यह रोग फाइटोपथोरा नमक कवक के कारण फैलता है और इससे आलू की फसल को काफी क्षति पहुँचती है।
यह रोग 5 दिनों के अंदर पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है।
इस रोग से पत्तियों के किनारों पर धब्बे बनना प्रारंभ होते हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर यह धब्बे फैल जाते हैं। इसके प्रभाव से शाखाएं एवं तने भी ग्रसित हो जाते हैं और बाद में कंद पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
इसके कारण पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं।
पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है। इस रोग के अनुकूल मौसम होने पर पूरा खेत नष्ट हो जाता है।
मेटालेक्सिल 30% FS @ 10 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर उसमें बीजों को डूबा कर उपचारित करने के बाद छाया में सुखाकर बुआई करनी चाहिए।
आलू की फसल में कवकनाशी जैसे क्लोरोथलोनील 75% WP@ 250 ग्राम/एकड़ या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP@ 250 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।