Nutrient Management in Sponge Gourd

गिल्की में पोषक तत्व प्रबंधन:-

  • खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के दर से गोबर की खाद का प्रयोग करे|
  • मध्य भारत में प्राय: 75 कि.ग्रा. यूरिया, 200 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट और 80 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ़ पोटाश को अंतिम जुताई के समय डाले|
  • अन्य बचे हुए 75 कि.ग्रा. यूरिया की आधी मात्रा को 8-10 पत्ति अवस्था में आधी मात्रा को फूल आने की अवस्था में डाले|

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Nursery bed preparation for Cauliflower

  • बीजो की बुआई क्यारियों में की जाती है| प्रायः 4-6 सप्ताह पुरानी तैयार हुई पौधो को रोपित किया जाता है|
  • क्यारियों की उचाई 10 से 15 सेंटीमीटर होना तथा आकार 3*6 मीटर होना है|
  • दो क्यारियों के बीच की दुरी 70 सेंटीमीटर होती है| जिससे अंतर्सस्य क्रियाये आसानी से की जा सके|
  • नर्सरी क्यारियों की सतह भुरभुरी एवं समतल होनी चाहियें|
  • नर्सरी क्यारियों का निर्माण करते समय 8-10 किलोग्राम गोबर की खाद का प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहियें|
  • भारी भूमि में ऊची क्यारियों का निर्माण करके जल भराव की समस्या को दूर किया जा सकता है|
  • अद्रगलन बीमारी व्दारा पौध को होने वाली हानि से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 50% WP का 15-20 ग्राम /10 लि. पानी में घोल बनाकर अच्छा तरह से भूमि में मिलाना चाहियें|

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Major seed quality characters

फसलों के अच्छे बीजों के गुण एवं विशेषताएं:- अच्छा बीज वह होता हैं जिसकी अंकुरण क्षमता अधिक हो, तथा बीमारी, कीट, खरपतवार के बीज व अन्य फसलों के बीजों से मुक्त हो। किसान अच्छे बीजों की बुवाई करके पैदावार व अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। जबकि खराब गुणों वाले बीजों को बोने से खेती के अन्य कार्य जैसे खाद, पानी, खेत की तैयारी आदि किसान का खर्च व मेहनत बेकार हो जाते हैं। फसलों के अच्छे बीजों के गुण एवं विशेषताओं ये निम्न प्रकार के होते हैं:-

  • बीज की भौतिक शुद्धता
  • बीज की आनुवंशिक शुद्धता
  • बीजों के गुण, आकार, आकृति एवं रंग
  • बीजों में नमी की मात्रा
  • बीज की परिपक्वता
  • बीजों की अंकुरण क्षमता
  • बीजों की जीवन क्षमता

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Intercropping in vegetables

सब्जियो में अंतरसस्य फसले:-सब्जियो की फसले कम अवधि एवं अधिक उत्पादन देती है जिसके कारण इन्हें मिश्रित अंतरवर्ती व चक्रीय क्रम में अन्य फसले के साथ भी उगाया जाता है |अंतरवर्ती या मिश्रित फसल लेने के लिए, सब्जियों की विकास दर, जड़ो का वितरण, पोषक प्रकृति, कीट व रोगों के आक्रमण, बाज़ार में मांग इत्यादि पर विचार करना चाहियें| फसल पद्धति स्थायी नहीं होना चाहियें  एवं मोसम, कीट व रोगों के आक्रमण, बाजार- भाव व मांग तथा उत्पादक के आवश्यकतानुसार बदलना चाहिये|

क्र.    सब्जी का नाम       अंतरसस्य फसले

1.)    टमाटर       -केला, नीम्बू, कपास, भिन्डी, गेंदा, तुराई, गिलकी, मक्का

2.)    बैगन        -गाजर, फूलगोभी, मेथी, पत्तागोभी, हल्दी, मक्का

3.)    मिर्च         -आलू, शलजम, बरबटी

4.)    पत्तागोभी     -नीम्बू, गाजर, मुली, बैगन

5.)    फूलगोभी      -पालक, बैगन, मक्का, गांठगोभी

6.)    प्याज        -गाजर, मुली, धनियाँ, शलजम

7.)    लहसुन       -चुकंदर, मुली, गाजर

8.)    मटर         -बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अमरुद

9.)    फरासबीन     -बैगन, मिर्च, गेंदा, मक्का

10.)   बरबटी       -फरासबीन, धनियाँ, मक्का, बाजरा, केला

11.)   भिन्डी        -धनियाँ, ग्वारफली

12.)   लौकी        -बरबटी, कुंदरू, चौलाई, लम्बी ककड़ी

13.)   तुरई         -पालक, टमाटर

14.)   ककड़ी        -बरबटी, पालक

15.)   करेला        -लोबिया, बरबटी, पर्सनीप, सलाद

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बजट सत्र 2018-19 में कृषि क्षेत्र के मुख्य बिंदु

सरकार ने आगामी खरीद की फसलों को उत्पादन लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना कीमत पर लेने का फैसला ले लिया है। किसानों को लागत से डेढ़ गुना कीमत मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए बाजार मूल्य और एमएसपी में अंतर की रकम सरकार वहन करेगी।

-86 प्रतिशत से ज्यादा किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। इनके लिए मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए सरकार इन्हें ध्यान -रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेगी।

-ऐसे पौधे जिनका दवाइयों में इस्तेमाल होता हो उनका भी सरकार उत्पादन बढ़ाने के लिए बढ़ावा देगी।
-जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए सरकार पूरा प्रयास कर रही है।
-टमाटर, आलू, प्याज का इस्तेमाल मौसम के आधार पर होता है, सालभर। ऑपरेश ग्रीन लॉन्च की जाएगी, ऑपरेशन फ्लड की तौर पर। 500 करोड़ रुपये इसके लिए रखे जाएंगे।
-क्रेडिड कार्ड मछुआरों और पशुपालकों को भी मिलेगा।
-42 मेगा फूड पार्क बनेगा।
-मछली पालन और पशुपालन के लिए 10 हजार करोड़ रुपये रखे जा रहे हैं।
-किसान कृषि लोन की सुविधा से वंचित रह जाते हैं, ये बंटाईदार होते हैं, जिनको बाजार से कर्ज लेना पड़ता है। नीति आयोग ऐसी व्यवस्था बना रहा है कि ऐसे किसानों को कर्ज लेने में सुविधा मिले।

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Management of Mosaic Virus in chilli

लक्षण :-

  • रोग का मुख्य लक्षण पत्तियों पर गहरे हरे और पीले रंग के धब्बे का प्रकट होना हे|
  • हलके गड्डे और फफोले भी दिखाई पड़ते है|
  • कभी-कभी पत्ते का आकार अति सुक्ष्म सूत्रकार हो जाती है|
  • रोगी पोधो में फूल और फल कम लगते है|
  • फल विकृत और खुरदुरे होते|

रोकथाम :-

  • ग्रसित पोधों को निकाल कर नष्ट करे|
  • प्रतिरोधक किस्मो जेसे पूसा ज्वाला, पन्त सी-1, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल इत्यादी को लगाये|
  • डायमिथोएट का 2 मिली/लीटर पानी में घोल बनाकर उचित अन्तराल पर छिडकाव कर कारक को रोके|

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Powdery mildew in Okra

लक्षण:-

  • इस बीमारी के लक्षण प्राय: पौधों की पुरानी पत्तियों एवं तने पर दिखाई देते है|
  • वातावरण में अत्यधिक आर्द्रता इस बीमारी के अनुकूलन को बढ़ाता है |
  • इस बीमारी में पत्तियों और तनों पर सफ़ेद रंग के छोटे-छोटे एवं गोलाकार धब्बो का निर्माण होता है|
  • अत्यधिक ग्रसित पत्तियां पीले रंग की होकर सुख कर भूरे रंग की हो जाती है |
  • बाद में पत्तियां सड़ने लगती है |

नियंत्रण:- घुलनशील सल्फर 80% का 50 ग्राम प्रति 15 ली पानी में घोल बना कर 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करे|

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Control of Fruit fly in Bitter Gourd

पहचान:-

  • अंडे 1.0 से 1.5 मिमी., लम्बे, बेलनाकार आकार के सफ़ेद के रंग एवं किनारे पर पतले होते है|
  • पूर्ण विकसित लार्वा 5 से 10 मिमी. लम्बे, बेलनाकार सामने की तरफ पतले, एवं पीछे का हिस्सा भोथरा एवं सफ़ेद रंग का होता है|
  • प्यूपा 5 से 8 सेमी. लंबा. नलीनुमा आकार का एवं भूरे रंग लिए हुए होता है|
  • वयस्क मक्खी का शरीर लाल भूरे रंग का, पंख पारदर्शक एवं चमकदार जिन पर पीले भूरे रंग की धारियां होती है|
  • वयस्क मक्खी 4 से 5 मिमी. लम्बी होती है| वयस्क मादा मक्खी अपने पंखो को 14 से 16 मिमी. एवं नर मक्खी अपने पंखों को 11 से 13 मिमी. तक फैला सकती है|

हानि:-

  • मेगट (लार्वा) फलों में छेद करने के बाद उनका रस चूसते है|
  • इनसें ग्रसित फल खराब होकर गिर जाते है|
  • मक्खी प्राय: कोमल फलों पर अंडे देती है|
  • मक्खी अपने अंडे देने वाले भाग से फलों में छेद करके उन्है हानि पहुचाती है| इन छेदों से फलों का रस निकलता हुआ दिखाई देता है|
  • अन्तत: छेद ग्रसित फल सड़ने लगते है|
  • मेगट फलों में छेद कर गुदा एवं मुलायम बीजों को खाते है, जिसके कारण फल परिपक्व होने के पहले ही गिर जाते है|

नियंत्रण:-

  • ग्रसित फलों को इकटठा करके नष्ट कर देना चाहिए|
  • अंडे देने वाली मक्खी की रोथाम के लिए खेत में फेरोमेन ट्रेप लगाना चाहिये, इस फेरोमेन ट्रेप में मक्खी को मारने के लिए 1% मिथाईल इजीनोल या सिंत्रोनेला तेल या एसीटिक अम्ल या लेक्टिक अम्ल का घोल बनाकर रखा जाता है|
  • परागण की क्रिया के तुरंत बाद तैयार होने वाले फलों को पोलीथीन या पेपर से ढक देना चाहिए|
  • इन मक्खियों को नियंत्रण करने के लिए करेले के खेत में कतारों के बीच में मक्के के पौधों को लगाना चाहिए, इन पौधों की उचाई ज्यादा होने से मक्खी पत्तो के नीचे अंडे देती है|
  • जिन क्षेत्रों में फल माखी का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है, वहां पर कार्बारिल 10% चूर्ण खेत में मिलाये|
  • डायक्लोरोवास कीटनाशक का 3 मिली. प्रति ली. पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करके भूमि के अन्दर की मक्खी की सुप्तावस्था को नष्ट करना चाहिए|

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Management of Anthracnose in Frenchbean

लक्षण:-

  • फरासबीन की पत्तियों, तने व फल्लियों इस रोग के संक्रमण से प्रभावित होती है|
  • छोटे-छोटे लाल भूरे रंग के धब्बे फल्लियों पर बनते है व शीघ्रता से बढतें है|
  • आद्र मौसम में इन धब्बों पर गुलाबी रंग के जीवाणु पनपते है|
  • पत्तियों एवं तनों पर भी काले जलसिक्त घाव बनते है|
  • पर्ण वृन्तों एवं पत्तियों की शिराओं पर भी संक्रमण होता है|

प्रबंधन:-

  • रोग रहित प्रमाणित बीजों का उपयोग करें|
  • रोग ग्रसित खेत में कम से कम दो वर्ष तक फरासबीन न आये|
  • रोग ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट करें|
  • कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम/ किलो बीज से बीजोपचार करें|
  • मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति ली. पानी का स्प्रे करें या क्लोरोथायोनील 2 ग्राम प्रति ली पानी में घोल बनाकर पत्तियों निकलने से फल्लियों पकने तक प्रति सप्ताह छिडकाव करें|

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Management of Little Leaf in Brinjal

बैगन का छोटी पत्ति रोग :-

लक्षण:-

  • इस रोग से संक्रमित पौधे की पत्तियाँ प्रारम्भिक अवस्था में हल्के पीले रंग की हो जाती है |
  • पत्तियाँ आकार में छोटी होकर विकृत हो जाता है|
  • रोग ग्रसित पौधों में स्वस्थ पौधों की अपेक्षा अधिक शाखायें, जड़ें एवं पत्तियाँ निकलती है|
  • पत्तियों के पर्णवृंत एवं इंटरनोड छोटे हो जाते है जिसके कारण पौधा झाडीनुमा दिखाई देता है|
  • पौधे पर पुष्प नहीं बनते है यदि बनते भी है तो हरे रहते है या बेरंग हो जाते है|
  • इस रोग से ग्रसित पौधे पर फल नहीं लगते है|

प्रबंधन:-

  • ट्रेप फसल लगाए|
  • ग्रसित पौधों की निकल कर नष्ट करें|
  • फसल ऐसे समय लगाए जिससे की लीफ होपर कीट नहीं आ सके|
  • रोग वाहक कीट लीफ होपर के नियंत्रण के लिए डायमिथोएट 2 मिली. प्रति ली पानी का स्प्रे करें|

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