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किसान भाइयों अधिक गर्मी एवं मौसम परिवर्तन के कारण करेले की फसल में वायरस फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
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करेले की फसल पर मुख्यतः मोज़ेक वायरस का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है।
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इस वायरस का वाहक सफेद मक्खी है।
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यह पत्तियों से रस चूस कर एक पौधे से दूसरे पौधे को संक्रमित करती है।
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इस रोग के लक्षण पौधे की सभी अवस्थाओं में देखे जाते हैं। इसके कारण पत्तियों की शिरायें पीली पड़ जाती हैं एवं पत्तियों पर जाल जैसी संरचना बन जाती है।
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इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है। फल पीले, छोटे एवं असामान्य आकार के बनते हैं।
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रासायनिक प्रबधन: इस के निवारण के लिए नोवासीटा (एसिटामिप्रीड 20% एसपी) @ 100 ग्राम या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यूपी) @ 250 ग्राम या प्रुडेंस (पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% ईसी) @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक प्रबधन: जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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