तरबूज की फसल में फल नोक सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of blossom end rot in watermelon crop

ब्लॉसम एंड रोट पौधे में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। जब इसके लक्षण दिखाई देते है, तब यह हो सकता है की मिट्टी में पर्याप्त कैल्शियम नहीं है, या कैल्शियम मौजूद है लेकिन पौधों की जड़ वो कैल्शियम अवशोषित नहीं कर पाती है। इस रोग में फल के सिरे पर गहरा भूरा या काला धब्बा दिखाई देता है, जो बाद में सूख जाता है, या चमड़े जैसा हो जाता है। शुरुआती अवस्था में यह हल्का हरा होता है लेकिन जैसे -जैसे फल परिपक्व होते है यह भूरा एवं काला हो जाता है।

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए चिलेटेड कैल्शियम @ 1 – 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें, या यारा लिवा कैल्सिनेट (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 0.5 – 1.25 किलोग्राम प्रति दिन प्रति एकड़ के दर से ड्रिप के माध्यम से एक सप्ताह के लिए उपयोग करें। साथ ही खेत में लगातार पर्याप्त नमी बनाए रखें।

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आलू की खुदाई के समय इन सावधानियों से उपज को नहीं होगा नुकसान

The yield will not be harmed by these precautions at the time of potato digging

आलू की खुदाई ज्यादातर फरवरी से शुरू होकर मार्च के दूसरे सप्ताह तक की जाती है और आलू की फसल में खुदाई का सही प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है, ताकि आलू के कंद को कम से कम नुकसान पहुंचे। अक्सर खुदाई के दौरान आलू के कंदों के ऊपरी हिस्से पर कई बार कटे का निशान लग जाता है, जिसके कारण भंडारण के दौरान आलू के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए खुदाई के समय कुछ सावधानियां बरतने की जरुरत होती है। 

सावधानियां:

  • आलू की खुदाई फसल बुवाई के 80 से 90 दिनों के बाद जब फसल परिपक्व हो जाए, एवं पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाए तब करनी चाहिए। 

  • तापमान लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेट होने से पहले ही खुदाई कर लेनी चाहिए। 

  • खुदाई करते समय, मौसम सूखा रहना जरुरी होता है।

  • खुदाई के 2 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 

  • खुदाई के बाद आलू के कंदों को कुछ दिनों तक खुली हवा में रखना चाहिए, इससे कंदों के छिलके कड़े हो जाते हैं।

  • अगर खुदाई करते समय कुछ कंद कट जाए तो कटे हुए कंदो को छटाई के दौरान हटा देना चाहिए। 

  • आलू के कंदों को धूप में न सुखाएं, अगर कंदों को धूप में सुखाया तो उनकी भंडारण क्षमता प्रभावित होती है।

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कई प्रकार से होती है मल्चिंग वाली खेती, जानें इसके लाभ

Benefits and types of plastic mulching

प्लास्टिक मल्चिंग दरअसल प्लास्टिक फिल्म के साथ पौधों के चारों ओर की मिट्टी को व्यवस्थित रूप से ढकने की प्रक्रिया है। आइये जानते हैं इस विधि से खेती करने से क्या लाभ आपको मिलते हैं।

प्लास्टिक मल्चिंग के लाभ:

  • प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है और इसके कारण पानी की भी बचत होती है।

  • मल्चिंग से मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है।

  • इससे फसल में खरतपवार उगने की संभावना कम होती है और जड़ विकास तेजी से होता है।

  • इससे फसलों को पाले से बचाने में भी मदद मिलती है।

  • इससे मिट्टी का कटाव नहीं होता, साथ ही यह मिट्टी को भुरभुरा एवं मुलायम बनाए रखने में भी मदद करता है।

  • इससे उत्पादन में वृद्धि होती है, साथ ही उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है।

प्लास्टिक मल्चिंग के प्रकार:

  • काली मल्चिंग: यह मल्चिंग अधिकतर बागवानी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके काले रंग के कारण सूर्य का प्रकाश मिट्टी में प्रवेश नहीं करता जिससे खरपतवारों का प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है तथा उनकी वृद्धि मल्च के नीचे ही रुक जाती है।

  • नीली मल्चिंग: नीले रंग की मल्च फसलों में माहु तथा थ्रिप्स के प्रकोप को कम करता है। इसके इस्तेमाल से कद्दूवर्गीय फसलों में फलों की अधिक संख्या प्राप्त होती है।

  • पारदर्शी मल्चिंग: इस प्रकार के मल्चिंग का उपयोग अधिकतर मिट्टी में सौर उपचार के लिए किया जाता है। साथ ही सर्दियों के मौसम में सब्जियों की खेती के लिए इसका उपयोग  किया जा सकता है।

प्लास्टिक मल्चिंग की मोटाई: मल्च फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार एवं उम्र के अनुसार निश्चित किया जाता है। मल्च की मोटाई फसल के जीवन चक्र को पूरा करने वाली होनी चाहिए। अधिकतर सब्जी वाली फसलों में पलवार की मोटाई 25 माइक्रोन और फल वाली फसलों में 100 माइक्रोन की होनी चाहिए।

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टमाटर में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of bacterial leaf spot disease in tomato

इस रोग का जीवाणु ज्यादातर वातावरण में नमी और हलकी-हलकी बारिश होने पर या उच्च आद्रता के कारण सक्रिय होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले घेरे वाले छोटे, भूरे, पानी से भरे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियां झड़ने लगती हैं साथ हीं हरे फलों पर छोटे, पानी से भरे धब्बे बन जाते हैं और इन धब्बों का केंद्र अनियमित, हलके भूरे रंग का और पपड़ीदार सतह वाला हो जाता है।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए जैसे हीं रोग का प्रकोप दिखाई दे तब, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी) @ 20-24 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में  मिलाकर छिड़काव करें।

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गोभी वर्गीय फसल में डायमंड बैक मोथ के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms and control of Diamond back moth in cabbage crop

डायमंड मोथ नाम का यह कीट गोभी वर्गीय सब्जियों को सबसे अधिक नुकसान होता है, ख़ासकर फ़रवरी माह में देर से बुआई की जाने वाली फसल में यह अत्याधिक नुकसान पहुंचाता है।  

लक्षण: इस कीट के पतंगे रात के समय ज्यादा सक्रिय होते हैं और पत्तियों के निचली सतह पर मध्य नस के पास पीले रंग के अंडे देते हैं। इस कीट की सूंडी हानिकारक होती है जो शुरूआती अवस्था में हरे-पीले रंग की होती है और बाद में पत्तों के रंग जैसी हो जाती है। ये इल्लिया प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की निचली सतह को खुरचती हैं जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे बन जाते हैं। बाद की अवस्था में यही इल्लिया पत्तों में छेद कर नुकसान पहुंचाती हैं। 

नियंत्रण: डायमंड बैक मोथ के नियंत्रण एवं निगरानी के लिए, डीबीएम लूर @ 10 ट्रैप प्रति एकड़ के दर से खेत में लगाएं एवं प्रकोप दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एससी) @ 60-80 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी) @ 20 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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गोभी वर्गीय फसल में डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of downy mildew disease in cabbage crop

डाऊनी मिलड्यू रोग के लक्षण: इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जबकि ऊपरी सतह पर पीले भूरे रंग के धब्बे एवं रोयेंदार कवक की वृद्धि पाई जाती है, साथ ही तनों में काले से भूरे रंग के धब्बे या लकीरें दिखाई देते हैं। फूलगोभी का फूल अंदर और बाहर दोनों तरफ से काला पड़ जाता है। इस रोग के गंभीर रूप में पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए नोवैक्सिल @ (मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% डब्ल्यूपी) @ 60 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 5 मिली + नोवामैक्स (जिबरेलिक ऍसिड 0.001% L) @ 30 मिली, प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।  

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जानिए कैसे स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस फसलों के लिए है एक लाभकारी जीवाणु

How Pseudomonas fluorescens is a beneficial bacteria

स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस एक मित्र जीवाणु है जो जीवाणु एवं फफूंद से होने वाले रोग को  मिट्टी और हवा में फैलाने से रोकने में मदद करते हैं। साथ ही यह पौध वृद्धि कारक तत्वों का निर्माण करता है जिससे उपज में भी वृद्धि होती है। यह अंतरदेहि जैव नियंत्रण के रूप में काम करता है।

जब स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस का छिड़काव करते है तब ये कुछ द्वितीयक मेटाबोलाइट्स (चयापचय तत्वों) जैसे जिब्रेलिक, ऑक्सिस का निर्माण करते हैं जिससे पौधे में हरापन रहने में मदद होती है। साथ हीं यह पौधे में तनाव, रोग आदि के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

इसका उपयोग हम ज़मीन से या छिड़काव से साथ ही बीज प्रक्रिया के लिए कर सकते है। यह विभिन्न प्रकार की फसलों, फलों और सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग ऑफ़, उकठा, लाल सड़न, जीवाणु झुलसा आदि रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी है। 

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प्याज़ की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कमी के लक्षणों को पहचानें

Symptoms of Micronutrient Deficiency in Onions

प्याज़ की फसल में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी बेहद आवश्यक होते हैं, और इनकी कमी होने पर उत्पादन एवं उत्पादकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्याज़ में तीखापन, एलाइल प्रोपाइल डाईसल्फाइड नामक तत्व के कारण होता है इस तीखेपन को बढ़ाने व उत्पादन में वृद्धि के लिए, सल्फर की आवश्यकता होती है।

सल्फर: सभी पत्तियां नई तथा पुरानी एक समान पीली दिखाई देती है, साथ ही सल्फर (गंधक) की कमी वाले पौधे में पत्तियों का हरा रंग समाप्त हो जाता है।

मैंगनीज: पत्तियों की शिराएँ पीली पड़के जलने लगती हैं, पत्तियों का रंग फीका पड़ता है साथ ही वे ऊपर की ओर मुड़ने लगती है। फसल की वृद्धि रुक जाती है, प्याज़ के कंद देर से बनते हैं और कंद का ऊपरी भाग (गर्दन) मोटी हो जाती है।

कॉपर: प्याज की फसल में कंद के ऊपरी आवरण विकास के लिए फसल में कॉपर की उचित मात्रा होना आवश्यक है। कॉपर के कमी से नई पत्तियां नोक से सफ़ेद होती है और सर्पिले आकार में मुड़ जाती हैं, या पौधे के दाये भाग में मुड़ते है, साथ ही कंद का आवरण नरम होके हल्का पीला और पतला हो जाता है।

कैल्शियम: फसल में वृद्धि एवं भंडारण गुणवत्ता के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। इसके कमी से नई पत्तिया बिना पीली पड़े अचानक से सुखने लगती है साथ ही पत्तियाँ बहुत संकरी हो जाती है।

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भंडार गृह में संग्रहित गेहूँ की चूहों से कैसे करें सुरक्षा?

How to protect wheat crops from mice in the store
  • वर्तमान समय में गेहूँ की फसल की कटाई का कार्य प्रगति पर है।

  • कई किसान अपनी गेहूँ की फसल को बाजार के बजाय भंडारगृह में संग्रहित करके रख रहे हैं।

  • गेहूँ के भंडारण में सबसे बड़ी समस्या चूहों की होती है।

इसके बचाव के लिए भंडारण के पहले निम्न बातों का ध्यान रखें

  • गेहूँ की फसल को भंडार गृह में रखने के पहले भंडार गृह को अच्छे से साफ जरूर कर लें।

  • यदि भंडार गृह में पहले से ही चूहों का प्रकोप हो तो भण्डारण से पहले निवारण जरूर कर लें।

  • गेहूँ के भण्डारण के बाद यदि चूहों का प्रकोप दिखाई दे तो आटे या बेसन में चूहा मार दवा मिलाकर चूहों का नियंत्रण करें।

ऐसी ही फसल सुरक्षा के अन्य उपायों से संबंधित जानकारी के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख रोजाना पढ़ते रहें। इस लेख को अपने मित्रों से साझा करने के लिए नीचे दिए गए शेयर बटन पर क्लिक करें।

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धनिया की फसल में लौंगिया रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measure of stem gall disease in coriander

धनिया एक बहु उपयोगी मसाले वाली फसल है। धनिया के पत्ते एवं बीज दोनों उपयोगी होते हैं। इसकी फसल में लौंगिया रोग बहुत ही हानिकारक होता है, यह रोग प्रोटोमाइसीज मैक्रोस्पोरस नामक फफूंद से होता है।  

लौंगिया रोग के लक्षण: इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों और तनों पर फोड़े दिखाई देते हैं। फूल लगने के पहले ही इसके रोग-जनक फफूंद नरम एवं मुलायम शाखाओं पर आक्रमण कर उनका शीर्ष भाग मोड़ देते हैं और संक्रमित भाग सूज जाता है। साथ ही जमीन के निकट तने पर छोटी-छोटी ट्यूमर जैसी सूजन दिखने लगती है। शुरुआत में यह चमकदार दिखती है लेकिन बाद में फूटती है और कठोर हो जाती है। इसके बढ़ते संक्रमण में ये पिटिकाएँ (सूजन) तने के ऊपरी भाग पर भी बनती है। जब आक्रमण पुष्पक्रम में होता हैं तो बीज निर्माण काफी कम हो जाता है। 

नियंत्रण: लौंगिया रोग को कम करने के लिए इष्टतम नमी बनाए रखें, रोग ग्रस्त फसल अवशेष को जलाकर नष्ट करें। बुवाई करने से पहले बीज बाविस्टिन (कार्बेंडाजिम 50% डब्लूपी) @ 2 ग्राम/किग्रा. बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें। यदि इसके लक्षण खड़ी फसल में दिखाई दे तो नोवाकोन (हेक्सकोनाज़ोल 5% एससी)@ 400 मिली/एकड़ साथ ही मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस)@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से 150 से 200 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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