लहसुन की फसल के लिए ऐसे करें खेत की तैयारी

Prepare the field for garlic crop like this

लहसुन के खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली भुरभुरी मिट्टी, जिसमें ऑर्गेनिक कार्बन अधिक मात्रा में हो, जिसका pH स्तर 6-7 हो आदर्श मानी जाती है। अत्यधिक अम्लीय एवं भारी मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है। लहसुन की बुवाई का इष्टतम समय सितंबर से अक्टूबर तक होता है।

खेत की तैयारी के लिए पिछली फसल की कटाई के बाद खेत में एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत समतल बना लें। पौधे से पौधे की दूरी एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें। बीजदर 5-6 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से रखें।

उर्वरक और अन्य पोषक तत्व प्रबंधन के लिए यूरिया- 20 किलो + एसएसपी- 50 किलो + डीएपी- 30 किलो + एमओपी- 40 किलो + समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक (ट्राई-कोट मैक्स) 4 किग्रा + एनपीके कंसोर्टिया (टीबी 3) 3 किलो + जिंक सोल्यूब्लाज़िंग बैक्टेरिया (ताबा G) 4 किलो + फिपनोवा जीआर (FIPRONIL 0.6%)@ 4 किग्रा + सूक्ष्म पोषक मिश्रण (एग्रोमीन) 5 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट 5 किग्रा प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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अमरूद में उकठा रोग के लक्षणों को पहचाने व करें जल्द नियंत्रण

Symptoms and Prevention of Wilt Disease in Guava
  • उकठा रोग के कारण अमरूद की पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है साथ ही साथ इसकी शीर्ष शाखाओं की पत्तियाँ घुमावदार होकर मुड़ जाती हैं। पत्तियां पीली से लाल में बदल जाती हैं और समय से पहले झड़ जाती हैं। इसके कारण नई पत्तियों का निर्माण नहीं हो पाता है एवं टहनियाँ खाली हो जाती हैं और अंत में सूख जाती हैं।

  • इस रोग के नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 -10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति 5 किलो की दर से गोबर की खाद में मिलाकर, पौधा लगाते समय तथा 10 किलोग्राम प्रति गढ्ढा या पुराने पौधों में गुड़ाई कर के डालें।

  • ट्राइकोडर्मा विरिडी 5-10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधे पर छिड़काव करें।

  • अमरूद के पौधे के चारों ओर थाले बनाएं और उसमें कार्बेन्डाजिम 45% WP @ 2 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर हाइड्रॉक्साइड 50% WP @ 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर उससे थाले में ड्रेंचिंग करें।

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मक्के की फसल में बढ़ेगा मकड़ी का प्रकोप, जानें बचाव के उपाय

Spider Mites attack will increase in maize crop
  • मक्का की फसल के सभी चरणों में मकड़ी का प्रकोप हो सकता है। मकड़ी पत्तियों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।

  • इसके कारण मक्का के पत्ते समय से पहले सूख जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप पत्ती के ऊतक नष्ट हो जाते हैं, डंठल टूट जाते हैं और दाने भी सिकुड़ जाते हैं।

  • क्षतिग्रस्त पत्तियाँ ऊपरी सतह पर कुछ पीली और चिपकी हुई हो जाती हैं और निचली सतह पर जाल के कारण भूरे रंग की हो जाती हैं।

  • मक्के की फसल में मकड़ी के नियंत्रण के लिए ओमाइट (प्रोपराइट 57% EC) 400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

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मटर की खेती में बुआई से पहले ऐसे करें खेत की तैयारी

Prepare the field like this before sowing in pea farming

मटर के किसान मटर बीजों की बुआई के लिए खेत की तैयारी बुआई से 10 दिन पहले शुरू कर दें।

तैयारी के लिए निम्न खाद व उर्वरकों को मिलाकर मिट्टी में मिलाएं

  • खाद – 4 टन गोबर की खाद + 4 किलो कंपोस्टिंग बैक्टीरिया (स्पीड कम्पोस्ट) प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।

  • उर्वरक एवं अन्य पोषक तत्व – बोरोन के साथ एसएसपी दानेदार – 150 किग्रा + यूरिया 35 किग्रा + एमओपी 10 किग्रा + पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया (प्रो कॉम्बी मैक्स) 1 किलो + राइजोबियम (जैव वाटिका आर) 1 किलो + ट्राइकोडर्मा विरडी (राइज़ोकेयर) 500 ग्राम + समुद्री शैवाल, अमीनो, ह्यूमिक (ट्राई-कोट मैक्स) 4 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट 5 किलो प्रति एकड़।

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बुआई से पहले बीज उपचार करने के मिलते हैं कई फायदे

There are many benefits of treating seeds before sowing
  • बुवाई और रोपाई के दौरान बीमारियों और कीटों के दबाव से बीजों और पौध को बचाने के लिए बीज उपचार करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। ऐसे सैकड़ों रोगजनक और कीड़े हैं जो बीजों या अंकुरों को विकसित होने से पहले ही नुकसान पहुंचा सकते हैं या मार भी सकते हैं।

  • यह पूरे बढ़ते मौसम में फसल वृद्धि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और फसल के समय उपज के परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। यहाँ प्रणालीगत और गैर-प्रणालीगत दोनों प्रकार के पौधों की बीमारियों के प्रसार को रोकने में प्रभावी होती हैं।

  • इससे बीज सड़न और पौध झुलसा रोग से बचाव होता है। एक बार बीज बोने के बाद, बीज के चारों ओर सुरक्षात्मक कोटिंग, बीज-जनित और मिट्टी-जनित जीवों के खिलाफ बाधा के रूप में कार्य करती है।

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बीज उपचार की फकीरा विधि फसलों के लिए है बेहद फायदेमंद

FIR method of seed treatment is very beneficial for crops

फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीजों की बुआई से पहले “फ.की.रा” विधि से बीज उपचार करना फायदे का सौदा हो सकता है। फ.की.रा यानी फफूंदनाशक, कीटनाशक और राइजोबियम। इन तीनों की मदद से बीज उपचार करने से बीज को मिलती है तीन लेयर की सुरक्षा।

बीज उपचार के लिए अनुशंसित कवकनाशी-कीटनाशक-राइजोबियम (फ.की.रा) अनुक्रम का पालन किया जाना चाहिए। बीज जनित और मिट्टी जनित रोगों जैसे उकठा और जड़ सड़न आदि के प्रकोप को सीमित करने के लिए कवकनाशी से बीज उपचार महत्वपूर्ण है। मिट्टी में कीड़ों के प्रबंधन के लिए, कीटनाशकों से बीज उपचार करें।
बेहतर जड़ नोड्यूलेशन के लिए राइजोबियम उपभेदों के साथ बीज उपचार की सिफारिश की जाती है।

बीज उपचार के बाद बुआई से पहले बीज को छाया में सूखने दें। उपचारित बीजों को सीधी धूप में सुखाने से बचें। अधिमानतः बीज उपचार शाम के समय किया जाना चाहिए और बुआई सुबह के समय की जानी चाहिए।

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प्याज की बुआई के तीन तरीके, जानें कौन सा तरीका है बेस्ट?

Three methods of sowing onion know which method is best?

वर्तमान में कई किसान प्याज की खेती की प्लानिंग कर रहे हैं। क्या आपको पता है की प्याज की खेती में बुआई का काम तीन तरीके से किया जा सकता है। आइये बारी बारी से जानते हैं इन तीनों विधियों के बारे में मुख्य जानकारी।

  • सीधे बीज डालकर: प्याज बुआई की इस विधि का उपयोग बलुआही मिट्टी (सैंडी साइल) में किया जाता है। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 4-5 किलो प्रति एकड़ रखी जाती है।

  • गांठों से प्याज लगाना: बुआई की इस विधि में प्याज को पहले से ही अंकुरित कर के तैयार कर लिया जाता है। छोटे प्याज के गांठों को लगाया जाता है। प्याज की 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से गाँठ लगते हैं।

  • बीज से पौध तैयार कर खेत में लगाना: प्याज की खेती की यह सबसे ज्यादा अपनाई जाने वाली प्रचलित विधि है। इसके द्वारा पहले प्याज के बीज को नर्सरी में बोते हैं और फिर इसके पौध को मुख्य खेत में रोपा जाता है।

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लोबिया की फसल में जड़ सड़न व डम्पिंग ऑफ के प्रकोप को ऐसे करें नियंत्रित

Root rot and damping off of cowpea crop
  • रोगों के प्रकोप की वजह से अंकुर छोटे रह जाते हैं और इन अंकुरों में से कुछ हाइपोकोटिल क्षेत्र में सड़ जाते हैं एवं नीचे की ओर फैल जाते हैं।

  • इससे जड़ें भी सड़ने लगती हैं और पौधे सूखने लगते हैं।

  • परिपक्व पौधों के निचले तने पर भूरे-काले धंसे हुए घाव दिखाई देते हैं, और जड़ों में छोटे काले स्क्लेरोटिया जमा हो जाते हैं।

  • इसके कारण कभी-कभी तने का मेखला अनुदैर्ध्य रूप से टूट भी सकता है।

  • इसके प्रकोप से बचने के लिए 2-3 वर्षों के लिए गैर-मेज़बान फसलों के साथ फसल चक्र को अपनाएँ।

  • नियंत्रण के लिए बुआई से पहले करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 64%) @ 3 ग्राम/किग्रा बीज के साथ बीज उपचार करें।

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तोरई की फसल में लीफ माइनर प्रकोप का ऐसे करें निदान

Attack of leaf miner in Ridge gourd
  • लीफ माइनर का वयस्क रूप एक हलके पीले रंग की मक्खी होती है जो पत्तियों पर अंडे देती है।

  • इससे पत्तियों पर सफेद टेढ़ी मेढ़ी धारियां बन जाती है तथा अधिक प्रकोप होने पर पत्तियाँ सूख कर गिर जाती हैं।

  • इस कीट से प्रभावित पौधों पर फलन की समस्या देखने को मिलती है जिससे उपज में कमी आ जाती है।

  • इससे बचाव के लिए खरपतवार को खेत और उसके आसपास से हटाएँ।

  • इसकी रोकथाम हेतु क्लोरीडा (इमिडाक्लोप्रिड 17.80% SL) @ 40 मिली/एकड़ या बेनेविया (सायनट्रानिलिप्रोल 10.26%) 360 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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सोयाबीन के फसल की कटाई के बाद खेत में करें डीकम्पोज़र का उपयोग

Use of Decomposers after soybean harvesting
  • सोयाबीन की फसल की कटाई के बाद उसके फसल अवशेष बहुत अधिक मात्रा में खेत में रह जाते हैं। 

  • इन अवशेषों के कारण लगायी जाने वाली अगली फसल में इन अवशेषों के कारण कवक जनित एवं जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप बहुत अधिक मात्रा में होता है।

  • इसी कारण लगायी गई नई फसल में जड़ गलन, तना गलन आदि रोग हो जाते हैं।

  • इस प्रकार के कवक एवं जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप नयी फसल में ना हो इसके  लिए सोयाबीन के फसल की कटाई के बाद खाली खेत में या फसल की बुआई के बाद दोनों ही स्थिति में डीकम्पोज़र का उपयोग करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इसके लिए यदि किसान तरल द्रव्य का उपयोग करना चाहते हैं तो 1 लीटर/एकड़ की दर से डीकम्पोज़र का उपयोग छिड़काव के रूप में कर सकते हैं।

  • इसके अलावा ग्रामोफ़ोन किसानों को स्पीड कपोस्ट के नाम से डीकम्पोज़र उपलब्ध करवा रहा है जिसको 4 किलो/एकड़ की मात्रा में 10 किलो यूरिया मिलाकर, खेत की 50-100 किलो मिट्टी में मिलाकर खेत में भुरकाव करें।

  • जब डीकम्पोज़र का उपयोग किया जा रहा हो तो ध्यान रखें की खेत में पर्याप्त नमी हो।

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