पेट के परजीवियों से प्रभावित पशु प्रायः बेचैन रहते हैं। पर्याप्त दाना-पानी खिलाने पर भी उनका समुचित शारीरिक विकास नहीं हो पाता और उसकी उत्पादकता कम हो जाती है।
प्रभावित पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाते हैं। उनका वजन कम हो जाता है और हड्डियाँ दिखने लगती हैं।
पशु का पेट बड़ा हो जाता है और दस्त की समस्या भी होती है जिसमें कभी कभी रक्त और कीड़े भी दिखते हैं।
प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है और बाल खुरदरे दिखते हैं।
कई बार अत्यधिक चरने के कारण घास एवं खरपतवारों की लम्बाई काफी कम हो जाती है जिसके कारण उनकी जड़ों में बसने वाले परजीवी जानवरों के पेट में पहुँच जाते हैं।
परजीवी पशुओं के पेट में रहकर उनका भोजन और रक्त चूसते रहते हैं जिनके कारण पशुओं में दुर्बलता आ जाती है।