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इस कीट की सुंडी अवस्था ही धान की फसल में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।
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अंडे से निकलने के बाद सुंडियां मध्य कलिकाओं की पत्तियों को छेदकर तने में घुस जाती हैं। जिसके बाद ये सुंडियां तने को अंदर ही अंदर खाती हुई गांठ तक पहुंच जाती हैं।
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पौधों की बढ़वार की अवस्था में इस कीट का प्रकोप होने पर बालियाँ नहीं निकलती हैं।
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वहीं बाली निकलने वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियाँ सूखकर सफेद हो जाती हैं, जिस वजह से दाने नहीं बनते हैं।
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इसके नियंत्रण के लिए सुपर- डी (क्लोरोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी) @ 500 मिली या प्रोफेनोवा (साइपरमैथिन 4% + प्रोफेनोफॉस 40% ईसी) @ 400 मिली एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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कैलडन (कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 4% जीआर) @ 8 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में उपयोग करें।
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जैविक नियंत्रण के लिए बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें l
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