बैंगन की फसल में फल छेदक व तना छेदक का ऐसे करें नियंत्रण

Measures to control fruit borer and stem borer in Brinjal crop

इस कीट का प्रकोप बैंगन में सबसे अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। इसके आक्रमण से फूल लगने के पहले हीं गिर जाते हैं। इसके बाद ये कीट फल में छेद बनाकर अंदर घुस जाते हैं और गूदे को खाते हैं। इससे ग्रसित फल सड़ जाते हैं और फल खाने योग्य भी नहीं रहते हैं। 

नियंत्रण के उपाय: इसके नियंत्रण के लिए स्पिनटोर (स्पिनोसैड 45%एससी) 75 मिली/एकड़ या फ़ेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% एससी) 50 मिली/एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5%एससी) 60मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला का छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मिर्च की नर्सरी में आद्र गलन रोग की पहचान और नियंत्रण के उपाय

Damping Off Disease in Chilli Nursery

आद्र गलन रोग फफूंद के माध्यम से फैलता है और मिर्च की नर्सरी में इस रोग का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं इस रोग का प्रभाव 10 से 15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग के लगने से पौधे की जड़ व तने में गलने की समस्या शुरू हो जाती है। इससे पौधों के तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। रोपाई के समय जब पौधे ज्यादा मात्रा में निकाले जाते हैं तो यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है।

नियंत्रण के उपाय:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं, आद्र गलन रोग से प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए कोमबेट (ट्राइकोडर्मा विर्डी) को 8 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें। या 

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो या धनुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) को 3 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मूंग की फसल में रस्ट रोग की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Rust in Moong Crop
  • इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

  • यह धब्बे फलियों और तने पर बहुत कम लेकिन पत्तियों पर अधिक दिखाई देते हैं।

  • इस रोग से ग्रसित फलियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं, दाने सिकुड़े हुए बनते हैं और उपज में भारी कमी आती है।

  • इसके नियंत्रण के लिए एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 600-800 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

बिना खाद उर्वरक होगी मशरूम की खेती, मिलेगा बंपर मुनाफा

Medicinal Properties of Mushroom

किसान भाइयों मशरूम कवक वर्ग का एक पौधा है। इसका कवक जाल ही इसका फल भाग होता है जिसे मशरूम कहा जाता है। मशरूम की खेती के निम्न लाभ हैं –

👉🏻मशरूम को उगाने में खाद उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। 

👉🏻इसकी खेती कर किसान, मध्यम वर्ग एवं मजदूर वर्ग के लोग अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं। 

👉🏻जिनके पास भूमि की कमी या उपलब्धता नहीं है, उनके लिए मशरूम की खेती सर्वश्रेष्ठ है। 

👉🏻मशरूम की खेती करने में लागत कम एवं उत्पादन ज्यादा प्राप्त होता है। 

👉🏻मशरूम की खेती में अन्य खेती की अपेक्षा जोखिम न के बराबर होती है।  

👉🏻मशरूम की खेती किसी भी मौसम में नियंत्रित वातावरण और तापमान एवं आद्रता में की जा सकती है। 

👉🏻मशरूम को ऐसी जगह भी उगाया जा सकता है जहां सूर्य का प्रकाश ना पहुंचता हो। 

👉🏻मशरूम की खेती में फसल अवशेष उपयोग में लिये जाते है जो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। 

👉🏻मशरूम में उपयोगी एवं पौष्टिक पदार्थ होते है और कई प्रोटीनों से भरपूर होता है। 

कृषि क्षेत्र से जुड़ी ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की फसल में बुवाई के बाद ऐसे करें खरपतवारों का प्रबंधन

How to manage weed in cotton
  • कपास की फसल में खरपतवार के कारण पैदावार में बहुत ज्यादा कमी आती है। बुवाई से 50-60 दिनों तक कपास का खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। यह अच्छी उपज के लिए आवश्यक है।

  • बुवाई के बाद पहली सिंचाई से पहले हाथ से खरपतवार हटाएं। साथ ही हर सिंचाई के बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं। 

  • शाकनाशी का प्रयोग बुवाई के तीन दिन के अंदर करें, इसके लिए दोस्त (पेंडीमेथलीन 30% ईसी) 1000 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • शाकनाशी के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी मौजूद होनी चाहिए। इसके प्रयोग से फसल  20-30 दिनों तक खरपतवार मुक्त बनी रहती है। 

  • यदि बुआई के समय शाकनाशी का प्रयोग नहीं किया गया हो तो बुवाई के 18 से 20  दिन के बीच निराई-गुड़ाई जरूर करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कपास की फसल में आद्र गलन की समस्या एवं निवारण के उपाय

Problem and solution of Damping Off in Cotton Crop

आद्र गलन रोग के लक्षण:

  • आद्र गलन रोग कपास की फसल में लगने वाले कुछ घातक रोगों में से एक है। इस रोग के कारण 5 से 20% तक फसल नष्ट हो जाते हैं। 

  • आद्र गलन रोग का प्रभाव 10-15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग से पौधों के जड़ और तना गलने लगते हैं।

  • इससे तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पौधों की पत्ती पीली होकर, सूखने लगती है एवं पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

आद्र गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए और आद्र गलन रोग के प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।

  • बीजों की बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है। 

  • जैविक नियंत्रण के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।

  • विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

मूंग में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग की पहचान व नियंत्रण के उपाय

Identification and control of Cercospora leaf spot Disease in moong crop

सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के कारण मूंग की पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनका बाहरी किनारा गहरे से भूरे लाल रंग का होता है। यह धब्बे पत्ती के ऊपरी सतह पर अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। रोग का संक्रमण पुरानी पत्तियों से प्रारम्भ होता है। अनुकूल परिस्थतियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और अंत में रोगग्रस्त पत्तियाँ गिर जाती हैं।

रोकथाम: इसके नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीज को कैप्टान या थीरम नामक कवकनाशी से (2.5 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से) शोधित करें या बुबाई के 10-15 दिन बाद यह रोग दिखाई दे तो  धानुस्टिंन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्लू.पी) 200 ग्राम/एकड़ या एम-45 (मैनकोजेब 75% डब्लू.पी) 400 ग्राम/एकड़ रोग की शुरुआत में और 10 दिन बाद 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

खीरे की फसल में फल मक्खी का प्रकोप एवं निवारण के उपाय

Identification and control of fruit fly in cucumber crop

यह खीरे की फसल में पाए जाने वाला एक प्रमुख कीट है, इसकी मादा मक्खियां नए फल के छिलके के अंदर की ओर अंडे देती हैं और फिर इसके मेगट फल के गुद्दे को खाती है। इसी वजह से फल गलना शुरू हो जाता है। मक्खी फल में छेद कर देती है जिससे फल का आकार बिगड़ जाता है और फल धीरे धीरे सड़ जाता है। 

रोकथाम:  इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या फेरोमोन – फ्रूट फ्लाई ट्रैप 10/एकड़ की दर से लगाएं या बवे कर्व (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यूपी) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

खीरे की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and Prevention of Downy Mildew in Cucumber

पाउडरी मिल्ड्यू रोग खीरे की फसल में लगने वाला एक प्रमुख रोग है जो फंगस के माध्यम से फैलता है। यह पत्तों और तने पर सफ़ेद रंग के पाउडर के रूप में दिखाई देता है। पाउडरी मिल्ड्यू से प्रभावित हिस्सों पर हाथ लगाने पर, उंगलियों में पाउडर लग जाता है। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है एवं फसल में फूल और फल नहीं बन पाते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू रोग की समस्या ज्यादा होने पर, उत्पादन में कमी भी आ जाती है। 

नियंत्रण: यदि इसका संक्रमण फसलों में दिखे तो एम -45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी 400 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करके डाउनी मिल्ड्यू को नियंत्रित किया जा सकता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share

मूंग की फसल में 40 दिनों की अवस्था पर जरूरी छिड़काव

Know the benefits of growing summer moong

👉🏻किसान भाइयों अभी अधिकांश खेतों में मूंग की फसल लगी हुई है। जिन क्षेत्रों में मूंग की जल्दी बुवाई हो गई थी वहां फसलें अभी 40-50 दिन के मध्य की है। 

👉🏻फसल की यह अवस्था एक प्रमुख अवस्था है जिसमे फलियों मे दाने की गुणवत्ता बढ़ाने एवं कीट व फफूंदी जनित रोगों के नियंत्रण के लिए विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। 

👉🏻इस समय निम्न सिफारिशें अपनाकर फसल से उचित लाभ प्राप्त किया जा सकता है l 

👉🏻नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एससी [बाराज़ाइड] @ 600 मिली + प्रोपिकोनाज़ोल [जेरॉक्स] @ 200 मिली + 0:00:50 [ग्रोमोर] @ 1 किग्रा/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

कृषि क्षेत्र से जुड़ी ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे  शेयर करना ना भूलें।

Share