मटर की फसल में उकठा रोग का प्रबंधन

Management of wilt in pea
  • मटर के विकसित कोपल एवं पत्तियों के किनारों का मुड़ जाना इस रोग का प्रथम एवं मुख्य लक्षण है।
  • इसके कारण पौधों के ऊपर के हिस्से पीले हो जाते हैं, कलिका की वृद्धि रुक जाती है, तने एवं ऊपर की पत्तियां अधिक कठोर, जड़ें भंगुर व नीचे की पत्तियां पीली होकर झड़ जाती हैं।
  • पूरा पौधा मुरझा जाता है व तना नीचे की और सिकुड़ जाता है। आखिर में गोल घेरे में फसल सूख जाती है।
  • इसके रासायनिक उपचार हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • इसके जैविक उपचार के लिए मिट्टी उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिड@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
Share

मौसम की मार से परेशान किसानों को म.प्र. सरकार देगी 4000 करोड़ का मुआवजा

MP Government will give compensation of 4000 crores to farmers distressed due to weather

इस साल भारी बारिश की वजह से बाढ़ आने और कीट-रोग के प्रकोप के कारण फ़सलों को काफी नुकसान हुआ है। फसल को हुए नुकसान के आकलन हेतु केंद्र सरकार के ने एक टीम को भेजा था। मध्यप्रदेश में आकलन का काम पूर्ण हो चुका है अब सिर्फ किसानों को सहायता राशि मिलने का इंतजार है।

इस विषय पर सीएम शिवराज चौहान ने कहा है कि “प्रदेश में बाढ़ एवं कीट-व्याधि से प्रभावित हुए किसानों को हर हालत में पूरी सहायता राशि उपलब्ध कराई जाएगी।” ग़ौरतलब है की प्रदेश में बाढ़ एवं कीट व्याधि से लगभग 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फसलें प्रभावित हुई हैं, जिनके लिए लगभग 4,000 करोड़ रुपए का मुआवजा संभावित है। गत वर्ष प्रदेश में लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें खराब हुईं थी तथा किसानों को 2000 करोड़ रुपए का मुआवजा वितरित किया गया था।

स्रोत: किसान समाधान

Share

पॉलीहाउस (पौधा घर) क्या होता है, जानें इसके लाभ

polyhouse
  • पॉलीहाउस वह ढाँचा है, जिसकी ऊपरी छत पारदर्शी या पारदर्शक सामग्री से ढकी रहती है।
  • इसमें उगाई जाने वाली फसल को नियंत्रित वातावरण में इस तरह उगाया जाता है कि, इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति आसानी से अंतरशस्य क्रियाएँ कर सके।
  • पॉलीहाउस में उगाई जाने वाली सब्जीयों की अनुकूलता के आधार पर नियंत्रित वातावरण प्रदान करके चार से पाँच सब्जीयों को वर्ष भर में आसानी से उगाया जा सकता है।
  • इसके द्धारा प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते हैं।
  • पॉलीहाउस में पानी, उर्वरकों, बीजों एवं रसायनिक दवाईयों का उपयोंग अधिक बेहतर ढंग से किया जा सकता हैं।
  • इसमें कीडे़ एवं बीमारियों का नियंत्रण भी आसानी से किया जा सकता हैं।
  • पॉलीहाउस में बीजों के अंकुरण का प्रतिशत अधिक होता है।
  • जब पॉलीहाउस में सब्जीयों को उगाया नहीं जाता है इस दशा में पॉलीहाउस द्धारा शोषित की गई उष्मा का उपयोग उत्पादकों को सुखाने एवं अन्य संबंधित कार्यों को करने में किया जाता है।
Share

ग्रामोफ़ोन एप की डिजिटल सलाहों से खंडवा के किसान की आय में हुई वृद्धि

Digital Advice of Gramophone App increased income of Khandwa farmer

पूरी दुनिया धीरे धीरे डिजिटलाइज होती जा रही है, आज हर जानकारी मोबाइल के एक टच पर कहीं भी कोई भी प्राप्त कर सकता है। डिजिटलीकरण के इस जमाने में भारतीय किसान के लिए भी बहुत सारी संभावनाएं हैं। ग्रामोफ़ोन इन्हीं संभावनाओं के दरवाज़े किसानों के लिए खोल रहा है। अब किसानों को कृषि संबंधित हर जानकारी ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप के माध्यम से स्मार्ट फ़ोन के एक टच पर मिल रही है। खंडवा के सोयाबीन किसान सागर सिंह सोलंकी भी ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप की मदद से स्मार्ट खेती कर रहे हैं।

ग्रामोफ़ोन एप के इस्तेमाल ने सागर सिंह सोलंकी को ना सिर्फ स्मार्ट किसान बनाया बल्कि कृषि लागत में कमी करते हुए आय में ही अच्छी वृद्धि दिलाई। एप के इस्तेमाल से उनकी कृषि लागत 21% तक घटा गई और आय में 25% की वृद्धि हो गई। इसके अलावा उनका कुल मुनाफ़ा भी पहले की तुलना में 37% तक बढ़ गया।

सागर सिंह सोलंकी की ही तरह लाखों किसान ग्रामोफ़ोन एप का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसका लाभ ले रहे हैं। अगर आप भी इनकी तरह एक स्मार्ट किसान बनना चाहते हैं तो आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन करें।

Share

मिट्टी उपचार के द्वारा उकठा रोग का प्रबंधन कैसे करें

How to manage wilt disease with help of soil treatment
  • यह एक जीवाणु एवं कवक जनित रोग है जो फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं।
  • इसे अंग्रेजी में बैक्टीरियल विल्ट कहते हैं और इसके संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
  • इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं, पौधा सूखने लगता है और आखिर में मर जाता है।
  • इसके कारण फसल गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
  • इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
  • जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 5 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 5 ग्राम/ किलो बीज़ की दर से बीज़ उपचार करें।
  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
Share

मध्य प्रदेश के किसान इस तारिख से बेच सकेंगे MSP पर धान, पंजीयन प्रक्रिया जारी है

Farmers of MP will be able to sell paddy on MSP from this date, registration process is going on

खरीफ सीजन अपने आखिरी चरण में है और धान जैसी फ़सलों की कटाई शुरू हो चुकी है। ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान की खरीदी की तारीख़ निर्धारित कर दी है। धान की खरीदी अगले महीने यानी नवंबर की 25 तारीख़ से शुरू होगी।

बता दें की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की उपज बेचने के लिए पंजीयन प्रक्रिया पहले ही आरम्भ हो चुकी है और इसकी आखिरी तारीख़ 15 अक्टूबर है। बता दें की धान की खरीद 25 नवंबर से शुरू होगी और एक माह से अधिक समय तक चलेगी।

स्रोत: नई दुनिया

Share

गोभी की फसल में डायमंड बैक मोथ की समस्या का नियंत्रण कैसे करें?

How to control diamondback moth in cabbage crop
  • डायमण्ड बैक मोथ के अंडे सफ़ेद-पीले रंग के होते हैं।
  • इसकी इल्लियाँ 7-12 मिमी लम्बी, व इसके पूरे शरीर पर बारीक रोयें होते हैं।
  • इसके वयस्क 8-10 मिमी लम्बे मटमैले भूरे रंग के व हल्के गेहुएं रंग के होते है। इसके अलावा वयस्क की पीठ पर चमकीले धब्बे भी होते हैं।
  • वयस्क मादा पत्तियों पर एक एक कर या समूह में अंडे देती है।
  • छोटी पतली हरी इल्लियाँ अण्डों से निकलने के बाद पत्तियों की बाहरी परत को खाकर छेद कर देती हैं।
  • अधिक आक्रमण होने पर पत्तियां पूरी तरह से ढांचानुमा आकार में रह जाती हैं।
  • इसके नियंत्रण के लिए लैम्डा साइहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC@ 80 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% +इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक नियंत्रण के रूप में हर छिड़काव के साथ बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
Share

आलू की फसल में मिट्टी उपचार के फ़ायदे

Benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुआई के पहले मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
  • मिट्टी की उर्वरता, पोषक तत्व प्रबंधन, फसल की अच्छी उपज एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत सारे महत्वपूर्ण कारक होते हैं जो फसल की उपज और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
  • रबी के मौसम में आलू की बुआई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीट का बहुत अधिक प्रकोप होता है।
  • कवक जनित रोगों एवं कीटों के निवारण के लिए कवकनाशी एवं कीटनाशी से मिट्टी उपचार किया जाता है।
  • कवकनाशी एवं कीटनाशी से मिट्टी उपचार करने से आलू की फसल में कन्द गलन जैसे रोग नहीं लगते हैं।
  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव होता है।
  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होते हैं। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।
  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।
Share

मंडी भाव: मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों में क्या है आलू, प्याज, टमाटर, गेहूं के भाव?

Mandi Bhaw

इंदौर के गौतमपुरा मंडी में प्याज़ का भाव 850 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है और खंडवा के कृषि उपज मंडी समिति में टमाटर, प्याज, भिंडी तथा लौकी का भाव क्रमशः 1400, 500, 1200 और 700 रूपये प्रति क्विंटल है।

इसके अलावा सागर जिले के देवरी मंडी में आलू और प्याज की कीमत क्रमशः 2700 और 1500 रूपये प्रति क्विंटल है। दमोह मंडी की बात करें तो यहाँ टमाटर 3500 रूपये और आलू 2500 रूपये प्रति क्विंटल है।

बात गेहूं की करें तो फिलहाल गौतमपुरा मंडी में इसका भाव 1900 रूपये प्रति क्विंटल है। वहीं महू में गेहूं का भाव 1810 रूपये प्रति क्विंटल है। सांवेर और इंदौर मंडी में गेहूं की कीमत क्रमशः 1656 और 1519 रूपये प्रति क्विंटल है।

स्रोत: किसान समाधान

Share

आलू की फसल में अगेती अंगमारी रोग का नियंत्रण

Control of early blight disease in potato crop
  • यह रोग आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण लगता है।
  • यह रोग कंद निर्माण से पहले ही लग सकता है नीचे वाली पत्तियों पर सबसे पहले प्रकोप होता है जहाँ से रोग बाद में ऊपर कि ओर बढ़ता है।
  • पत्तियों पर गोल अंडाकार या छल्ले युक्त धब्बे बन जाते हैं जो भूरे रंग के होते हैं।
  • इन धब्बों का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है जो बाद में पूरी पत्ती को ढक लेता है और आखिर में रोगी पौधा मर जाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए मैनकोज़ेब 75% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share