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सोयाबीन की फसल में होने वाले रस्ट रोग को गेरुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के प्रकोप की संभावना, लगातार वर्षा होने एवं तापमान कम (22 से 27 डिग्री सेल्सियस) तथा अधिक नमी (आपेक्षिक आर्द्रता 80-90 प्रतिशत) होने पर बढ़ होती है। रात या सुबह के समय कोहरा रहने पर रोग की तीव्रता बढ़ जाती है। जैसे जैसे तापमान में गिरावट आती है वैसे वैसे इस रोग का प्रकोप बढ़ता है।
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इसके कारन पत्तियों पर पीले रंग का पाउडर जमा हो जाता है जिसके कारन पत्तियो की भोजन बनाने की प्रक्रिया बहुत प्रभावित होती है। इसके कारण बाद में पत्तियां सूखने लगती हैं और उत्पादन बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाता है।
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इस रोग के नियंत्रण के लिए, हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC @ 200 मिली/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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रोग प्रतिरोधक किस्में इंदिरा सोया-9, डी.एस.बी. 23-2 डी.एस.बी. 21 तथा फुले कल्याणी आदि की बुवाई करें। रोग ग्रस्त पौधे को उखाड़ कर पॉलीथिन में रखकर खेत के बाहर गड्ढे में गाड़ दें या नष्ट करें।
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