चौथे  दिन पहली खुराक के 7 वे 14 वे 28वे एवं 90 वे दिन पर

मुख्य तथ्य

  • टीकाकरण के समय जानवरों का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
  • उन जानवरों का टीका न करें जो पहले से ही किसी कारण से तनाव में हैं जैसे खराब मौसम की वजह से, चारा और पानी की कमी, रोग के प्रकोप से, परिवहन के बाद आदि|
  • टीकाकरण के एक से दो सप्ताह पहले पशुओं की डी -वार्मिंग करे  ।
  • पशु चिकित्सा या विशेषज्ञों की टीकाकरण सम्बन्धी सलाह का सख्ती से पालन करें।
  • टीकाकरण कंपनी, बैच संख्या, समाप्ति तिथि, खुराक आदि का रिकॉर्ड रखें।
  • टीकाकरण के बाद जानवरों के लिए तनाव मुक्त वातावरण बनाएँ।

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Prevention/Control/Treatment of Mastitis

थनैला रोग से बचाव/रोकथाम/उपचार:-

थनैला बीमारी से अर्थिक क्षति का मूल्याकंन करने पर एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आता है जिसमें यह देखा गया हैं कि प्रत्यक्ष रूप मे यह बीमारी जितना नुकसान करती हैं, उससे कहीं ज्यादा अप्रत्यक्ष रूप में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुँचाती हैं। कभी-कभी थनैला रोग के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं परन्तु दूध की कमी, दूध की गुणवत्ता में ह्रास एवं बिसुखने के पश्चात (ड्राई काउ) थन की आंशिक या पूर्ण रुप से  क्षति हो जाती है, जो अगले बियान के प्रारंभ में प्रकट होती है।

  • पशुओं के बांधे जाने वाले स्थान/बैठने के स्थान व दूध दुहने के स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  • दूध दुहने की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी प्रकार की चोट न पहुंचे।
  • थन में किसी प्रकार की चोट (मामूली खरोंच भी) का समुचित उपचार तुरंत करायें।
  • थन का उपचार दुहने से पहले व बाद में दवा के घोल में (पोटेशियम परमैगनेट 1:1000 या क्लोरहेक्सिडीन 0.5  प्रतिशत) डुबो कर करें।
  • दूध की धार कभी भी फर्श पर न मारें।
  • समय-समय पर दूध की जाँच (काले बर्तन पर धार देकर) या प्रयोगशाला में करवाते रहें।
  • शुष्क पशु उपचार भी ब्यांने के बाद थनैला रोग होने की संभावना लगभग समाप्त कर देता है। इसके लिए पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
  • रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें तथा उन्हें दुहने वाले भी अलग हों। अगर ऐसा संभव न हो तो रोगी पशु सबसे अंत में दुहें।

    उपचार

रोग का सफल उपचार प्रारम्भिक अवस्थाओं में ही संभव है अन्यथा रोग के बढ़ जाने पर थन बचा पाना कठिन हो जाता है। इससे बचने के लिए दुधारु पशु के दूध की जाँच समय पर करवा कर जीवाणुनाशक औषधियों द्वारा उपचार पशु चिकित्सक द्वारा करवाना चाहिए। प्रायः यह औषधियां थन में ट्‌यूब चढा कर तथा साथ ही मांसपेशी में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है।

थन में ट्‌यूब चढा कर उपचार के दौरान पशु का दूध पीने योग्य नहीं होता। अतः अंतिम ट्‌यूब चढने के 48 घंटे बाद तक का दूध प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। यह अत्यन्त आवश्यक है कि उपचार पूर्णरूपेण किया जाये, बीच में न छोडें। इसके अतिरिक्त यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि (कम से कम) वर्तमान ब्यांत में पशु उपचार के बाद पुनः सामान्य पूरा दूध देने लग जाएगा।

थनैला बीमारी की रोकथाम प्रभावी ढ़ंग से करने के लिए निम्नलिखित विन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक हैं।

  • दूधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित सफाई जरूरी हैं। फिनाईल के घोल तथा अमोनिया कम्पाउन्ड का छिड़काव करना चाहिए।
  • दूध दुहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई लिए लाल पोटाश या सेवलोन का प्रयोग किया जा सकता है।
  • दूधारू पशुओं में दूध बन्द होने की स्थिति में ड्राई थेरेपी द्वारा उचित ईलाज करायी जानी चाहिए।
  • थनैला होने पर तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह से उचित ईलाज करायी जाय।
  • दूध की दुहाई निश्चित अंतराल पर की जाए ।

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Mastitis Disease in Dairy Cattle

दुधारू पशुओं में थनैला रोग:-  

  • दुधारू पशुओं को लगने वाला एक रोग है। थनैला रोग से प्रभावित पशुओं को रोग के प्रारंभ में थन गर्म हो जाता हैं तथा उसमें दर्द एवं सूजन हो जाती है। शारीरिक तापमान भी बढ़ जाता हैं। लक्षण प्रकट होते ही दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। दूध में छटका, खून एवं पीभ (पस) की अधिकता हो जाती हैं। पशु खाना-पीना छोड़ देता है एवं अरूचि से ग्रसित हो जाता हैं।
  • यह बीमारी समान्यतः गाय, भैंस, बकरी एवं सूअर आदि पशुओं में पायी जाती है, थनैला बीमारी पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूँद एवं यीस्ट तथा मोल्ड के संक्रमण से होता हैं। इसके अलावा चोट तथा मौसमी प्रतिकूलताओं के कारण भी थनैला हो जाता हैं।
  • प्राचीन काल से यह बीमारी दूध देने वाले पशुओं एवं उनके पशुपालको के लिए चिंता का विषय बना हुआ हैं। पशु धन विकास के साथ श्वेत क्रांति की पूर्ण सफलता में अकेले यह बीमारी सबसे बड़ी बाधक हैं। इस बीमारी से पूरे भारत में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये का नुकसान होता हैं, जो अतंतः पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता हैं।

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Caring of Dairy Cow after Calving

ब्यात के बाद दुधारू गायों की देखभाल:-

ब्यात के बाद वाला समय दुधारू गायों के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय होता है!

इस समय जानवर के शरीर में कोलोस्ट्रम और दूध उत्पादन करने के लिए ऊर्जा एवं पौषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती हैं| और इसी समय उसकी भूख कम हो जाती हैं| जिसके कारण उसके शरीर में ऊर्जा के स्तर एवं पौषक तत्वों की कमी हो जाती हैं |

इसलिए, बेहतर स्वास्थय, दूध उत्पादन और प्रजनन के लिए ब्यात के तुरंत बाद गायों की अच्छी देखभाल करना महत्वपूर्ण हैं| नई ब्याही गायों की देखभाल करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु हैं|-

  • यह सुनिश्चित करने के लिए ब्यात के बाद गायों की निगरानी करें कि वे दुध ज्वर और केटोसिस जैसे- रोगों से मुक्त रहें |

 (दुध ज्वर के कुछ संकेत कंपन, कान झटकना, सुस्सता, सूखे थूथन, शरीर का कम तापमान, लेटना, सूजन और चेतना में कमी)

(मीठी गंध वाली सांस और मूत्र, बुखार, वजन घटना आदि केटोसिस के संकेत हैं)

  • बीमार गाय के साथ नई ब्याही गाय को ना रखें|
  • थनैला से बचाव के लिए साफ़ सफाई बनाए रखें| (नई ब्याही गाय में थनैला होने की संभावना अधिक होती हैं )
  • गाय को तनाव मुक्त रखें | उन्हें अधिक गर्मी/ठण्ड एवं बारिश से बचाये| अन्य जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली तथा किसी भी अन्य आक्रामक जानवर से नई ब्याही गाय को दूर रखे|
  • पौषक तत्वों की पूर्ति करने और भूख बढ़ाने के लिए ताजा आहार के साथ पूरक आहार दे|
  • इसके अलावा यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हैं कि जानवर अपना आहार पूरा ले रहा हैं कही उसको छोड़ तो नहीं रहा हैं और सामान्य रूप से जुगाली कर रहा है|

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