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इस रोग में मिर्च के फल के आधार पर एक गोलाकार छेद पाया जाता है जिसकी वजह से फल और फूल परिपक्व होने से पहले ही गिर जाते हैं।
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इस रोग में सामन्यतः इल्ली की लार्वा फलों के अंदर ही विकसित होती है। फिर इल्ली छोटी अवस्था में फलों पर एक छेद बनाकर नए विकसित फल को खाती हैं।
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जब फल परिपक्व हो जाते हैं तब यह बीजों को खाना पसंद करती हैं। इस दौरान इल्ली अपने सिर फल के अंदर रख कर बीजों को खाती हैं। इस दौरान इल्ली का बाकी शरीर फल के बाहर रहता है।
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इसके वयस्क कीट के नियंत्रण के लिए फेरोमोन ट्रैप @ 3-4 प्रति एकड़ का उपयोग करें।
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इसकी रोकथाम हेतु पहले स्प्रे में प्रोफेनोवा (प्रोफेनोफॉस 50% EC) @ 300 मिली/एकड़ + ट्राईसेल (क्लोरोपायरीफॉस 20% EC) @ 500 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
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वहीं दूसरे स्प्रे में प्रोफेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC) @ 400 मिली/एकड़ + इमानोवा (इमामैटिन बेंजोएट 5% SG) @ 80-100 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
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तीसरे स्प्रे में इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG) @ 80-100 ग्राम/एकड़ + डेनिटोल (फेन्प्रोप्रेथ्रिन 10% EC) @ 250-300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
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चौथे स्प्रे में एमप्लिगो (क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 9.3% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.6% JC) @ 100 मिली/एकड़ या लार्वीन (थायोडिकार्ब 75% WP) @ 250 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
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इसके जैविक उपचार के रूप में बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
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